शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) के तहत 25 फीसद गरीब बच्चों को निजी
स्कूलों में प्रवेश देने की अनिवार्यता और उसके बदले सरकार की तरफ से मात्र
450 रुपये प्रति छात्र शुल्क भरपाई यूपी के निजी स्कूलों को कतई नहीं पच
रहा। निजी स्कूलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर शुल्क प्रतिपूर्ति
देने के आदेश को चुनौती देते हुए इसे रद करने की मांग की है।
साथ ही आरटीई
कानून के मुताबित शुल्क प्रतिपूर्ति दिलाने की मांग की है। स्कूलों की ओर
से यह याचिका नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स एलायंस (नीसा) ने दाखिल की है। 1
निजी स्कूलों ने वकील रवि प्रकाश गुप्ता के जरिये दाखिल याचिका में उत्तर
प्रदेश सरकार के 26 जून 2013 के आदेश के खंड-2 ख को चुनौती दी है। कहा है
कि तय किया गया प्रति छात्र 450 रुपये शुल्क प्रतिपूर्ति बहुत ही कम है।
शुल्क प्रतिपूर्ति का निर्धारण सरकार ने मनमाने तरीके से किया है। सरकार ने
आरटीई कानून के तहत तय प्रावधानों के मुताबिक शुल्क भरपाई का निर्धारण
नहीं किया है। कानून कहता है कि सरकार गरीब बच्चों को प्रवेश देने के बदले
उतनी ही फीस की भरपाई करेगी जितनी सरकारी स्कूलों में प्रति छात्र खर्च आता
है। कहा गया है कि यूपी व अन्य प्रान्तों की सरकारें आरटीई कानून के तहत
निजी स्कूलों को 25 फीसद गरीब बच्चों को एडमीशन देने के लिए बाध्य करती हैं
लेकिन जब उनके फीस भरपाई करने का नंबर आता है तो मनमाने तरीके से शुल्क तय
किया जाता है।
याचिका में कहा गया है कि उप्र ने कम शुल्क प्रतिपूर्ति तय की है। वह इस
रकम को भी निजी स्कूलों को भुगतान करने में नाकाम रहा है। सरकार ने निजी
स्कूलों को कई वषों से इस रकम का भी भुगतान नहीं किया है। याचिकाकर्ता के
वकील रवि प्रकाश गुप्ता कहते हैं कि इसके कारण निजी स्कूलों को फंड की कमी
हो रही है। स्कूल बंद होने की कगार पर हैं जिससे बाकी के फीस देने वाले 75
फीसद छात्रों का भी नुकसान होगा।
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