ललितपुर। बेसिक शिक्षा विभाग में उर्दू शिक्षक भर्ती की जांच किसी नतीजे पर
नहीं पहुंच पा रही है। बीएसए कार्यालय से इसके मूल अभिलेख गायब हो गए हैं,
जिससे जांच की कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पा रही है। इससे संदिग्धों के चेहरे
उजागर नहीं हो पा रहे हैं।
वर्ष 2010 से लेकर अब तक बेसिक शिक्षकों की भर्ती पर जांच चल रही है।
तत्कालीन डीएम मानवेंद्र सिंह ने उर्दू शिक्षकों की भर्ती में शिकायत मिलने
पर जांच बैठाई थी। दोनों ही जांचे अब तक पूर्ण नहीं हो पाई हैं।
अधिकारियों ने साल के अंत तक जांच पूर्ण करने का भरोसा जताया था, लेकिन ऐसा
नहीं हो सका है। प्रदेश के अन्य जिलों में तमाम फर्जी शिक्षकों के चेहरे
बेनकाब हो चुके हैं। लेकिन, ललितपुर इस मामले में पिछड़ता जा रहा है।
उर्दू शिक्षक भर्ती की जांच में नए-नए खुलासे हो रहे हैं। बीते दिनों बीएसए मनोज कुमार वर्मा ने डायरेक्टर को भेजे जवाब में बताया है कि उर्दू भर्ती 1994-95 एवं 1995-96 की समस्त मूला पत्रावली/अभिलेख मिल नहीं रहे हैं। किसी ने कार्यालय में रखे बक्से से ताला तोड़कर उन्हें गायब कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में अभी तक किसी के खिलाफ एफआईआर भी नहीं कराई गई है। यह बात तब सामने आ रही है, जब भर्ती की जांच की प्रक्रिया चल रही है, इससे पहले तक कार्यालय के कर्मी इसे दबाए बैठे रहे। कार्यालय के पटल सहायक ने भी स्वीकारा है कि सेवानिवृत्त हो चुके लिपिक ने उसे उर्दू भर्ती के अभिलेख चार्ज में नहीं दिए हैं। इस तरह उर्दू भर्ती की जांच उलझकर रह गई है। अब विभागीय कर्मी एक दूसरे के पाले में गेंद डालकर बचते नजर आ रहे हैं।
महीनों पहले विभागीय अधिकारियों ने स्कूलों से लंबे समय से गायब चल रहे शिक्षकों को चिह्नित कर नोटिस देने की कार्रवाई की। जब नोटिस का जवाब देने में लापरवाह शिक्षकों ने नजरअंदाज किया तो विभाग ने समाचार पत्रों में इसका विज्ञापन जारी करा दिया और कार्रवाई की तारीख तय कर दी। इस मामले को भी विभागीय अफसर ठंडे बस्ते में डाले हैं। बीच में पटल सहायक रिश्वत के मामले में जेल चले गए थे तो उसका बहाना बनाते रहे। अब जब पटल सहायक जेल से रिहा हो गए, इसके बाद भी कार्रवाई पर मौन हैं। जिससे विभागीय अफसरों की कार्यप्रणाली संदेहास्पद प्रतीत हो रही है।
उर्दू भर्ती के मूल अभिलेख नहीं मिल रहे हैं। इस कारण जांच में समस्या आ रही है, फोटोकापी का मूल अभिलेखों से मिलान नहीं हो पा रहा है।
- मनोज कुमार वर्मा
बीएसए, ललितपुर
उर्दू शिक्षक भर्ती की जांच में नए-नए खुलासे हो रहे हैं। बीते दिनों बीएसए मनोज कुमार वर्मा ने डायरेक्टर को भेजे जवाब में बताया है कि उर्दू भर्ती 1994-95 एवं 1995-96 की समस्त मूला पत्रावली/अभिलेख मिल नहीं रहे हैं। किसी ने कार्यालय में रखे बक्से से ताला तोड़कर उन्हें गायब कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में अभी तक किसी के खिलाफ एफआईआर भी नहीं कराई गई है। यह बात तब सामने आ रही है, जब भर्ती की जांच की प्रक्रिया चल रही है, इससे पहले तक कार्यालय के कर्मी इसे दबाए बैठे रहे। कार्यालय के पटल सहायक ने भी स्वीकारा है कि सेवानिवृत्त हो चुके लिपिक ने उसे उर्दू भर्ती के अभिलेख चार्ज में नहीं दिए हैं। इस तरह उर्दू भर्ती की जांच उलझकर रह गई है। अब विभागीय कर्मी एक दूसरे के पाले में गेंद डालकर बचते नजर आ रहे हैं।
महीनों पहले विभागीय अधिकारियों ने स्कूलों से लंबे समय से गायब चल रहे शिक्षकों को चिह्नित कर नोटिस देने की कार्रवाई की। जब नोटिस का जवाब देने में लापरवाह शिक्षकों ने नजरअंदाज किया तो विभाग ने समाचार पत्रों में इसका विज्ञापन जारी करा दिया और कार्रवाई की तारीख तय कर दी। इस मामले को भी विभागीय अफसर ठंडे बस्ते में डाले हैं। बीच में पटल सहायक रिश्वत के मामले में जेल चले गए थे तो उसका बहाना बनाते रहे। अब जब पटल सहायक जेल से रिहा हो गए, इसके बाद भी कार्रवाई पर मौन हैं। जिससे विभागीय अफसरों की कार्यप्रणाली संदेहास्पद प्रतीत हो रही है।
उर्दू भर्ती के मूल अभिलेख नहीं मिल रहे हैं। इस कारण जांच में समस्या आ रही है, फोटोकापी का मूल अभिलेखों से मिलान नहीं हो पा रहा है।
- मनोज कुमार वर्मा
बीएसए, ललितपुर