उत्तर
प्रदेश बेसिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा विभाग में शिक्षकों एवं
शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के चयन के लिए गठित हो रहे उत्तर प्रदेश शिक्षा
सेवा चयन आयोग की भर्तियों में आर्थिक रूप से कमजोर अभ्यर्थियों को 10
प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। पिछले दिनों विधान मंडल से पारित आयोग के
विधेयक-2019 में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
नया आयोग सहायता प्राप्त विद्यालय एवं महाविद्यालय के साथ ही संबद्ध प्राइमरी, सहायता प्राप्त जूनियर हाईस्कूल, बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों के शिक्षकों के साथ इन सबके शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की भी भर्ती करेगा। किसी कारण से शिक्षकों के कार्यभार ग्रहण न कर पाने की स्थिति में शिक्षकों के समायोजन का स्पष्ट प्रावधान किया गया है। आयोग में परीक्षा नियंत्रक तथा वित्त नियंत्रक का पद सृजित किया गया है। हालांकि शिक्षकों को विधेयक के कई बिंदुओं पर आपत्ति भी है।
इन बिंदुओं पर आपत्तियां
नए आयोग विधेयक में अध्यापक की परिभाषा बदली गई है। चयन बोर्ड अधिनियम में अध्यापक का तात्पर्य किसी संस्था में शिक्षण देने के लिए सेवायोजित किसी व्यक्ति से है। जबकि नए विधेयक में अध्यापक का तात्पर्य किसी संस्था में अनुदेश देने को नियोजित किसी व्यक्ति से है।
यूपी के एडेड हाईस्कूलों में भी शिक्षक भर्ती में टीईटी व भर्ती परीक्षा
विधेयक की धारा 18 में अध्यापकों के पदच्युत किए जाने पर निर्बंधन का प्रावधान है। शिक्षक संगठनों का मानना है कि यह चयन बोर्ड अधिनियम की धारा-21 की तरह नहीं है। मैनेजरों की ओर से इसका दुरुपयोग किया जाएगा।
चयन बोर्ड अधिनियम में पदोन्नति से चयन की प्रक्रिया का प्रावधान था। नए आयोग विधेयक में इसका प्रावधान नहीं है। चयन बोर्ड अधिनियम की धारा 18 में संस्था में प्रधानाचार्य का पद रिक्त होने पर तदर्थ पदोन्नति का प्रावधान था, जिसमें प्रधानाचार्य के पद का वेतन मिलता था। नए आयोग विधेयक में प्रधानाचार्य के पद पर तदर्थ पदोन्नति का प्रावधान नहीं किया गया है। ऐसे में कोई शिक्षक प्रधानाचार्य का काम करने को राजी नहीं होगा।
लालमणि द्विवेदी (प्रदेश महामंत्री माध्यमिक शिक्षक संघ ठकुराई गुट) ने कहा- हमने 30 दिसंबर को उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा से मुलाकात कर मांग की है कि धारा-18 को संशोधित करें या स्पष्टीकरण जारी करें। शिक्षकों की पदोन्नति का प्रावधान तथा प्रधानाचार्य के रिक्त पद पर आयोग से आने तक तदर्थ पदोन्नति का प्रावधान नियमों में लाया जाए।
नया आयोग सहायता प्राप्त विद्यालय एवं महाविद्यालय के साथ ही संबद्ध प्राइमरी, सहायता प्राप्त जूनियर हाईस्कूल, बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों के शिक्षकों के साथ इन सबके शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की भी भर्ती करेगा। किसी कारण से शिक्षकों के कार्यभार ग्रहण न कर पाने की स्थिति में शिक्षकों के समायोजन का स्पष्ट प्रावधान किया गया है। आयोग में परीक्षा नियंत्रक तथा वित्त नियंत्रक का पद सृजित किया गया है। हालांकि शिक्षकों को विधेयक के कई बिंदुओं पर आपत्ति भी है।
इन बिंदुओं पर आपत्तियां
नए आयोग विधेयक में अध्यापक की परिभाषा बदली गई है। चयन बोर्ड अधिनियम में अध्यापक का तात्पर्य किसी संस्था में शिक्षण देने के लिए सेवायोजित किसी व्यक्ति से है। जबकि नए विधेयक में अध्यापक का तात्पर्य किसी संस्था में अनुदेश देने को नियोजित किसी व्यक्ति से है।
यूपी के एडेड हाईस्कूलों में भी शिक्षक भर्ती में टीईटी व भर्ती परीक्षा
विधेयक की धारा 18 में अध्यापकों के पदच्युत किए जाने पर निर्बंधन का प्रावधान है। शिक्षक संगठनों का मानना है कि यह चयन बोर्ड अधिनियम की धारा-21 की तरह नहीं है। मैनेजरों की ओर से इसका दुरुपयोग किया जाएगा।
चयन बोर्ड अधिनियम में पदोन्नति से चयन की प्रक्रिया का प्रावधान था। नए आयोग विधेयक में इसका प्रावधान नहीं है। चयन बोर्ड अधिनियम की धारा 18 में संस्था में प्रधानाचार्य का पद रिक्त होने पर तदर्थ पदोन्नति का प्रावधान था, जिसमें प्रधानाचार्य के पद का वेतन मिलता था। नए आयोग विधेयक में प्रधानाचार्य के पद पर तदर्थ पदोन्नति का प्रावधान नहीं किया गया है। ऐसे में कोई शिक्षक प्रधानाचार्य का काम करने को राजी नहीं होगा।
लालमणि द्विवेदी (प्रदेश महामंत्री माध्यमिक शिक्षक संघ ठकुराई गुट) ने कहा- हमने 30 दिसंबर को उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा से मुलाकात कर मांग की है कि धारा-18 को संशोधित करें या स्पष्टीकरण जारी करें। शिक्षकों की पदोन्नति का प्रावधान तथा प्रधानाचार्य के रिक्त पद पर आयोग से आने तक तदर्थ पदोन्नति का प्रावधान नियमों में लाया जाए।