इलाहाबाद : पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल यादव की मनमानी से पीसीएस परीक्षा
में गलत तरीके से अभ्यर्थियों का चयन, पांच साल की भर्तियों की सीबीआइ जांच
और इसके बाद भी कार्यशैली में सुधार की बजाए गलतियां दोहराई जा रही हैं।
1वर्ष 2000 में राम प्रकाश गुप्त मुख्यमंत्री और प्रो. केबी पांडेय यूपी
पीएससी के चेयरमैन रहे, कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रो. केबी
पांडेय आधा कार्यकाल ही पूरा कर सके थे कि उन्हें उप्र लोकसेवा आयोग का
अध्यक्ष बनाया गया था। 31 मार्च 2004 को 62 साल के होकर उन्होंने अध्यक्ष
पद से अवकाश प्राप्त किया। यूपी पीएससी के लोग उस दौर को स्वर्णिम बताते
हैं। प्रो. पांडेय के अध्यक्ष रहते प्रदेश में चार मुख्यमंत्री हुए। राम
प्रकाश गुप्त के बाद राजनाथ सिंह, मायावती और फिर मुलायम सिंह यादव। इस
दौरान आयोग से होने वाली परीक्षाएं निर्विवाद हुईं।1प्रो. पांडेय के बाद
प्रो. राम सेवक यादव और फिर रिटायर्ड आइएएस अधिकारी एसआर लाखा भी यहां के
अध्यक्ष बने। इनके कार्यकाल में भी आयोग से होने वाली परीक्षाएं बेदाग
रहीं। हालांकि छिटपुट आरोप इन पर लगे लेकिन, परीक्षाओं में पेपर लीक जैसे
प्रकरण नहीं हुए। वहीं, आयोग में 2001 से 2003 तक बादल चटर्जी के परीक्षा
नियंत्रक रहते परीक्षाओं के दौरान ‘चेक एंड बैलेंस’ की प्रक्रिया अपनाई गई।
इसमें सचिव और अध्यक्ष तक को गलत काम के लिए रोका-टोका जाता था। इंटरव्यू
में अभ्यर्थियों को नंबर देते समय उनकी फोटो छिपा दी जाती थी, ताकि कोई
भेदभाव न हो सके। इसके अलावा गलतियां करने पर आयोग के अधिकारियों व
कर्मचारियों को दंड दिया जाता रहा। प्रशासनिक क्षेत्र में गलतियां करने पर
शासन से उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए आयोग से अनुमोदन लिया जाता
था। 2010 के बाद आयोग में इन्हीं नियम, कायदे कानून और परीक्षाओं में
सरकारी दखल न सहने की परंपरा में गिरावट का दौर शुरू हो गया, नतीजा अब सबके
सामने है।
