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क्या है शिक्षामित्रों का कानूनी पहलू और शिक्षा का अधिकार कानून-2009 ?

क्या है कानूनी पहलू?
12 सितंबर 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त कर दिया था। शिक्षामित्र इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
17 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और यू.यू. ललित की विशेष पीठ ने अपने आदेश में कहा कि शिक्षामित्रों के नियमितीकरण को गैरकानूनी ठहराने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में कोई खामी नहीं है। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि राज्य को शिक्षा का अधिकार कानून-2009 (आरटीई एक्ट) की धारा 23(2) के तहत शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यताओं को घटाने का कोई अधिकार नहीं है। आरटीई की बाध्यता के कारण राज्य सरकार ने योग्यताओं में रियायत देकर शिक्षामित्रों को नियुक्ति दी थी। पीठ ने कहा कि कानून के अनुसार शिक्षामित्र कभी शिक्षक थे ही नहीं, क्योंकि वे योग्य नहीं थे।
शिक्षा का अधिकार कानून-2009
'आरटीई एक्ट' के तहत कक्षा 1 से 8 तक अप्रशिक्षित शिक्षक स्कूलों में नहीं पढ़ा सकते। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने शिक्षकों के मानक तय किये। इसमें प्रशिक्षित स्नातक को अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करने पर ही शिक्षक पद के योग्य माना गया। पहले से पढ़ा रहे शिक्षकों के लिए भी प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है, लेकिन उन्हें टीईटी से छूट दी जाएगी। कुछ शिक्षामित्रों को भी इसी नियम के तहत 2011 से दूरस्थ प्रणाली से दो वर्षीय प्रशिक्षण दिलवाया गया। 2014 में टीईटी से छूट देते हुए सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति देने की प्रक्रिया शुरू की गई। यहीं पर नियमों से खेल हुआ, क्योंकि नई नियुक्ति के लिए टीईटी अनिवार्य है। सहायक अध्यापक के पदों पर समायोजन के नाम पर शिक्षमित्रों को नई नियुक्ति दी गई।
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