लखनऊ । इलाहाबाद उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायमूर्ति की अध्यक्षता वाली तीन जजों की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश में लगभग सवा लाख शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर हुआ समायोजन निरस्त कर दिया है । जिसके परिणाम स्वरुप 1.72 लाख शिक्षामित्रों के परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है ।
दिनांक 3 जनवरी 2011 को बेसिक सचिव अनिल संत ने एनसीटीई से प्रशिक्षण की इजाजत मांगी तथा दिनांक 14 जनवरी 2011 को स्नातक उत्तीर्ण शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण देने की इजाजत मिल गयी । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बीएड वालों की याचिका पर प्रशिक्षण पर रोक लगा दी थी मगर दो जजों की खंडपीठ ने यह कहकर स्थगन हटा दिया कि इनके प्रशिक्षण को एकल बेंच के फैसले के आधीन कर दिया जाये और प्रशिक्षण यदि अवैध होता है तो शिक्षामित्र नौकरी का दावा नहीं करेंगे । मौजूदा सरकार ने नियमों में परिवर्तन करके शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बना दिया जिसे की बीएड-बीटीसी वालों ने कोर्ट में चुनौती दे दी तो शिक्षामित्रों का समायोजन भी कोर्ट के फैसले के आधीन कर दिया गया और शिक्षमित्र सहायक अध्यापक के रूप में वेतन पाने लगे । माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जब ओपन कोर्ट में फैसला सुनाया तो आदेश शिक्षामित्रों के विरुद्ध गया । इस प्रकार चुनाव नजदीक देखकर राजनैतिक पार्टियाँ लालच देती हैं परन्तु कोर्ट ने उनके मनसूबे को चकनाचूर कर दिया था जैसे मनमोहन सरकार के जाट आरक्षण , महाराष्ट्र सरकार के मराठा-मुस्लिम आरक्षण , आंध्रा सरकार के मुस्लिम आरक्षण और मायावती सरकार के प्रमोशन में आरक्षण के फैसले को भी कोर्ट ने रद्द कर पार्टियों के वोटबैंक को झटका दिया ।शिक्षामित्र भी राजनैतिक लोलीपोप का शिकार बने । सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इनके चयन में रिजर्वेशन पालिसी का अनुशरण नहीं हुआ था जिससे ये कोर्ट में टिक न सके । अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इनकी उपयोगिता को कैसे साबित किया जाये। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में शिक्षकों से अतिरिक्त कार्य कराने से रोका था। अतः शिक्षामित्रों को जनगणना , चुनाव , पोलियो एवं छोटे -छोटे बच्चों के संरक्षण में कार्य हेतु लेना चाहिये या फिर इन लोगों के भविष्य पर उचित निर्णय लेना चाहिए । सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाने के पूर्व यह भी ध्यान देना चाहिए कि शिक्षामित्र स्कीम ख़त्म हो चुकी है अतः कही इनका भविष्य और मझधार में न अटक जाये ।
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