नई दिल्ली : पुनर्विचार याचिका के बाद फैसले से संतुष्ट नहीं होने पर
क्यूरेटिव (सुधार) याचिका दाखिल हो सकती है। हालांकि इसके लिए भी शर्ते तय
हैं। क्यूरेटिव याचिका पर मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के
अलावा फैसला देने वाली पीठ के न्यायाधीश विचार करते हैं।
इसमें भी सकरुलेशन
के जरिये चैंबर में सुनवाई होती है। बहुत कम मामलों में नोटिस जारी कर
खुली अदालत में सुनवाई होती है। क्यूरेटिव का मुख्य आधार किसी ऐसी कानूनी
बात या तथ्य को सामने लाना होता है, जिससे पूरे मामले की परिस्थिति और
परिदृश्य ही बदल जाती हो। ऐसा विरले ही मामलों में होता है। इसलिए
क्यूरेटिव की सफलता दर भी बहुत कम है। 1संसद के पास भी कम है गुंजाइश :
कानूनी पेंच फंसने पर संसद के पास कानून में संशोधन के असीमित अधिकार होते
हैं। संसद सीधे तौर पर कोर्ट के फैसले को निरस्त नहीं कर सकती, फैसले में
आधार बनाए गए कानून के प्रावधानों में बदलाव करके फैसला निष्प्रभावी कर
सकती है। सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह कहते हैं कि इस मामले में
संसद के पास कुछ करने की गुंजाइश जरा कम है। क्योंकि कोर्ट ने कानून के
किसी भी प्रावधान को असंवैधानिक या रद घोषित नहीं किया है। कानून जस का तस
अपनी जगह कायम है।
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