24 जनपद सीट बनाम 51 जनपद विवाद
गोंडा के शिक्षा मित्रों ने अपनी जिला वरीयता को बचाने के लिए अपने वकील के माध्यम से कोर्ट को गुमराह किया। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सरकारी वकील की लचर पैरवी के चलते कोर्ट ने 0 सीट वालों को नियुक्ति पत्र देने में रोक लगा दी ।
0 सीट मामले में सेवा भर्ती नियमावली 1981 साइलेंट है। जबकी पहले 0 सीट वाले जनपदों के बी टी सी अभ्यर्थियों से आवेदन लेने की बजाय उन्हें सत्र लाभ दिया जाता था तथा वो आगामी भर्ती में आवेदन के पात्र होते थे।
वर्ष 2013 या उससे पूर्व 0 सीट संबंधित इस नियम को हटा लिया गया गया। नियमानुसार यदि नियामवली में किसी मुद्दे को लेकर स्पष्ट नियम नही होता है तो शासनादेश का अवलोकन करना होता है तथा यही शासनादेश स्पष्ट न होतो सर्कुलर का का अवलोकन करना होता है।
15000 भर्ती में जिला वरीयता हटाये जाने वाले मामले में सरकार ने काउंटर फ़ाइल करते हुए बताया की जब किसी अभ्यर्थी का अपने प्रशिक्षण जनपद में किसी कारणवश चयन नही हो पाता है तो इसे अन्य जनपद की सेकंड कॉउंसलिंग में जगह दी जाती है।
शिक्षा मित्रों के अधिवक्ता ने उक्त काउंटर के माध्यम से कोर्ट को गुमराह किया। 0 सीट वालो को किस कॉउंसलिंग में भेजा जाए इस पर काउंटर में कुछ भी वर्णित नही है। सरकारी अधिवक्ता बिना तैयारी कोर्ट जाते है जिसके चलते ऐसे आदेश पारित होते है।
एक वर्ष पूर्व जब कॉउंसलिंग 12460 भर्ती की हो रही थी तो 51 जनपद से कुछ जनपदों ने 0 सीट वालो की कॉउंसलिंग कराए जाने का तगड़ा विरोध किया है। हाथरस जनपद इस विरोध में अग्रणी रहा था फलस्वरूप हाथरस में 12460 कॉउंसलिंग ही नही हो पाई थी। 0 सीट वालो का विरोध करने वाले शिक्षा मित्रों की याचिका से बेहद खुश होंगे क्योंकि उन्हें मुहमांगी मुराद मिल गयी है।
0 सीट वाले निराश न हो। सुजीत कुमार के नेतृत्व और अम्बरीष तिवारी के सहयोग से उनके नियुक्ति पत्र के रास्ते खुलेंगे।
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