नींव को मजबूत करना है तो दीर्घकालीन शिक्षा नीति बनानी होगी।
-----शिक्षकों की नियुक्ति के नए मानक के मुताबिक इंटर की कक्षाओं के एक
सेक्शन में 120 छात्र संख्या तक एक ही शिक्षक अनुमन्य होगा। अगर 121 या
उससे अधिक हैं तभी दूसरा शिक्षक मिलेगा।
ऐसा आदेश शिक्षकों के समायोजन के लिए किया गया है। हाईस्कूल में 98 छात्र होने पर ही दूसरा शिक्षक मिल सकेगा। विभाग के जानकारों का कहना है कि पहले माध्यमिक स्तर पर विषयों के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति होती थी लेकिन, इस बार विद्यार्थियों की संख्या को आधार बना दिया गया है। तर्क है कि इंटर स्तर पर संबंधित विषय का विशेषज्ञ शिक्षक होना जरूरी है। अन्यथा पढ़ाई का स्तर बनाए रखना मुश्किल होगा। एलटी ग्रेड शिक्षकों ने विभाग के इस आदेश को उत्पीड़न माना है। जबकि कुछ अन्य को आशंका है इन मानकों के लागू होने से कई विद्यालयों में विषयों को पढ़ाने के लिए शिक्षक बचेंगे ही नहीं। इसका खामियाजा सीधे छात्रों को भुगतना पड़ेगा। सभी को मान लेना चाहिए कि विद्यालयों और शिक्षकों की भूमिका देश-प्रदेश की नींव को मजबूत करने में है। इसका खुद मजबूत होना जरूरी है वास्तव में तभी नींव मजबूत हो पाएगी। इस प्रयास के परिणाम तुरंत नहीं दिखेंगे, बल्कि कई वर्ष बाद दिखाई देते हैं, यूं कहें दशक बाद। शिक्षा और शिक्षक नीति में बहुत सोच-विचार के बाद ही योजनाएं बनाई जानी चाहिए। सरकार आएं या जाएं इनमें तब भी कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। चाहे किसी भी विचारधारा की पार्टी सत्ता में आए भावी पीढ़ी की शिक्षा पर उसका कोई असर नहीं दिखना चाहिए। शिष्य कैसा हो, शिक्षक कौन बन सकता है, अभिभावकों की कितनी भूमिका रहेगी, स्कूल में क्या जरूरी है, इस पर आम राय बनाई जाए। बच्चों का भविष्य एक बार जिस दिशा बढ़ जाएगा, उसमें संशोधन असंभव होता है। पाठ्यक्रम अवश्य तीन साल के अंतराल में अपग्रेड किया जा सकता है, इसमें भी वही विषय जिनमें साल दर साल नई खोज हो रही हो, नए उदाहरण घटित हो रहे हों। वास्तव में शिक्षा को वह दर्जा नहीं मिल पाया है जो उसे मिलना चाहिए, सरकारें बदलने के साथ हर स्तर पर बदलाव आ जाता है। किसी को आरक्षण दिखता है, तो किसी शिक्षकों की तैनाती, किसी को स्कूलों की मान्यता तो किसी को पाठ्यक्रम से छेड़छाड़ पसंद आती है। कई बार अदालतों को हस्तक्षेप करना पड़ा है। अब अगर देश-प्रदेश की नींव को मजबूत करना है तो दीर्घकालीन शिक्षा नीति बनानी होगी।
[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]
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ऐसा आदेश शिक्षकों के समायोजन के लिए किया गया है। हाईस्कूल में 98 छात्र होने पर ही दूसरा शिक्षक मिल सकेगा। विभाग के जानकारों का कहना है कि पहले माध्यमिक स्तर पर विषयों के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति होती थी लेकिन, इस बार विद्यार्थियों की संख्या को आधार बना दिया गया है। तर्क है कि इंटर स्तर पर संबंधित विषय का विशेषज्ञ शिक्षक होना जरूरी है। अन्यथा पढ़ाई का स्तर बनाए रखना मुश्किल होगा। एलटी ग्रेड शिक्षकों ने विभाग के इस आदेश को उत्पीड़न माना है। जबकि कुछ अन्य को आशंका है इन मानकों के लागू होने से कई विद्यालयों में विषयों को पढ़ाने के लिए शिक्षक बचेंगे ही नहीं। इसका खामियाजा सीधे छात्रों को भुगतना पड़ेगा। सभी को मान लेना चाहिए कि विद्यालयों और शिक्षकों की भूमिका देश-प्रदेश की नींव को मजबूत करने में है। इसका खुद मजबूत होना जरूरी है वास्तव में तभी नींव मजबूत हो पाएगी। इस प्रयास के परिणाम तुरंत नहीं दिखेंगे, बल्कि कई वर्ष बाद दिखाई देते हैं, यूं कहें दशक बाद। शिक्षा और शिक्षक नीति में बहुत सोच-विचार के बाद ही योजनाएं बनाई जानी चाहिए। सरकार आएं या जाएं इनमें तब भी कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। चाहे किसी भी विचारधारा की पार्टी सत्ता में आए भावी पीढ़ी की शिक्षा पर उसका कोई असर नहीं दिखना चाहिए। शिष्य कैसा हो, शिक्षक कौन बन सकता है, अभिभावकों की कितनी भूमिका रहेगी, स्कूल में क्या जरूरी है, इस पर आम राय बनाई जाए। बच्चों का भविष्य एक बार जिस दिशा बढ़ जाएगा, उसमें संशोधन असंभव होता है। पाठ्यक्रम अवश्य तीन साल के अंतराल में अपग्रेड किया जा सकता है, इसमें भी वही विषय जिनमें साल दर साल नई खोज हो रही हो, नए उदाहरण घटित हो रहे हों। वास्तव में शिक्षा को वह दर्जा नहीं मिल पाया है जो उसे मिलना चाहिए, सरकारें बदलने के साथ हर स्तर पर बदलाव आ जाता है। किसी को आरक्षण दिखता है, तो किसी शिक्षकों की तैनाती, किसी को स्कूलों की मान्यता तो किसी को पाठ्यक्रम से छेड़छाड़ पसंद आती है। कई बार अदालतों को हस्तक्षेप करना पड़ा है। अब अगर देश-प्रदेश की नींव को मजबूत करना है तो दीर्घकालीन शिक्षा नीति बनानी होगी।
[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]
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