सुप्रीम कोर्ट से नहीं सरकार से नाराज हैं शिक्षामित्र
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में शिक्षामित्रों को नियमित करने और सहायक अध्यापक के रूप में बने रहने के लिये उन्हें दो वर्षों में अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करने को कहा है।
कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों को टीईटी की औपचारिक परीक्षा में बैठना होगा और लगातार दो प्रयासों में टीईटी पास करनी होगी। अधिकतर शिक्षामित्रों का कहना है कि वे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर राजी है, लेकिन उनका असली गुस्सा राज्य सरकार द्वारा नये सिरे से तय किये गये 10 हजार रूपये के मासिक मानदेय को लेकर है। सरकार को यह जरूर सोचना चाहिये था कि पहले जो शिक्षामित्र 40 से 45 हजार मासिक वेतन पाते थे, अब वो क्यों कर 10 हजार रूपये का मानदेय स्वीकार करेंगे।
सरकार की इच्छाशक्ति पर बड़ा सवाल
शिक्षामित्रों ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि वे किसी भी कीमत पर हार मानने को तैयार नहीं है। इस अन्याय के खिलाफ वे हर तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं। धरना-प्रदर्शन, आंदोलन से लेकर कानूनी विकल्प जैसे हर हथियार को आजमा रहे हैं। शिक्षामित्रों का कहना है कि वे हार नहीं मानेंगे, इसलिये उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है, जिस पर अगले हफ्ते सुनवाई हो सकती है। शिक्षामित्रों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा है कि राज्य सरकार चाहे तो नियम बनाकर शिक्षामित्रों को पूर्ण अध्यापक का दर्जा दे सकती है। अब ऐसे में सरकार की इच्छाशक्ति पर सवाल उठना लाजमी है। ऐसे शिक्षामित्र जो लंबे समय से राज्य की शिक्षा व्यवस्था का मजबूत स्तंभ रहे हों और संकट की घड़ी में सरकार उनसे किनारा कर ले, तो शिक्षामित्रों में सरकार के खिलाफ रोष होना स्वाभाविक है। समय रहते सरकार को एक बार फिर अपने निर्णय की समीक्षा करनी चाहिये। जितनी जल्दी हो शिक्षामित्रों को उनके संकट और दर्द से उबारने की कोशिश करनी चाहिये।
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हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में शिक्षामित्रों को नियमित करने और सहायक अध्यापक के रूप में बने रहने के लिये उन्हें दो वर्षों में अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करने को कहा है।
कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों को टीईटी की औपचारिक परीक्षा में बैठना होगा और लगातार दो प्रयासों में टीईटी पास करनी होगी। अधिकतर शिक्षामित्रों का कहना है कि वे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर राजी है, लेकिन उनका असली गुस्सा राज्य सरकार द्वारा नये सिरे से तय किये गये 10 हजार रूपये के मासिक मानदेय को लेकर है। सरकार को यह जरूर सोचना चाहिये था कि पहले जो शिक्षामित्र 40 से 45 हजार मासिक वेतन पाते थे, अब वो क्यों कर 10 हजार रूपये का मानदेय स्वीकार करेंगे।
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शिक्षामित्रों ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि वे किसी भी कीमत पर हार मानने को तैयार नहीं है। इस अन्याय के खिलाफ वे हर तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं। धरना-प्रदर्शन, आंदोलन से लेकर कानूनी विकल्प जैसे हर हथियार को आजमा रहे हैं। शिक्षामित्रों का कहना है कि वे हार नहीं मानेंगे, इसलिये उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है, जिस पर अगले हफ्ते सुनवाई हो सकती है। शिक्षामित्रों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा है कि राज्य सरकार चाहे तो नियम बनाकर शिक्षामित्रों को पूर्ण अध्यापक का दर्जा दे सकती है। अब ऐसे में सरकार की इच्छाशक्ति पर सवाल उठना लाजमी है। ऐसे शिक्षामित्र जो लंबे समय से राज्य की शिक्षा व्यवस्था का मजबूत स्तंभ रहे हों और संकट की घड़ी में सरकार उनसे किनारा कर ले, तो शिक्षामित्रों में सरकार के खिलाफ रोष होना स्वाभाविक है। समय रहते सरकार को एक बार फिर अपने निर्णय की समीक्षा करनी चाहिये। जितनी जल्दी हो शिक्षामित्रों को उनके संकट और दर्द से उबारने की कोशिश करनी चाहिये।
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