इलाहाबाद : अपर निजी सचिव यानि की सीबीआइ जांच की संस्तुति से उप्र
लोकसेवा आयोग ही नहीं बल्कि सरकारी अमला भी घबराया है। परीक्षा में व्यापक
धांधली, करीबियों का गलत तरीके से चयन कराने और गड़बड़ी जानकारी में होने
के बावजूद जांच रुकवाने की हर संभव कोशिश करने वाले अधिकारियों को अपनी ही
नौकरी फंसती नजर आने लगी है।
उच्च पदों पर बैठे अफसरों की वजह से 12 जुलाई
को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एपीएस भर्ती की सीबीआइ जांच पर सहमति बनने
के बाद भी संस्तुति में पूरे दो माह लग गए।1अपर निजी सचिव (उप्र सचिवालय)
के 250 पदों पर तीन अक्टूबर, 2017 को यूपीपीएससी से परिणाम घोषित होने के
दूसरे दिन से ही इस पर गंभीर आरोप लगने शुरू हो गए थे। परिणाम की तह तक
जाकर तमाम अभ्यर्थियों ने पता लगाया कि उन्हें योग्य होने के बावजूद बाहर
का रास्ता दिखा दिया गया जबकि अधिकांश ऐसे लोगों की भर्ती हुई जिनके करीबी
यूपीपीएससी में कार्यरत हैं। तमाम उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के चहेते हैं।
चयनित लोगों की नियुक्ति भी सचिवालय में अपने करीबी अधिकारियों के
कार्यालय में ही हुई। इसकी शिकायतें सीबीआइ अफसरों से की गईं। चूंकि इस
भर्ती प्रक्रिया के कई चरण 2015 तक ही हो चुके थे ऐसे में सीबीआइ ने को भी
जांच के दायरे में लेते हुए 19 जून, 2018 को पत्र शासन को भेजा, जिसमें
शिकायतों और भर्ती में गंभीर गड़बड़ी का जिक्र करते हुए जांच का प्रस्ताव
रखा।1सूत्र बताते हैं कि सीबीआइ का पत्र शासन में पहुंचते ही बड़े अफसरों
में खलबली मच गई। उसी दिन से कई अफसर जांच रुकवाने की कोशिशों में जुटे और
हर स्तर पर प्रयास हुआ कि पत्रवली मुख्यमंत्री तक न पहुंच सके। इस बीच
दैनिक जागरण में छपी खबर को संज्ञान लेकर एमएलसी देवेंद्र सिंह ने सीधे
राजभवन में गवर्नर के सामने यह मुद्दा उछाल कर सीबीआइ जांच कराने की मांग
रखी। इसके बाद एक और एमएलसी ने ऐसी ही मांग रखी। उधर मुख्य सचिव की
अध्यक्षता में 12 जुलाई 2018 को हुई बैठक में सीबीआइ के पत्र को संज्ञान
लेकर एपीएस भर्ती की गड़बड़ियों चर्चा की गई और अंतत: इसकी सीबीआइ जांच
कराने पर सहमति जता दी। मुख्यमंत्री ने अंतत: मंगलवार को सीबीआइ जांच की
संस्तुति कर दी।