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शिक्षामित्र विवाद का फैसला उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध ही आने की पूर्ण संभावना: तीसरी नजर

उत्तराखंड के शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण हेतु बीटीसी के लिए प्रॉपर तरीके से जोड़ा गया था , फर्क सिर्फ इतना था कि जो शिक्षामित्र थे उनको बगैर टीईटी ही नियुक्त कर दिया था और जो स्नातक के बाद बीटीसी थे उनके लिए टीईटी अनिवार्य था । हक़ीक़त यह है कि बीटीसी के लोग भी शिक्षामित्रों की तरह टीईटी से छूट मांगने गये थे और एकल बेंच ने शिक्षामित्रों की भी छूट निरस्त कर दी थी ।

UK सरकार ने शिक्षामित्रों के लिए TET से छूट ले रखा था कि ये हमारे RTE एक्ट के पूर्व के शिक्षक हैं । इस पर न्यायमूर्ति श्री सुधांशु धुलिया ने कहा कि प्रशिक्षण स्नातक के बच्चों के साथ हुआ तो फिर उनको पूर्व से ही शिक्षक कैसे मानें?
जिस पर NCTE से मिली छूट को रद्द कर दिया था और टीईटी अनिवार्य कर दिया था । UK के शिक्षामित्रों का प्रशिक्षण पूर्णतया वैध है । क्योंकि उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रशिक्षुओं की तरह बैकडोर से प्रशिक्षण नहीं प्राप्त किया था ।
मामला खंडपीठ में CJ श्री KM जोसेफ की पीठ में गया और उन्होंने सिंगल बेंच के फैसले पर रोक लगा दी थी और नियुक्ति को SPA के अंतिम निर्णय के आधीन कर दिया था ।जिसका अंतिम निर्णय करते हुए खंडपीठ ने एकल बेंच के फैसले को सही ठहरा दिया होगा , मुझे खंडपीठ के फैसले की पूर्ण जानकारी नहीं है , मात्र मीडिया कवरेज से सुन रहा हूँ ।

वहां के शिक्षामित्र टीईटी पास करके शिक्षक बनेंगे
इस प्रकार माननीय सुप्रीम कोर्ट से भी उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र विवाद का फैसला उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध ही आने की संभावना है ।

हक़ीक़त यह है कि खुद NCTE भी छूट नहीं दे सकता है ।
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