प्रदेश सरकार ने बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षकों को नए शैक्षिक सत्र के
पूर्व अंतर जिला स्थानांतरण की सुविधा दी। तबादला चाहने वाले शिक्षकों से
आवेदन मांगे गए। बाद में उन महिला शिक्षकों को भी इसकी परिधि में शामिल
किया गया जो ससुराल अथवा पति के निवास स्थान वाले जिले में तबादला चाहती
हैं। दोनों ही आवेदन ऑनलाइन आमंत्रित किए गए।
सैंतीस हजार छह सौ दो आवेदन आए। उसके बाद बनी लिस्ट की काउंसिलिंग गई,
जिसमें सात हजार सात सौ सरसठ आवेदक बाहर हो गए। उन्तीस हजार आठ सौ पैंतीस
बचे हैं, इनमें पच्चीस हजार छियासी सिर्फ महिलाएं हैं। निरस्त हुए आवेदकों
में से छह हजार से अधिक ने आपत्तियां दर्ज की हैं, लेकिन उनकी आपत्तियां तक
सही फार्मेट में नहीं आ रही हैं। अपने दावे की पुष्टि के लिए मान्य
दस्तावेज लगाये जाने थे, मगर अधिकतर ने ऐसा नहीं किया है। जैसे बीमारी के
मामले में सीएमओ की मेडिकल रिपोर्ट आदि।
विभागीय उच्चाधिकारी असमंजस में हैं कि उनकी आपत्तियों पर विचार करें तो
कैसे। फिलहाल, इन आपत्तियों को मंडलीय सहायक बेसिक शिक्षा निदेशकों को भेजा
गया है और 16 अप्रैल तक निस्तारित होना है। बेसिक शिक्षा अधिकारी जिलेवार
बैठक भी करेंगे। निस्तारण के बाद 18 से 20 अप्रैल तक बीएसए आवेदनों में
ऑनलाइन संशोधन अथवा सत्यापन करेंगे। इसके बाद ही तबादले की कार्रवाई होगी।
इसी बीच गंभीर रूप से बीमार पुरुष शिक्षकों और अविवाहित शिक्षिकाओं ने भी
कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस सुविधा का लाभ उन्हें भी देने की याचना की।
इन मामलों की अभी कोर्ट में सुनवाई चल रही है, फैसला आना बाकी है। कुल मिला
कर देखें तो तबादला विभाग के लिए एक टेढ़ी खीर बन गया है।
अंतर जिला तबादले के प्रकरण में कुछ शिक्षकों की नैतिकता पर भी सवालिया
निशान लगा है। आवेदक के लिए कम से कम पांच साल की तैनाती आवश्यक थी, मगर इस
अर्हता को नजरंदाज करते हुए तीन-चार साल की नौकरी वालों ने भी आवेदन कर
दिया। चिंता का कारण यह है कि जो शिक्षक आवेदन सही न भरें, जोर-जुगाड़ से
तबादले के लिए जुटे रहें, वह बच्चों के पठन-पाठन में कितना मन लगाएंगे। ऐसे
शिक्षकों की निजी प्राथमिकताएं नौनिहालों की नींव मजबूत करने में कितनी
सहायक होंगी।
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