राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में अध्यक्ष की
तैनाती के बाद अब उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग उप्र फिर से प्रतियोगियों के
निशाने पर आ गया है। यह आयोग भी महीनों से मुखिया विहीन है और यहां सिर्फ
एक सदस्य ही शेष है। वहीं कार्यवाहक सचिव की योग्यता सवालों के घेरे में
है।
इसीलिए यहां भ्रष्टाचार पर पर्दा पड़ा है। चर्चा है कि आयोग में नए अध्यक्ष एवं सदस्य की तैनाती की प्रक्रिया तेज हो चली है। यह ‘संयोग’ यानी अध्यक्ष सदस्य एवं सचिव नियुक्त होते ही भ्रष्टाचार का जिन्न फिर सामने आना तय है।
चयन बोर्ड हो या उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग दोनों में कोई अंतर नहीं है, बल्कि दोनों ही नौकरियां देने में मनमानी करके युवाओं की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं।
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग ने विज्ञापन संख्या 46 को 21 मार्च 2014 को जारी किया था।
इसमें आयोग को प्रदेश के अशासकीय डिग्री कालेजों के लिए असिस्टेंट प्रवक्ता के पद पर 1652 नियुक्तियां करना था। आयोग ने परंपरा तोड़ते हुए पहली बार इसकी लिखित परीक्षा कराने की ठानी और लंबे इंतजार के बाद परीक्षा करा लेने में सफलता भी हासिल की, लेकिन नियुक्तियां कराने के लिए एक से बढ़कर एक आरोप लगे। आयोग के ही पूर्व अध्यक्ष लाल बिहारी पांडेय ने खुद दो सौ से अधिक ओएमआर शीट खाली मिलने की बात कही थी।
बताते हैं कि लाभ आयोग के अफसर व कर्मचारियों के रिश्तेदारों को ही मिलना था। यह प्रकरण चर्चा में आने के बाद से आयोग में हड़कंप रहा। वहीं प्रतियोगी छात्रों ने इसी भर्ती के संबंध में आरटीआइ भेजकर पूछा था कि इस परीक्षा में कितने लोगों ने आवेदन किया था, कितने शामिल हुए, खाली ओएमआर शीट कितनों ने छोड़ी और इस परीक्षा के दौरान शासनादेश बदलने का औचित्य क्या था।
इस जनसूचना का जवाब भी आज तक युवाओं को नहीं मिल सका है। माना जा रहा है कि शासन जल्द ही यहां पर नया अध्यक्ष, सदस्य एवं नियमित सचिव की तैनाती करेगा। उसी के साथ यह भ्रष्टाचार का प्रकरण भी तूल पकड़ेगा।
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इसीलिए यहां भ्रष्टाचार पर पर्दा पड़ा है। चर्चा है कि आयोग में नए अध्यक्ष एवं सदस्य की तैनाती की प्रक्रिया तेज हो चली है। यह ‘संयोग’ यानी अध्यक्ष सदस्य एवं सचिव नियुक्त होते ही भ्रष्टाचार का जिन्न फिर सामने आना तय है।
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इसमें आयोग को प्रदेश के अशासकीय डिग्री कालेजों के लिए असिस्टेंट प्रवक्ता के पद पर 1652 नियुक्तियां करना था। आयोग ने परंपरा तोड़ते हुए पहली बार इसकी लिखित परीक्षा कराने की ठानी और लंबे इंतजार के बाद परीक्षा करा लेने में सफलता भी हासिल की, लेकिन नियुक्तियां कराने के लिए एक से बढ़कर एक आरोप लगे। आयोग के ही पूर्व अध्यक्ष लाल बिहारी पांडेय ने खुद दो सौ से अधिक ओएमआर शीट खाली मिलने की बात कही थी।
बताते हैं कि लाभ आयोग के अफसर व कर्मचारियों के रिश्तेदारों को ही मिलना था। यह प्रकरण चर्चा में आने के बाद से आयोग में हड़कंप रहा। वहीं प्रतियोगी छात्रों ने इसी भर्ती के संबंध में आरटीआइ भेजकर पूछा था कि इस परीक्षा में कितने लोगों ने आवेदन किया था, कितने शामिल हुए, खाली ओएमआर शीट कितनों ने छोड़ी और इस परीक्षा के दौरान शासनादेश बदलने का औचित्य क्या था।
इस जनसूचना का जवाब भी आज तक युवाओं को नहीं मिल सका है। माना जा रहा है कि शासन जल्द ही यहां पर नया अध्यक्ष, सदस्य एवं नियमित सचिव की तैनाती करेगा। उसी के साथ यह भ्रष्टाचार का प्रकरण भी तूल पकड़ेगा।
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