नाराज़ शिक्षा-मित्र जबरन बंद करा रहे स्कूल, क़ानून व्यवस्था का संकट गहराया – सरकार लड़ेगी शिक्षा-मित्रों की लड़ाई

उत्तर प्रदेश में शिक्षा-मित्रों की नौकरी पर क़ानून की कुल्हाड़ी भीषण बेरा़ेजगारी दूर करने के प्रयासों पर भारी पड़ रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जबसे शिक्षा-मित्रों को सरकारी शिक्षक मानने से इंकार किया है, तबसे प्रदेश में बेसिक शिक्षा ठप्प है. स्कूल बंद पड़े हैं. शिक्षा-मित्रों का संघर्ष सड़क पर है.
अदालत के फैसले से क्षोभ इतना है कि आत्महत्याएं हो रही हैं या सदमे से शिक्षा-मित्रों की मौत हो रही है. ऐसी तक़रीबन दर्जन भर मौतों से चिंतित उत्तर प्रदेश सरकार ने भी शिक्षा-मित्रों को सांत्वना देने और उनके पक्ष में आगे की क़ानूनी लड़ाई लड़ने की घोषणा की है.

बीते 12 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एक लाख 75 हज़ार शिक्षा-मित्रों को प्राथमिक विद्यालयों का अध्यापक बनाए जाने का सरकारी आदेश खारिज करने का फैसला सुनाया. अदालत ने निर्धारित योग्यता न होने और बिना संस्तुति वाले पदों के आधार पर इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया. अधिवक्ता हिमांशु राघव और अन्य की याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा एवं न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता की तीन सदस्यीय पीठ ने एक लाख 75 हज़ार शिक्षा-मित्रों का समायोजन निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा कि सरकार की तऱफ से नियमों में किया गया संशोधन असंवैधानिक था. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को समायोजन करने का अधिकार नहीं है. उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक स्कूलों में संविदा पर नियुक्त एक लाख 75 हज़ार शिक्षा-मित्रों को प्रशिक्षण के बाद प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक बनाने के प्रस्ताव को पिछले साल मंजूरी दी थी. मंत्रिमंडल की बैठक के दो दिनों बाद ही बेसिक शिक्षा निदेशालय को नियमावली बनाने का निर्देश दिया गया और महज तीन हज़ार पांच सौ रुपये मासिक मानदेय पर काम करने वाले शिक्षा-मित्र बाकायदा निर्धारित वेतनमान पर सहायक शिक्षक बना दिए गए. इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह भी कहा कि शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में कोई भी ढील देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल 19 जून को शिक्षक नियमावली 1981 में संशोधन कर शिक्षा-मित्रों को समयबद्ध तरीके से समायोजित करने का शासनादेश जारी किया था. सरकार ने शिक्षा-मित्रों की नियुक्ति सहायक शिक्षक के पद पर की थी. नियमों के तहत सहायक शिक्षक को कम से कम स्नातक एवं बीटीसी होना आवश्यक है, लेकिन शिक्षा-मित्र केवल 12वीं पास हैं. उत्तर प्रदेश में वर्ष 2001 में शिक्षा-मित्र योजना शुरू की गई थी. इसके तहत इंटर पास युवक-युवतियों को उनके गांव या पास के ही स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए संविदा पर नियुक्त किया गया था. समाजवादी पार्टी ने 2012 में विधानसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा-पत्र में शिक्षा-मित्रों को स्थायी शिक्षक बनाने का वादा किया था. हाईकोर्ट के फैसले से एक लाख 75 हज़ार शिक्षा-मित्रों की ज़िंदगी अधर में फंस गई है. इससे आहत क़रीब दर्जन भर शिक्षा-मित्रों की अलग-अलग जगहों पर मौत हो गई. इनमें कुछ शिक्षा-मित्रों की सदमे से मौत हुई, तो कुछ ने आत्महत्या कर ली. बरेली और सीतापुर समेत कई ज़िलों के हज़ारों शिक्षा-मित्रों ने राष्ट्रपति को पत्र भेजकर इच्छा-मृत्यु की इजाजत देने की मांग की है. गाजीपुर में शिक्षा-मित्र ने सल्फास खाकर खुदकुशी कर ली, तो लखीमपुर खीरी के फूलबेहड़ ब्लॉक के शिक्षा-मित्र ने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली.

इसी तरह बस्ती ज़िले के भानपुर में एक शिक्षा-मित्र की मौत सदमे के कारण दिमाग की नस फटने से हो गई. एटा में समायोजित शिक्षक महिपाल सिंह ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली. कन्नौज में जनखत स्थित प्राइमरी स्कूल में तैनात शिक्षा-मित्र बाबू सिंह ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. मिर्जापुर में भी शिक्षा-मित्र ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. बहराइच में चित्तौरा के जानीजोत गांव में शिक्षा-मित्र पूनम देवी की हार्ट अटैक से मौत हो गई. शाहजहांपुर में महिला शिक्षा-मित्र निर्मला को हाईकोर्ट का फैसला सुनते ही दिल का दौरा पड़ा, उनकी हालत गंभीर है. अलग-अलग स्थानों से ऐसी सूचनाएं लगातार आ रही हैं. शिक्षा-मित्रों की मौतों से चिंतित राज्य सरकार के हवाले से प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविंद चौधरी को ऐलान करना पड़ा कि उत्तर प्रदेश सरकार उनके साथ है और वह हाईकोर्ट के निर्णय के ़िखला़फ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी. बेसिक शिक्षा मंत्री ने हताश शिक्षा-मित्रों से अपील की है कि वे धैर्य एवं सूझबूझ से काम लें और कोई ऐसा अनुचित क़दम न उठाएं, जिससे उन्हें और उनके परिवार को परेशानी का सामना करना पड़े. हाईकोर्ट के ़फैसले के 24 घंटे के दरम्यान ही प्रदेश में सात शिक्षा-मित्रों ने जान दे दी थी. राज्य के मुख्य सचिव आलोक रंजन ने घोषणा की कि शिक्षा-मित्रों की अस्वाभाविक मौतों के मामले में सरकार पीड़ित परिवारों को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवज़ा देगी. सभी ज़िलों के डीएम से कहा गया कि इन मामलों की जांच कर मुआवज़ा दें.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश में क़ानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका बढ़ गई है. हाईकोर्ट के ़फैसले से नाराज़ शिक्षा-मित्र प्रदेश में जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं और स्कूलों को बंद करा रहे हैं. शिक्षा-मित्रों के विरोध के कारण प्रदेश के 70 फीसद स्कूल जबरन बंद करा दिए गए. रायबरेली, बरेली, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, कौशांबी, प्रतापगढ़, सीतापुर, बस्ती, फैजाबाद, बाराबंकी, वाराणसी, अमेठी, हरदोई समेत कई ज़िलों में शिक्षा-मित्रों का प्रदर्शन लगातार जारी है और वहां स्कूल बंद कराए जा रहे हैं. कई ज़िलों में सैकड़ों स्कूलों में ताले नहीं खुले, तो लखनऊ, बस्ती, बरेली, अंबेडकरनगर में शिक्षा-मित्रों ने स्कूल पहुंच कर कक्षाओं में ताले डाल दिए और बच्चों को घर भेज दिया. ज़्यादातर ज़िलों में मिड डे मील नहीं बंटा. वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय के बाहर घंटों प्रदर्शन हुआ और प्रधानमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन भी सौंपा गया, जिसमें राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की अधिसूचना 23 अगस्त, 2010 के पैरा चार में संशोधन की मांग उठाई गई है. शिक्षा-मित्रों ने ऐलान किया है कि केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार को बरेली में घुसने नहीं दिया जाएगा. ज़िलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों के ज़रिये शिक्षा-मित्रों के संगठनों से बातचीत करके उनके द्वारा किए जाने वाले विरोध प्रदर्शनों के बजाय उन्हें क़ानूनी विकल्पों पर भरोसा करने के लिए कहा जा रहा है.

शिक्षा-मित्र उत्तर प्रदेश सरकार पर पूरी तैयारी से केस की पैरवी न करने का आरोप लगा रहे हैं. केंद्र सरकार से भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की जा रही है. लखनऊ में राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी नई शिक्षा नीति पर आयोजित बैठक में शरीक होने आईं, तो वहां भी शिक्षा-मित्रों ने प्रदर्शन किया. बाद में शिक्षा-मित्रों के तीन सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल से स्मृति ने अकेले में बातचीत की. लखनऊ शिक्षा-मित्र संघ के अध्यक्ष सुशील कुमार यादव ने कहा कि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने आश्वासन दिया है कि आदेश की प्रति मिलने के बाद अदालत की आपत्तियां दूर करने की कोशिश की जाएगी और मामले का जल्द ही समाधान निकाला जाएगा.

शिक्षा-मित्रों से भेदभाव का आरोप
उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविंद चौधरी ने कहा कि शिक्षा-मित्रों के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश से भेदभाव किया जा रहा है. केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार थी, तो उत्तराखंड में बिना टीईटी परीक्षा दिए लोग शिक्षक बन गए. मौजूदा सरकार में ही महाराष्ट्र में बिना टीईटी किए लोग शिक्षक बन गए. यह भेदभाव ठीक नहीं है. हमने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के सामने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. चौधरी ने शिक्षा-मित्रों से कहा, मैं आपका मुख्य अभिभावक हूं और आपके हितों की रक्षा के लिए जब हमने आगे क़दम बढ़ाए हैं, तो आपको धैर्यपूर्वक न्याय प्राप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए. हमारी परिषदीय शिक्षा में आपके बहुमूल्य योगदान को सरकार समझती है और इसी को दृष्टिगत रखते हुए हमने यह फैसला किया है कि शिक्षा-मित्रों के हित में सरकार हर क़दम उठाएगी.

शिक्षा-मित्रों को सपा का समर्थन
समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के ़फैसले से शिक्षा-मित्रों में आक्रोश और निराशा है. शिक्षा-मित्रों के साथ समाजवादी पार्टी की पूरी सहानुभूति है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और उनके निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के ़फैसले के ़िखला़फ अपील की जाएगी. शिक्षा-मित्रों को न्याय दिलाने में समाजवादी पार्टी और सरकार कतई पीछे नहीं रहेगी. समाजवादी पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र 2012 में शिक्षा शीर्षक के तहत स्पष्ट वादा किया है कि प्रदेश के विभिन्न विद्यालयों में कार्यरत शिक्षा-मित्रों को नियमित करते हुए उन्हें समायोजित कर दिया जाएगा. समाजवादी पार्टी ने शिक्षा-मित्रों को जो भरोसा दिलाया है, उसे अवश्य पूरा किया जाएगा.

भाजपा सांसद ने सरकार को दोषी ठहराया
मोहनलालगंज से भाजपा के सांसद एवं पारख महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौशल किशोर ने शिक्षा-मित्रों की सेवा समाप्ति के फैसले के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने यदि शिक्षा-मित्रों को सहायक अध्यापक घोषित न करके सहायक अध्यापकों के बराबर वेतनमान देने एवं नियमित करने का निर्णय किया होता, तो उन्हें हार का मुंह न देखना पड़ता. अभी भी समय है कि उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षा-मित्रों को नियमित करके सहायक अध्यापक का पद न देकर उनके बराबर वेतनमान देने का अध्यादेश जारी कर दे, तो शिक्षा-मित्रों की पीड़ा ़खत्म की जा सकती है. भाजपा सांसद ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव सरकार ने जानबूझ कर ऐसी स्थिति पैदा की है, जिसकी वजह से हाईकोर्ट को शिक्षा-मित्रों के ़िखला़फ फैसला करना पड़ा. शिक्षा-मित्रों की इस दुर्दशा के पीछे समाजवादी पार्टी की सुनियोजित राजनीति है, जिसे समझने और समझाने की ज़रूरत है.


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