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अनुदेशक भर्ती नियमावली को चुनौती, राज्य सरकार से जवाब तलब

विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र राज्य औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में 852 अनुदेशकों की भर्ती में गैर प्रशिक्षितों को भी शामिल कर सीटीआइ डिग्री को वरीयता देने की नियमावली की वैधता पर राज्य सरकार एवं अधीनस्थ सेवा आयोग से एक महीने में जवाब मांगा है।
कोर्ट ने कहा है कि इस दौरान जो भी कार्यवाही की जाएगी वह कोर्ट के आदेश से प्रभावी होगी। याचिका की सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी।1यह आदेश न्यायमूर्ति वीके शुक्ल तथा न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा की खंडपीठ ने बेरोजगार औद्योगिक कल्याण समिति व 48 अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका में 30 जनवरी 2014 की नियमावली की वैधता को चुनौती दी गई है।

याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी व राघवेंद्र मिश्र ने बहस की। याची का कहना है कि नेशनल कौंसिल फॉर वोकेशनल ट्रेनिंग की गाइड लाइन के तहत सभी राज्यों को नियम संशोधित कर सीटीआइ डिग्री को अनुदेशक भर्ती के लिए अनिवार्य करने का निर्देश दिया गया। राज्य सरकार ने 2005 में इसे लागू भी किया। 1बाद में नौ दिसंबर 2005 को नियम संशोधित कर सीटीआइ डिग्री के साथ हाईस्कूल डिग्री धारकों को भी योग्य माना और कहा कि प्रशिक्षण को वरीयता दी जाएगी। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने संशोधित नियम रद कर दिया। इसके खिलाफ अपील भी खारिज कर दी गई है। इस फैसले के बावजूद नियमावली में प्रशिक्षण को वरीयता का उपबंध किया गया है। याची अधिवक्ता त्रिपाठी का कहना है कि सरकार की नियमावली कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। भर्ती योग्यता का निर्धारण करने का अधिकार एनसीवीटी को है, राज्य सरकार को नहीं है। क्वालिटी प्वाइंट हाईस्कूल का 50 फीसदी व प्रशिक्षण का 20 फीसदी अंक रखा गया है। यह मूल भावना के विपरीत है। तकनीकी पद पर गैर तकनीकी की नियुक्ति उद्देश्य के विपरीत है।

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