जब 2009 में RTE कानून आया तो उस अनुपात से एक लाख पचास हजार शिक्षकों की आवश्यकता थी। इन्होंने भर्ती नहीं करायी। इन्होंने जुगाड निकाली अतिथि शिक्षक रखने की, 2500, 3000,4100 ये वेतन था। 2010 के बाद भर्ती नहीं की। लोग औवर एज हो गये, ये टालते गये। लोग मजबूरी में अतिथि शिक्षक बने क्योंकि उन्हें घर चलाना था। पढ़ा लिखा व्यक्ति क्या करे।
शर्म
तो इन्हें आनी चाहिए ये लोगों रोजगार नहीं दे सके। जब 2019 आया चुनाव के
वक्त केवल फार्म भरवाए पेपर कमलनाथ सरकार में हुआ। फिर सिंधिया जी ने अतिथि
शिक्षकों के नाम पर सरकार गिरा दी। BJP की सरकार बनी, फिर वही ढर्रा स्कूल
बंद करने शुरू कर दिया और अतिथि शिक्षकों को बाहर करने लगे। आज अतिथि
कब्जा नहीं किये बैठा, बल्कि पढ़े लिखे लोगों के हकों पर नेता हक जमाये
बैठें हैं। युवा बेरोजगार, फ्री की नहीं खाना चाहता है। उसे सरकार में बैठे
लोग रोजगार दो। कैसे देते हो ये आपकी समस्या है। हर विभाग निजीकरण में कर
दिया सरकार ने। युवा कहां जाएं जबाब दो जबाब दो। ✒ जितेंद्र सिंह जखोलिया, जिला ग्वालियर।
नाम भगवान रख देने से कोई भगवान हो जाता है क्या
आप
किसी का नाम भगवान रख देंगे तो क्या वह भगवान हो जाता है। हमने तो नियमित
शिक्षक के लिए आवेदन किया था। सरकार ने वैकेंसी ओपन नहीं की। कहा इस साल
अतिथि शिक्षक के पद पर काम कर लो अगले साल वैकेंसी आ जाएगी। साल-दर-साल ऐसा
ही चलता रहा। पिछले 56 दिनों से GFMS PORTAL के नाम पर अतिथि शिक्षकों के
साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। हमें बंदर की तरह नचाया जा रहा है। इनकी अपनी
कोई पॉलिसी नहीं है। हर दूसरे दिन पोर्टल में संशोधन किया जा रहा है।
स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या कम होती जा रही है। स्कूल शिक्षा
मंत्री को इन सब समस्याओं की तरफ देखना चाहिए, लेकिन वह भड़काऊ बयानबाजी कर
रहे हैं। ✒ रविकांत गुप्ता।
उनके बाप का मंत्रालय है क्या
शिक्षा
के मामले में मध्य प्रदेश आज भी सबसे पिछड़ा राज्य है। और इसका कारण यह है
कि, यहां की शिक्षा मंत्री... उनके बाप का घर है क्या। शिक्षा मंत्रालय
खरीद लिया है क्या। 5 साल की विधायकी की है। अगली बार हरा देंगे।
अच्छे-अच्छे मंत्रियों को हराया है। किसी घमंड में ना रहे। ✒ राधा मोहन शर्मा ग्वालियर।
अस्वीकरण:
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सरकारी नीतियों की समीक्षा करते हैं। सुझाव देते हैं एवं समस्याओं की
जानकारी देते हैं। पत्र लेखक के विचार उसके निजी होते हैं। यदि आपके पास भी
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