इलाहाबाद (एसएनबी)। हस्तिनापुर के कौरव राजा धृतराष्ट्र चाहते तो महाभारत का युद्धरुक सकता था लेकिन पुत्र मोह में इसकाध्यान नहीं दिया जिससे कि उनके वंश का अंत हो गया।ठीक यही बात साढ़े तीन लाख शिक्षामित्रों के भविष्य के साथ हुआ।प्रदेश की सपा सरकार ने वोट बैंक की राजनीति के मोह में पौने दो लाख शिक्षामित्रों को जहां सड़क पर ला दिया वहीं बचे हुए
शिक्षामित्रों के भविष्य को भी खराब करने पर तुली हुई है। इस वोट बैंक (शिक्षामित्रों के समायोजन संग्राम पर)की राजनीति पर प्रदेश की सपा सरकार ने पानी की तरह पैसा बहाया। बेसिक शिक्षा के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस पूरी लड़ाईमें 10 अरब रुपये से अधिक खर्च हुए है लेकिन नतीजा सिर्फ शून्य रहा और ऊपर से जलालत भी हुई।इसके बावजूद प्रदेश की सपा सरकार कुछभी सीखने और सबक लेने का तैयार नहीं है। करीब 16-17 वर्षपहले ग्राम समिति ने शिक्षा मित्रों का संविदा कर्मीपर चयन किया था।उनको गांव के परिषदीय विद्यालयों में 11 माह का शिक्षण करना था उसके बाद उनका फिर से रिनवल होता रहता।शिक्षामित्रों की यह संख्या बढ़ते-बढ़ते साढ़े तीन लाख हो गयी।इसी बीच शिक्षामित्रों ने संगठन बना लिया और वह स्थायी किये जाने की मांग करने लगे। प्रदेश की सपा सरकार ने शिक्षामित्रों की अधिक संख्या को देखकर उनको वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने की पहल शुरूकर दिया।शिक्षामित्रों को पहले दो वर्षीय बीटीसी कोर्स दूरस्थ शिक्षा से करा दिया। इस पर भी अरबों रुपये खर्च हुए।उसके बाद आनन-फानन में 58 हजार शिक्षामित्रों को पहले चरण में समायोजित करके परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक बना दिया।दूसरे चरण में करीब 93 हजार शिक्षामित्रों में से 70 हजार से अधिक को सहायक अध्यापक बनाकर आनन-फानन में वेतन जारी कर दिया गया।
उधर, बीटीसी-विशिष्ट बीटीसी मोर्चाके अभ्यर्थियों ने शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक बनाये जाने के विरोध में इलाहाबाद हाईकोर्ट व उसकी खण्डपीठ लखनऊ एवं सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुकदमें बाजी शुरूकर दिया।प्रदेश की सपा सरकार शिक्षामित्रों के समायोजन के दौरान सभी गड़बड़ी और खामियां छिपाते हुए उनके समायोजन को सही साबित करने के लिए हाईकोर्टऔर सुप्रीम कोर्ट में महंग अधिवक्ताओं की फौज खड़ी कर दिया।इस पर भी दो अरब रुपये से अधिक खर्च किये गये।सबसे बड़ी बात यह है कि एनसीटीई ने हाईकोर्ट की लखनऊ खण्ड पीठ में करीब एक वर्ष पहले ही शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक पद पर हो रहे समायोजन को गलत मानते हुए शपथपत्र दाखिल कर दिया था लेकिन प्रदेश सरकार सत्ता के मद में मदान्ध हो चुकी थी।उसने अपने मन की कर डाली और शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाकर फटाफट संबंधित जिलों के बीएसए से वेतन भी ज् ारी करवा दिया।हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन को रद करते हुए प्रदेश सरकार को फटकार भी लगायी है लेकिन प्रदेश की सपा सरकार मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में लग गयी है।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
शिक्षामित्रों के भविष्य को भी खराब करने पर तुली हुई है। इस वोट बैंक (शिक्षामित्रों के समायोजन संग्राम पर)की राजनीति पर प्रदेश की सपा सरकार ने पानी की तरह पैसा बहाया। बेसिक शिक्षा के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस पूरी लड़ाईमें 10 अरब रुपये से अधिक खर्च हुए है लेकिन नतीजा सिर्फ शून्य रहा और ऊपर से जलालत भी हुई।इसके बावजूद प्रदेश की सपा सरकार कुछभी सीखने और सबक लेने का तैयार नहीं है। करीब 16-17 वर्षपहले ग्राम समिति ने शिक्षा मित्रों का संविदा कर्मीपर चयन किया था।उनको गांव के परिषदीय विद्यालयों में 11 माह का शिक्षण करना था उसके बाद उनका फिर से रिनवल होता रहता।शिक्षामित्रों की यह संख्या बढ़ते-बढ़ते साढ़े तीन लाख हो गयी।इसी बीच शिक्षामित्रों ने संगठन बना लिया और वह स्थायी किये जाने की मांग करने लगे। प्रदेश की सपा सरकार ने शिक्षामित्रों की अधिक संख्या को देखकर उनको वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने की पहल शुरूकर दिया।शिक्षामित्रों को पहले दो वर्षीय बीटीसी कोर्स दूरस्थ शिक्षा से करा दिया। इस पर भी अरबों रुपये खर्च हुए।उसके बाद आनन-फानन में 58 हजार शिक्षामित्रों को पहले चरण में समायोजित करके परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक बना दिया।दूसरे चरण में करीब 93 हजार शिक्षामित्रों में से 70 हजार से अधिक को सहायक अध्यापक बनाकर आनन-फानन में वेतन जारी कर दिया गया।
उधर, बीटीसी-विशिष्ट बीटीसी मोर्चाके अभ्यर्थियों ने शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक बनाये जाने के विरोध में इलाहाबाद हाईकोर्ट व उसकी खण्डपीठ लखनऊ एवं सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुकदमें बाजी शुरूकर दिया।प्रदेश की सपा सरकार शिक्षामित्रों के समायोजन के दौरान सभी गड़बड़ी और खामियां छिपाते हुए उनके समायोजन को सही साबित करने के लिए हाईकोर्टऔर सुप्रीम कोर्ट में महंग अधिवक्ताओं की फौज खड़ी कर दिया।इस पर भी दो अरब रुपये से अधिक खर्च किये गये।सबसे बड़ी बात यह है कि एनसीटीई ने हाईकोर्ट की लखनऊ खण्ड पीठ में करीब एक वर्ष पहले ही शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक पद पर हो रहे समायोजन को गलत मानते हुए शपथपत्र दाखिल कर दिया था लेकिन प्रदेश सरकार सत्ता के मद में मदान्ध हो चुकी थी।उसने अपने मन की कर डाली और शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाकर फटाफट संबंधित जिलों के बीएसए से वेतन भी ज् ारी करवा दिया।हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन को रद करते हुए प्रदेश सरकार को फटकार भी लगायी है लेकिन प्रदेश की सपा सरकार मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में लग गयी है।
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