1.72 लाख शिक्षामित्र अयोग्य होते हुए भी सहायक अध्यापक के रूप में समायोजित और योग्यता पूरी करने वाले 2.92 लाख आज भी अधिकार से दूर : मयंक तिवारी

प्रत्येक सुनवाई बाद से अगली सुनवाई तक अनवरत मजबूत तैयारी व इतने अधिक अर्थ खर्च के बाद भी जब सुनवाई ना हो यह निःसन्देह निराशाजनक ही होता है। किन्तु आप एक बार सोचिये जरा जो लोग घर से रात-दिन दौड़ते है सब कुछ व्यवस्तिथ करते है चाहे स्वयं का कैसा भी स्वास्थ्य हो घर की कैसी भी परिस्तिथि हो किन्तु अपने ऊपर ली गयी जिम्मेदारी को निभाने वह प्रत्येक स्थान पर अवश्य ही पहुंचते है।

इसके बाद जब जहाँ भी जो भी घटित होता है आपको उसकी सुचना देते है। सुनवाई ना होने पर आपको ढाढ़स भी बंधाते है। एक बार सोचिये क्या वहां उपस्तिथि रहकर इतना प्रयास करने वालों को कष्ट नही होता है क्या...???? क्या प्रयास करने वालों की उम्मीद को धक्का नही लगता है क्या...????
कोई भी विषम परिस्तिथि हो वो पहले स्वयं को सम्भालते है और फिर आपको और आप सभी घर पर बैठकर या तो न्यायपालिका को कोषते हो फिर सरकार को और फिर जो आपने लिए दिन रात प्रयास कर रहा है उन नेतृत्वकर्ताओं को।
क्या पूर्ण रूप से सिर्फ यही लोग दोषी है...??? एक बार स्वतंत्र होकर सोचिये 1.72लाख शिक्षामित्र किस तागत से आज अयोग्य होते हुए भी सहायक अध्यापक के रूप में समायोजित हो चुके है और आप योग्यता पूरी करने वाले 2.92लाख आज भी उस अधिकार से दूर है जो आपको मिलना चाहिए।
जब याची बन रहे थे तब आप लोग एक नही, दो नही, तीन नही, दस-दस बारह-बारह जगह नाम डलवा रहे थे किन्तु जब आपको यदि धरना-प्रदर्शन के लिए बुलाया जाता है तब देखने 68,000 याचियों में से 6,800याची भी नही पहुँचते है। जो पहुँचते है उनमे से किसी को पहले दिन ही वापस आना होता है किसी को दूसरे दिन कुछ ही संख्या बचती है जो तीसरे दिन कहीं ठहर सकती है।
आज ऐसा सिर्फ इसलिए कह रहा हूँ कि सुनवाई बाद से धरना/आंदोलन की बात हो रही है और यदि आप सभी चाहते है तो चुनावी माहौल में इसका लाभ उठाया जा सकता है किन्तु इसके लिए भी धैर्य व् एकजुटता की आवश्यकता होती है। आप सभी पहले ये तय कर लीजिये कि यदि बुलाया जायेगा तो प्रत्येक याची आएगा दूसरा यह भरोषा दिला दीजिये कि जब तक कहा ना जाये कोई वापस नही जायेगा और हाँ कोई भी अचानक भीड़ में उठकर नेता नही बनेगा।
वरना होता यही है कि पहले तो सब आते नही, जो आते है वो सब रुकते नही और जब कुछ अच्छी भीड़ होती है तो कोई जोश में आता है और कहता है हम तो तालाबन्धी करेंगे/अनशन करेंगे अब मैं किसी की नही सुनूँगा और पुरे आंदोलन को ले डूबेंगे। उसके बाद नेता FIR झेलेंगे तथा निर्दोष सामान्य अभ्यर्थी पुलिस की बर्बरता। एक बार फिर निराशा ही हाथ लगेगी।
दोस्तों विचार कर लेने दीजिये एक मजबूत रणनीति का। जितना आस्वाशन शिक्षामंत्री ने अभी कुछ दिन पहले बी टी सी 2013 वालों को तीन दिन के धरने के बाद दिया था उतना हमें राजनीतिक प्रयास में ही मिल गया था।
फ़िलहाल इतना ही कहूँगा कि 5वर्ष इंतज़ार के बाद अचानक की सब पा लेने के लिए उतावले ना रहिये। जो अचयनित साथी खुद की जॉब के लिए और आपकी जॉब के लिए पूरी निष्ठां से लगे हुए है उनको भी उतनी ही जल्दी है जितनी कि आपको।
हम हर सम्भव रास्ते तलास रहे है उन पर चल रहे है और निश्चित मानिये यदि आप और हम मिलकर अंत तक इस अन्याय के विरुद्ध लड़े तो एक दिन यह भी आएगा कि जब आप सहायक अध्यापक होंगे और शिक्षामित्र हो सकता है विभाग में हों किन्तु सहायक अध्यापक के पद पर नही होंगे।
आप सभी के उज्ज्वल भविष्य हेतु संघर्ष के प्रथम दिवस से संघर्षरत
आपका मयंक तिवारी
बीएड/टेट उत्तीर्ण संघर्ष मोर्चा
उत्तर प्रदेश

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