माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड उप्र ने गुरुवार को भर्तियों में
गड़बड़ियों को लेकर जो धमाका किया है, उसके मूल में मुख्यमंत्री कार्यालय
को हुआ पत्रचार है। माध्यमिक शिक्षा विभाग की अपर निदेशक स्तर की दो महिला
अधिकारियों ने चयन बोर्ड की अर्हता को लेकर जवाब लिखा।
इसी का संज्ञान लेकर
अन्य विषयों को भी बारीकी से खंगाला गया तो धांधली की फेहरिस्त सामने आ
गई। खास बात यह है कि दोनों महिला अधिकारी अर्हता को लेकर आमने-सामने हैं,
उन्होंने एक दूसरे के उलट दावा किया है। 1प्रदेश के अशासकीय माध्यमिक
कालेजों में प्रधानाचार्य, प्रवक्ता व स्नातक शिक्षकों का चयन करने वाले
माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में लंबे समय से कक्षा नौ व दस में पढ़ाने
के लिए स्नातक शिक्षक यानी टीजीटी जीव विज्ञान का चयन किया जा रहा है।
हकीकत यह है कि यह विषय 1999 तक रहा है, वर्ष 2000 में इसे खत्म करके
विज्ञान विषय में ही जीव विज्ञान के अंश समाहित किए गए हैं। इसके बाद भी
चयन बोर्ड इस पद के लिए निरंतर चयन करता आ रहा है। इस पद के लिए आवेदन के
इच्छुक अभ्यर्थी सिर्फ विज्ञान विषय में भर्ती की मांग कर रहे हैं।
अभ्यर्थियों ने चयन बोर्ड से लेकर माध्यमिक के अन्य अफसरों के यहां गुहार
लगाई लेकिन, उनकी विषय का नाम बदलने व अर्हता संशोधन की मांग की अनसुनी
हुई। अभ्यर्थी आशुतोष कुमार अग्रहरि ने 21 मार्च 2018 को मुख्यमंत्री की
शिकायत निवारण प्रणाली जनसुनवाई वेबसाइट पर यह शिकायत दर्ज कराई। 1इस पर
मुख्यमंत्री कार्यालय ने माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड सचिव नीना
श्रीवास्तव से आख्या मांगी। उन्होंने तीन अप्रैल को भेजे जवाबी पत्र में
कहा कि कक्षा नौ व दस में विज्ञान शिक्षकों की अर्हता में संशोधन का
प्रस्ताव शासन को भेज दिया है। बोर्ड सचिव ने ही चयन बोर्ड को नौ जुलाई को
पत्र भेजकर स्पष्ट किया कि हाईस्कूल में जीव विज्ञान का विषय समाप्त हो
चुका है। मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस संबंध में अपर शिक्षा निदेशक माध्यमिक
मंजू शर्मा को भी शिकायती पत्र भेजा था। शर्मा ने उप सचिव को आठ जून को
भेजे पत्र में लिखा है कि सहायक अध्यापक जीव विज्ञान विषय के शिक्षक
माध्यमिक शिक्षा परिषद की हाईस्कूल परीक्षा में उत्तर पुस्तिकाओं के
मूल्यांकन पैनल में रखे जाते हैं। वहीं, अधीनस्थ शिक्षा (प्रशिक्षित स्नातक
श्रेणी) सेवा नियमावली 1983 यथासंशोधित 2017 में एलटी ग्रेड सहायक अध्यापक
जीव विज्ञान की अर्हता प्राविधानित है। दो अफसरों के अलग मत होने के बाद
भी मुख्यमंत्री कार्यालय और चयन बोर्ड ने यूपी बोर्ड सचिव के दावे को ही
सही माना, क्योंकि चयन बोर्ड में भर्ती की अर्हता माध्यमिक शिक्षा परिषद ही
तय करता है।
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