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नई शिक्षा नीति का लम्बा होता इन्तजार

यह अच्छा नहीं हुआ कि जब यह अपेक्षा की जा रही थी कि नई शिक्षा नीति का प्रारूप आने ही वाला है तब यह सूचना मिली कि इस प्रारूप को तैयार करने वाली कस्तूरीरंगन समिति का कार्यकाल एक बार और बढ़ा दिया गया। इस समिति का कार्यकाल तीसरी बार बढ़ाकर 31 अगस्त किया गया है।
उम्मीद की जाती है कि अब इस समिति का कार्यकाल और अधिक बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी नई शिक्षा नीति को सामने लाने के काम में पहले ही बहुत अधिक देरी हो चुकी है। यह देरी इसलिए अस्वीकार्य है, क्योंकि मोदी सरकार के कार्यकाल के चार वर्ष पूरे हो चुके हैं। यह स्पष्ट ही है कि इस कार्यकाल में नई शिक्षा नीति के प्रारूप को अमल में लाना मुश्किल ही होगा। अभी तो यह प्रारूप आया ही नहीं है। जब प्रारूप आएगा तब उस पर चर्चा के लिए समय चाहिए होगा। इस चर्चा के बाद सरकार के पास शायद ही इतना समय बचे कि वह उसे क्रियान्वित करने के आवश्यक कदम उठा सके। यह आश्चर्यजनक है कि नई शिक्षा नीति को लागू करने की बात भाजपा के घोषणापत्र में होने के बावजूद उसे समय पर तैयार नहीं किया जा सका। इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रलय स्वयं के अलावा अन्य किसी को दोष नही दे सकता। यह एक प्राथमिकता वाला कार्य था और उसे तत्परता के साथ किया जाना चाहिए था। कोई नहीं जानता कि कस्तूरीरंगन समिति के पहले सुब्रमण्यम समिति की ओर से तैयार नई शिक्षा नीति के मसौदे को क्यों अस्वीकार कर दिया गया। कम से कम तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नई शिक्षा नीति का जो मसौदा सामने आए वह सरकार की अपेक्षाओं और आज की आवश्यकताओं के अनुरूप हो। 1फिलहाल यह कहना कठिन है कि नई शिक्षा नीति के मसौदे में क्या खास बातें होंगी, लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि शिक्षा के ढांचे में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है। हर स्तर पर शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं। वर्तमान में जो शिक्षा नीति अमल में लाई जा रही है वह 1986 में तैयार की गई थी। हालांकि 1992 में उसमें कुछ परिवर्तन किए गए, लेकिन तब भी वह वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करती। इस पर आश्चर्य नहीं कि नई शिक्षा नीति को तैयार करने में हो रही देरी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी नाखुशी प्रकट की है। उसके नाखुश होने के पर्याप्त कारण हैं। नई शिक्षा नीति को तैयार करने में जो अनावश्यक देरी हुई उसके कारण मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने अब तक जो कुछ किया है वह अपर्याप्त साबित हो रहा है। यह सही है कि प्रकाश जावड़ेकर के नेतृत्व में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी कुछ बदलाव किए हैं, लेकिन नई शिक्षा नीति के अभाव में वे तमाम कार्य नहीं हो सके जो अब तक हो जाने चाहिए थे। बेहतर यह होगा कि नई शिक्षा नीति को तैयार कर रही समिति को यह संदेश दिया जाए कि वह देर आए दुरुस्त आए उक्ति को चरितार्थ करने का काम करे। ऐसा होने पर ही देरी के दुष्परिणामों से बचा जा सकेगा।

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