सर्दियों का आगमन हो चुका है आशा है आप बचाव करते हुये नियमित रुप से अपना कर्तव्य करते रहेंगे,ज्यादातर जिलों में मौलिक नियुक्ति का कार्य गतिमान है जिसमें ज्यादातर जगह महिला
अध्यापकों की नियुक्ति ऐच्छिक अवसर देकर तो पुरुषों की नियुक्ति तथाकथित रॉस्टर लगाकर की
जा रही है,सभी नियुक्ति पाने वाले
और
सम्भावित को मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनायेँ !
आज आपसे संगठन की वर्तमान आवश्यकता और
स्थिति पर संवाद करना है, अगली 7 डिसेंबर को
सुप्रीम कोर्ट में हमारे केस की सुनवाई
होनी है जिसका निर्णय हमारे चार के संघर्ष का
प्रतिफल होगा या नवजीवन ही होगा,कोई
भय या डरने की बात नहीँ है,हम 99%
विजेता हैं पर हमारे विपक्षी हरहाल में हमें रोकना
चाहते हैं ऐसे वादियों के अधिवक्ता कोर्टरूम में कोई गलत तथ्य
प्रस्तुत कर भ्रम ना फैला सकें इसके लिये हमारी
ओर से एक वरिष्ठ अधिवक्ता ज़रूर हो, नागेश्वर राव
जी इसके लिये प्रथम वरीयता में हों
क्योंकि गत कई सुनवाईओं में हमारी पैरवी
कर चुके हैं और हमारे केस को अच्छे से समझते हैं !
इसके अलावा अब आपके जिले की बात करते हैं
ज्यादातर जिलों से लोग परेशान हैं की संगठन के नाम
पर कुछ लोग मनमाने रूप से कार्य करने में लगे हैं जिससे दूसरों का
अहित हो रहा है,
कहीँ कुछ लोग अपने को खुद ही
अध्यक्ष,उपाध्यक्ष,महामंत्री..आदि,आदि उपाधि
देकर अपने को धन्य मान रहे हैं तो कहीँ अखबारों
में नाम छपवाने की लालसा भारी
है,वहीँ फिजूल में काम के नाम पर या तो चंदे के पैसों
को यात्राओं और दूसरे खर्चे दिखा उड़ाकर आम अध्यापकों को
धमकी भी दे रहे हैं की
मौलिक नियुक्ति हमने दिलवाई या मानदेय दिलवाया, ये सब इनका झूठ
और फरेब है, आपको मौलिक नियुक्ति और मानदेय खुद आपके
काम की वजह से मिला है,आपने महीनों
मेहनत से काम किया है जिसके एवज में आपको मौलिक नियुक्ति
और मानदेय मिला और अब वेतन मिलेगा !
इन स्वयंघोषित नेताओं का अहंकार इतना बढ़ गया की
नियत बदलने लगी और आम टेट अध्यापकों को अपना
अधीनस्थ मानने लगे जिसकी परिणिति ये
है की ज्यादातर जिलों के संगठन से सभी
अध्यापकों ने किनारा कर लिया और अब संगठन के नाम पर चंद
स्वंयघोषित पदाधिकारी ही हैं-
1- क्या ऐसे संगठन का कोई उपयोग है ?
2- संगठन में समूह की शक्ति होती है
या पैसा और पद की ?
3- समूहविहीन संगठन का अस्तित्व क्या होता
है?
खैर,इनके इसी व्यवहार के कारण मानदेय व मौलिक
नियुक्ति दिलाने का फर्जी दावा करने वाले ऐसे स्वयंघोषित
नेताओं को मौलिक नियुक्ति बड़ी बड़ी दूर
मिली हैं, थोड़ा सा प्रयास खुद को भी कर
लें
!
किसी की आलोचना उद्देश्य
नहीँ हैं यहाँ केवल आईना दिखाने की
कोशिश है की दम्भ के आसमां से ज़मीन
पर आओ, समूह में रहो,समूह जोडो,समूह बनाओ,
यही संगठन है,इसमें ही शक्ति
है,हम चार साल से संघर्ष करके टिके और जीते तो
किसी के व्यक्तिगत या दो चार लोगों की
शक्ति नहीँ, ये हर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष
साथी की देन है, हमारे समूह को पूरा
भारत मान रहा है इसलिये पद या पैसे का महत्त्व
नहीँ,महत्त्व लोगों का है , अच्छा,बुरा,हर
जाती,वर्ग,आय,उम्र के अध्यापक एकसाथ हों,तब
आपका पद है और तभी मान्यता है !
इसे चेतावनी,सलाह जो समझे पर सुधार को है वरना
अस्तित्व ख़त्म हो जायेगा !
क्योंकि जो लोग व्यक्तिगत रूप में सक्षम होते हैं वो प्राथमिक
शिक्षक नहीँ होते,प्राथमिक शिक्षक तो एकजुट
होकर ही शक्तिशाली होगा !
समय रहते सुधार की गुंजाइश ही
जीवन और अस्तित्व बचाती है!
सोचें,विचार करें !
शेष फ़िर...
सन्घेय शक्ति सर्वदा !
जय हिन्द जय टीईटी !!
ताज़ा खबरें - प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
अध्यापकों की नियुक्ति ऐच्छिक अवसर देकर तो पुरुषों की नियुक्ति तथाकथित रॉस्टर लगाकर की
जा रही है,सभी नियुक्ति पाने वाले
और
सम्भावित को मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनायेँ !
आज आपसे संगठन की वर्तमान आवश्यकता और
स्थिति पर संवाद करना है, अगली 7 डिसेंबर को
सुप्रीम कोर्ट में हमारे केस की सुनवाई
होनी है जिसका निर्णय हमारे चार के संघर्ष का
प्रतिफल होगा या नवजीवन ही होगा,कोई
भय या डरने की बात नहीँ है,हम 99%
विजेता हैं पर हमारे विपक्षी हरहाल में हमें रोकना
चाहते हैं ऐसे वादियों के अधिवक्ता कोर्टरूम में कोई गलत तथ्य
प्रस्तुत कर भ्रम ना फैला सकें इसके लिये हमारी
ओर से एक वरिष्ठ अधिवक्ता ज़रूर हो, नागेश्वर राव
जी इसके लिये प्रथम वरीयता में हों
क्योंकि गत कई सुनवाईओं में हमारी पैरवी
कर चुके हैं और हमारे केस को अच्छे से समझते हैं !
इसके अलावा अब आपके जिले की बात करते हैं
ज्यादातर जिलों से लोग परेशान हैं की संगठन के नाम
पर कुछ लोग मनमाने रूप से कार्य करने में लगे हैं जिससे दूसरों का
अहित हो रहा है,
कहीँ कुछ लोग अपने को खुद ही
अध्यक्ष,उपाध्यक्ष,महामंत्री..आदि,आदि उपाधि
देकर अपने को धन्य मान रहे हैं तो कहीँ अखबारों
में नाम छपवाने की लालसा भारी
है,वहीँ फिजूल में काम के नाम पर या तो चंदे के पैसों
को यात्राओं और दूसरे खर्चे दिखा उड़ाकर आम अध्यापकों को
धमकी भी दे रहे हैं की
मौलिक नियुक्ति हमने दिलवाई या मानदेय दिलवाया, ये सब इनका झूठ
और फरेब है, आपको मौलिक नियुक्ति और मानदेय खुद आपके
काम की वजह से मिला है,आपने महीनों
मेहनत से काम किया है जिसके एवज में आपको मौलिक नियुक्ति
और मानदेय मिला और अब वेतन मिलेगा !
इन स्वयंघोषित नेताओं का अहंकार इतना बढ़ गया की
नियत बदलने लगी और आम टेट अध्यापकों को अपना
अधीनस्थ मानने लगे जिसकी परिणिति ये
है की ज्यादातर जिलों के संगठन से सभी
अध्यापकों ने किनारा कर लिया और अब संगठन के नाम पर चंद
स्वंयघोषित पदाधिकारी ही हैं-
1- क्या ऐसे संगठन का कोई उपयोग है ?
2- संगठन में समूह की शक्ति होती है
या पैसा और पद की ?
3- समूहविहीन संगठन का अस्तित्व क्या होता
है?
खैर,इनके इसी व्यवहार के कारण मानदेय व मौलिक
नियुक्ति दिलाने का फर्जी दावा करने वाले ऐसे स्वयंघोषित
नेताओं को मौलिक नियुक्ति बड़ी बड़ी दूर
मिली हैं, थोड़ा सा प्रयास खुद को भी कर
लें
!
किसी की आलोचना उद्देश्य
नहीँ हैं यहाँ केवल आईना दिखाने की
कोशिश है की दम्भ के आसमां से ज़मीन
पर आओ, समूह में रहो,समूह जोडो,समूह बनाओ,
यही संगठन है,इसमें ही शक्ति
है,हम चार साल से संघर्ष करके टिके और जीते तो
किसी के व्यक्तिगत या दो चार लोगों की
शक्ति नहीँ, ये हर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष
साथी की देन है, हमारे समूह को पूरा
भारत मान रहा है इसलिये पद या पैसे का महत्त्व
नहीँ,महत्त्व लोगों का है , अच्छा,बुरा,हर
जाती,वर्ग,आय,उम्र के अध्यापक एकसाथ हों,तब
आपका पद है और तभी मान्यता है !
इसे चेतावनी,सलाह जो समझे पर सुधार को है वरना
अस्तित्व ख़त्म हो जायेगा !
क्योंकि जो लोग व्यक्तिगत रूप में सक्षम होते हैं वो प्राथमिक
शिक्षक नहीँ होते,प्राथमिक शिक्षक तो एकजुट
होकर ही शक्तिशाली होगा !
समय रहते सुधार की गुंजाइश ही
जीवन और अस्तित्व बचाती है!
सोचें,विचार करें !
शेष फ़िर...
सन्घेय शक्ति सर्वदा !
जय हिन्द जय टीईटी !!
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