आज ही के दिन हाई कोर्ट ने शिक्षामित्र समायोजन रद्द किया और अगले दिन अर्थात 12 सितम्बर को इसे सुनाया गया था।जैसा कि चाणक्य का उपरोक्त कथन हमारे सामने है।
इसको अपनी प्रेरणा बनाते हुए मिशन सुप्रीम कोर्ट के रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथी इस फैसले को अपने साक्ष्यों से गलत सिद्ध करने को जुटे है।
इसके पूर्व मे जस्टिस वी के शुक्ला व जस्टिस कृष्ण मुरारी जी द्वारा रिट संख्या 3205 /2014 मे ऐसा ही ऑर्डर पास किया गया था जिसमे साफ किया गया था की समायोजन सरकार अपनी रिस्क पर करा रही है ।
इस तरह के फैसले से यह साफ होता है की जब भी निर्णय आएगा शिक्षामित्रों की ये दलील काम नही आएगी की वे 14 साल से पढ़ा रहे हैं और 14 महीने से राज्य सरकार के कर्मचारी हैं ।
यहाँ ये साफ़ हुआ कि इसकी पहली ज़िम्मेदारी राज्य और केंद्र सरकार की है। फिर इसके बाद इन मौतों की ज़िम्मेदार बहराइच टीम उर्फ़ एसएसकल्याण समिति, आदर्श शिक्षामित्र एसोसिशनऔर प्र शिक्षामित्र संघ की है।
क्यों? ये ही वो लोग थे जिनके सामने ऐसे कई आर्डर लुखनऊ और इलाहबाद बेंच ने दिए लेकिन किसी भी संघ या टीम ने मज़बूत पैरवी न करते हुए सब कुछ राज्य के भरोसे छोड़ दिया। वर्तमान में इन लोगों की भूमिका सुप्रीम कोर्ट में भी हाई कोर्ट जैसी ही है। जहाँ 57 एसएलपी राज्य की एसएलपी की प्रतिलिपि हों वहां आप और हम क्या उम्मीद कर सकते हैं।
*ब्लैक डे/काला दिवस हम उन साथियों की मौत का तो मना ही रहे हैं, साथ ही संघों की हालत पर भी मनाने को जी चाहता है*
अब बात वर्तमान हालात की अगर सुप्रीम कोर्ट से कोई बुरी खबर आई तो इसके ज़िम्मेदार टेट पास शिक्षामित्रों की एसएलपी होंगी। और 45 से 55 साल वाले शिक्षामित्र अगर कोई गलत क़दम उठाते हैं तो इस के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार टेट पास शिक्षामित्र एसएलपी धारक ही होंगे।
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इसको अपनी प्रेरणा बनाते हुए मिशन सुप्रीम कोर्ट के रबी बहार, केसी सोनकर, माधव गंगवार और साथी इस फैसले को अपने साक्ष्यों से गलत सिद्ध करने को जुटे है।
- शिक्षामित्रो की ट्रेनिंग भी रद्द कराने की तैयारी , सुप्रीम कोर्ट मे एसएलपी दायर : हिमांशु राणा
- सभी टेट पास अथवा बिना टेट पास साथी इस पोस्ट को जरा गंभीरता से पढ़ ले तो शायद आपको आपके कई प्रश्नो का उत्तर मिल जायेगा
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इसके पूर्व मे जस्टिस वी के शुक्ला व जस्टिस कृष्ण मुरारी जी द्वारा रिट संख्या 3205 /2014 मे ऐसा ही ऑर्डर पास किया गया था जिसमे साफ किया गया था की समायोजन सरकार अपनी रिस्क पर करा रही है ।
इस तरह के फैसले से यह साफ होता है की जब भी निर्णय आएगा शिक्षामित्रों की ये दलील काम नही आएगी की वे 14 साल से पढ़ा रहे हैं और 14 महीने से राज्य सरकार के कर्मचारी हैं ।
यहाँ ये साफ़ हुआ कि इसकी पहली ज़िम्मेदारी राज्य और केंद्र सरकार की है। फिर इसके बाद इन मौतों की ज़िम्मेदार बहराइच टीम उर्फ़ एसएसकल्याण समिति, आदर्श शिक्षामित्र एसोसिशनऔर प्र शिक्षामित्र संघ की है।
क्यों? ये ही वो लोग थे जिनके सामने ऐसे कई आर्डर लुखनऊ और इलाहबाद बेंच ने दिए लेकिन किसी भी संघ या टीम ने मज़बूत पैरवी न करते हुए सब कुछ राज्य के भरोसे छोड़ दिया। वर्तमान में इन लोगों की भूमिका सुप्रीम कोर्ट में भी हाई कोर्ट जैसी ही है। जहाँ 57 एसएलपी राज्य की एसएलपी की प्रतिलिपि हों वहां आप और हम क्या उम्मीद कर सकते हैं।
*ब्लैक डे/काला दिवस हम उन साथियों की मौत का तो मना ही रहे हैं, साथ ही संघों की हालत पर भी मनाने को जी चाहता है*
अब बात वर्तमान हालात की अगर सुप्रीम कोर्ट से कोई बुरी खबर आई तो इसके ज़िम्मेदार टेट पास शिक्षामित्रों की एसएलपी होंगी। और 45 से 55 साल वाले शिक्षामित्र अगर कोई गलत क़दम उठाते हैं तो इस के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार टेट पास शिक्षामित्र एसएलपी धारक ही होंगे।
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