वाह रे शिक्षा विभाग, बेटे का जूता बाप के पैर में

श्रावस्ती : परिषदीय स्कूलों में छात्र-छात्राओं को वितरित किए जाने वाले जूते और मोजे आ चुके हैं। इसकी सूचना मिलते ही बच्चे खुशी से चहक उठे हैं, लेकिन बेसाइज के जूतों ने अधिकारियों व शिक्षकों की परेशानी बढ़ा दी है।
शिक्षक खुद बच्चों के पैरों में जूते पहना रहे हैं। नाप सही नहीं होने पर बच्चे गुरू जी से दूसरे जूते की डिमाड कर रहे हैं। इससे उन्हें बीआरसी केंद्रों का दिन में दो से तीन बार चक्कर लगाना पड़ रहा है। शिक्षकों की इस समस्या को जानने के लिए बुधवार को 'दैनिक जागरण' ने जमुनहा तहसील क्षेत्र के विभिन्न स्कूलों का दौरा कर इस मामले की पड़ताल की।

केस एक : प्राथमिक विद्यालय नेवरिया में कुल बच्चों की संख्या 155 है। लेकिन जूते महज 150 ही आए हैं। इनमें से पचास जूते बच्चों के पैर के आकार से बड़े हैं। जिन्हें बदलने के लिए वापस भेजा गया है, लेकिन अभी तक बदलकर वापस नहीं मिले हैं। बच्चों और उनके अभिभावकों से विवाद न होने पाए इसलिए अभी तक जूतों का वितरण भी नहीं कराया गया है। प्रधान शिक्षिका साजदा नौसाद ने बताया कि पूरे जूते न होने के कारण बच्चों में जूता नही बंट सका है।
केस दो :उच्च प्राथमिक विद्यालय नेवरिया में बच्चों की संख्या एक सैकड़ा है। जूते भी इतने ही आए हैं। लेकिन यहा पर लगभग 80 प्रतिशत जूते बड़े साइज के बाटे गए है। जिसके कारण बच्चे जूते पहन कर नहीं आते हैं। कक्षा सात के छात्र मोनू प्रजापति ने बताया कि उसको मिला जूता उसके पापा के पैर में आ जाता है। वही मनीष कुमार का कहना है कि उसका भी जूता उसके पापा के पैरों के साइज का है जिसे वह पहन कर नहीं आता है।
केस तीन : प्राथमिक विद्यालय पिपरी के 95 बच्चों के लिए इतने ही जूते आए हैं। विद्यालय में 70 बच्चों को जूतों का वितरण हो चुका है। इन जूतों में से 25 ऐसे जूते हैं, जोकि आकार में बड़े हैं, जिस कारण बच्चों में नहीं बाटा जा सका है। बड़े साइज का जूता बदलना शिक्षक व शिक्षिकाओं के लिए भारी मुसीबत का सबब बना हुआ है। जिस कारण कई बच्चों को यही बेमेल जूतों का वितरण किया जा रहा है।


केस चार: प्राथमिक विद्यालय तुलसीपुर में 143 बच्चों के लिए पर्याप्त जूते हैं। इनमें से दस जूते फुल साइज के होने के कारण नहीं बंट सके हैं। शेष का वितरण करा दिया गया है। ककन्धू न्याय पंचायत के एनपीआरसी राम मनोरथ का कहना है कि बीआरसी कार्यालय पर जूता उपलब्ध नहीं है। जिस करण अब जूता बदला नहीं जा सकता है। वंचित बच्चों को जूते किस तरह से उपलब्ध हो सकेंगे, इस प्रश्न पर वह चुप्पी साध जाते है।