इलाहाबाद: पुलिस विभाग में मृतक आश्रित कोटे के तहत आवेदन करने वाले ऐसे अभ्यर्थी जिन्होंने 2015 की नई नियमावली लागू होने से पहले आवेदन किया था उन्हें लिखित परीक्षा नहीं देनी होगी।
पुलिस विभाग ने आवेदन करने वाले सभी अभ्यर्थियों को नई नियमावली के तहत लिखित परीक्षा और साक्षात्कार से भर्ती करने का निर्णय लिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याची के अधिवक्ता की दलील थी कि पुलिस विभाग में मृतक आश्रित कोटे के तहत सन 1974 की नियमावली से भर्ती की जानी थी। इस नियमावली में स्पष्ट प्रावधान है कि मृतक आश्रित कोटे में भर्ती के लिए लिखित परीक्षा नहीं ली जाएगी। याचीगण ने 2015 से पहले आवेदन किया था। इस बीच पुलिस विभाग में 19 अगस्त, 2015 को मृतक आश्रित भर्ती के लिए नई नियमावली लागू कर दी गई। इसके अनुसार प्रत्येक वर्ष की जाने वाली भर्तियों में पांच प्रतिशत पदों पर मृतक आश्रितों की भर्ती का निर्णय लिया गया।
सरकार ने 18 सितंबर, 2015 को शासनादेश जारी कर मृतक आश्रित कोटे में भर्ती के लिए लिखित परीक्षा कराने का निर्णय ले लिया। 25 जून, 2015 को इसका विज्ञापन जारी किया गया। 25 जून, 2016 को परीक्षा की तारीख निर्धारित की गई। इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। इसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने लिखित परीक्षा का परिणाम जारी करने पर रोक लगा दी। इस बीच एक अन्य अभ्यर्थी विक्रांत तोमर की याचिका पर हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि नई नियमावली 2015 लागू होने से पूर्व आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों की भर्ती पुरानी नियमावली से कराई जाए। कोर्ट ने आइजी स्थापना को निर्देश दिया है कि याचीगण की नियुक्ति विक्रांत तोमर केस में दिए गए हाईकोर्ट के निर्णय के आलोक में कराने पर चार माह में निर्णय लें।
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सरकार ने 18 सितंबर, 2015 को शासनादेश जारी कर मृतक आश्रित कोटे में भर्ती के लिए लिखित परीक्षा कराने का निर्णय ले लिया। 25 जून, 2015 को इसका विज्ञापन जारी किया गया। 25 जून, 2016 को परीक्षा की तारीख निर्धारित की गई। इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। इसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने लिखित परीक्षा का परिणाम जारी करने पर रोक लगा दी। इस बीच एक अन्य अभ्यर्थी विक्रांत तोमर की याचिका पर हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि नई नियमावली 2015 लागू होने से पूर्व आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों की भर्ती पुरानी नियमावली से कराई जाए। कोर्ट ने आइजी स्थापना को निर्देश दिया है कि याचीगण की नियुक्ति विक्रांत तोमर केस में दिए गए हाईकोर्ट के निर्णय के आलोक में कराने पर चार माह में निर्णय लें।
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