दिल्ली सरकार को आड़े हाथ लेते हुए हाईकोर्ट ने अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही वर्ष 2010 से काम कर रहे अतिथि शिक्षकों को नियमित करने पर भी रोक लगा दी है।
जस्टिस ए.के. चावला ने केजरीवाल सरकार को इस मामले में अगले आदेश तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। यानी हाईकोर्ट ने नए सिरे से अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति और 2010 से काम कर रहे शिक्षकों को नियमित करने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।
उधर, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में कैबिनेट ने 15 हजार अतिथि शिक्षकों को नियमित करने के लिए नए विधेयक को मंजूरी दे दी। इसे 4 अक्तूबर को विधानसभा से पारित कराया जाना है। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि सरकार ने तमाम नियम,प्रक्रियाओं का पालन किया है।
हाईकोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब सरकार की ओर से स्थाई अधिवक्ता रमेश सिंह ने कहा कि अतिथि शिक्षकों को नियमित करने के लिए सरकार विशेष विधेयक ला रही है। इसे 4 अक्तूबर को विधानसभा में पेश किया जाएगा। इस पर जस्टिस चावला ने अधिवक्ता सिंह पूछा कि ‘सरकार यदि नए कानून ला भी रही है तो इसका लाभ नई नियुक्ति वालों को मिलेगा। लेकिन जो लोग बतौर अतिथि शिक्षक 2010 से कार्य कर रहे हैं तो उन्हें इस कानून का लाभ कैसे मिलेगा।’ हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ‘सरकार की ओर से अधिवक्ता सिंह इसका संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए।’ हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 11 अक्तूबर तय की है।
हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में 8914 नियमित शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया वापस लेने के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया है। इससे पहले, सरकार ने 25 सितंबर को मामले में हलफनामा दाखिल किया था। लेकिन आदेश के बावजूद इसमें हाईकोर्ट को यह नहीं बताया था कि नियमित शिक्षकों के खाली पदों को भरने की प्रक्रिया दोबारा से कब शुरू होगी। सरकार ने अपने हलफनामा में हाईकोर्ट को बताया कि सरकारी स्कूलों में नियमित शिक्षकों के खाली पदों को भरने में अतिथि शिक्षकों को वरीयता देने के बावत विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव उपराज्यपाल के पास विचाराधीन है। इस प्रस्ताव पर निर्णय होने तक भर्ती पर अस्थाई रोक जारी रहेगी।क्या है मामला
पिछले साल गैर सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि सरकारी स्कूलों में 26 हजार नियमित शिक्षकों के पद खाली हैं। इनमें नौ हजार नए पद शामिल नहीं है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने 2001 में सरकार को नियमित शिक्षकों की नियुक्ति करने का आदेश दिया था जिसका आज तक पालन नहीं किया गया।
मामले में हाईकोर्ट के अप्रैल, 2017 के आदेश का पालन करते हुए सरकार के आग्रह पर दिल्ली राज्य अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड ने 7 अगस्त को 8914 नियमित शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आवेदन मंगाए थे। लेकिन सरकार के आदेश से बाद बोर्ड ने 24 अगस्त को इस भर्ती प्रक्रिया को वापस ले लिया। भर्ती वापस लेने को अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने इसे कोर्ट की अवमानना बताया। उन्होंने भर्ती वापस लेने के डीएसएसएसबी के 24 अगस्त के आदेश को रद्द करने की मांग की थी।
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जस्टिस ए.के. चावला ने केजरीवाल सरकार को इस मामले में अगले आदेश तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। यानी हाईकोर्ट ने नए सिरे से अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति और 2010 से काम कर रहे शिक्षकों को नियमित करने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।
उधर, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में कैबिनेट ने 15 हजार अतिथि शिक्षकों को नियमित करने के लिए नए विधेयक को मंजूरी दे दी। इसे 4 अक्तूबर को विधानसभा से पारित कराया जाना है। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि सरकार ने तमाम नियम,प्रक्रियाओं का पालन किया है।
हाईकोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब सरकार की ओर से स्थाई अधिवक्ता रमेश सिंह ने कहा कि अतिथि शिक्षकों को नियमित करने के लिए सरकार विशेष विधेयक ला रही है। इसे 4 अक्तूबर को विधानसभा में पेश किया जाएगा। इस पर जस्टिस चावला ने अधिवक्ता सिंह पूछा कि ‘सरकार यदि नए कानून ला भी रही है तो इसका लाभ नई नियुक्ति वालों को मिलेगा। लेकिन जो लोग बतौर अतिथि शिक्षक 2010 से कार्य कर रहे हैं तो उन्हें इस कानून का लाभ कैसे मिलेगा।’ हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ‘सरकार की ओर से अधिवक्ता सिंह इसका संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए।’ हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 11 अक्तूबर तय की है।
हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में 8914 नियमित शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया वापस लेने के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया है। इससे पहले, सरकार ने 25 सितंबर को मामले में हलफनामा दाखिल किया था। लेकिन आदेश के बावजूद इसमें हाईकोर्ट को यह नहीं बताया था कि नियमित शिक्षकों के खाली पदों को भरने की प्रक्रिया दोबारा से कब शुरू होगी। सरकार ने अपने हलफनामा में हाईकोर्ट को बताया कि सरकारी स्कूलों में नियमित शिक्षकों के खाली पदों को भरने में अतिथि शिक्षकों को वरीयता देने के बावत विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव उपराज्यपाल के पास विचाराधीन है। इस प्रस्ताव पर निर्णय होने तक भर्ती पर अस्थाई रोक जारी रहेगी।क्या है मामला
पिछले साल गैर सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि सरकारी स्कूलों में 26 हजार नियमित शिक्षकों के पद खाली हैं। इनमें नौ हजार नए पद शामिल नहीं है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने 2001 में सरकार को नियमित शिक्षकों की नियुक्ति करने का आदेश दिया था जिसका आज तक पालन नहीं किया गया।
मामले में हाईकोर्ट के अप्रैल, 2017 के आदेश का पालन करते हुए सरकार के आग्रह पर दिल्ली राज्य अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड ने 7 अगस्त को 8914 नियमित शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आवेदन मंगाए थे। लेकिन सरकार के आदेश से बाद बोर्ड ने 24 अगस्त को इस भर्ती प्रक्रिया को वापस ले लिया। भर्ती वापस लेने को अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने इसे कोर्ट की अवमानना बताया। उन्होंने भर्ती वापस लेने के डीएसएसएसबी के 24 अगस्त के आदेश को रद्द करने की मांग की थी।
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