नई दिल्ली: स्कूली शिक्षा के सुधार में तेजी से जुटी मोदी सरकार के
रास्ते का एक बड़ा रोड़ा फिलहाल हट गया है। स्कूलों में आठवीं तक बच्चों को
फेल न करने की नीति में बदलाव संसद में पास हो गया है। इसके तहत स्कूलों
में अब पांचवीं से आठवीं तक के छात्रों को फेल भी किया जा सकेगा।
हालांकि उन्हें इससे पहले पास होने का एक मौका दिया जाएगा। इसके लिए मुख्य परीक्षा के दो महीने के भीतर ही दूसरी बार फिर परीक्षा ली जाएगी।
गुरुवार को राज्यसभा ने भी निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2019 को मंजूरी दे दी है? लोकसभा में यह बिल पिछले साल ही पास हो गया था। ऐसे में अब इस विधेयक पर अमल का रास्ता साफ हो गया है। राज्यसभा में निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2019 को पेश करते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने स्कूली शिक्षा को मजबूत बनाने के लिए इस बदलाव को जरूरी बताया। साथ ही कहा कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार भी होगा और बच्चे पढ़ाई-लिखाई में अधिक रुचि लेंगे। उन्होंने इस दौरान चर्चा में कांग्रेस सहित दूसरे दलों के सदस्यों की ओर से उठाए गई आशंकाओं को भी साफ किया। उन्होंने कहा कि इस बदलाव का मतलब यह कतई नहीं है कि किसी को स्कूल से निकाला जा रहा है। यह बदलाव अभिभावकों की मांग के बाद ही किया गया है। इस चर्चा में सभी दलों के सदस्यों ने हिस्सा लिया।
25 राज्य थे बदलाव के पक्ष में : मानव संसाधन विकास मंत्रलय की मानें तो इस बदलाव के बाद स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आएगा। कैब (सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन) की बैठक में रखे गए इस प्रस्ताव को 25 राज्यों ने अपनी सहमति दी थी।
हालांकि उन्हें इससे पहले पास होने का एक मौका दिया जाएगा। इसके लिए मुख्य परीक्षा के दो महीने के भीतर ही दूसरी बार फिर परीक्षा ली जाएगी।
गुरुवार को राज्यसभा ने भी निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2019 को मंजूरी दे दी है? लोकसभा में यह बिल पिछले साल ही पास हो गया था। ऐसे में अब इस विधेयक पर अमल का रास्ता साफ हो गया है। राज्यसभा में निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2019 को पेश करते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने स्कूली शिक्षा को मजबूत बनाने के लिए इस बदलाव को जरूरी बताया। साथ ही कहा कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार भी होगा और बच्चे पढ़ाई-लिखाई में अधिक रुचि लेंगे। उन्होंने इस दौरान चर्चा में कांग्रेस सहित दूसरे दलों के सदस्यों की ओर से उठाए गई आशंकाओं को भी साफ किया। उन्होंने कहा कि इस बदलाव का मतलब यह कतई नहीं है कि किसी को स्कूल से निकाला जा रहा है। यह बदलाव अभिभावकों की मांग के बाद ही किया गया है। इस चर्चा में सभी दलों के सदस्यों ने हिस्सा लिया।
25 राज्य थे बदलाव के पक्ष में : मानव संसाधन विकास मंत्रलय की मानें तो इस बदलाव के बाद स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आएगा। कैब (सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन) की बैठक में रखे गए इस प्रस्ताव को 25 राज्यों ने अपनी सहमति दी थी।