महराजगंज: बीते 25 जुलाई को समायोजन रद्द किए जाने का फैसला आने के बाद
शुरू हुआ शिक्षामित्रों का आंदोलन अब तक थमा नहीं है। शिक्षामित्र अपने
विरोध के कारण जब मन कर रहा स्कूल जा रहे हैं तथा जब मन कर रहा नहीं जा
रहे।
ऐसी स्थिति में सबसे अधिक परेशानी परिषदीय स्कूलों में तैनात प्रधानाध्यापकों को झेलनी पड़ रही है। शासन स्तर से प्रतिदिन शिक्षामित्रों की उपस्थिति मांगे जाने से गुरु जी पसोपेश में पड़ गए हैं कि वे क्या करें।
समायोजित शिक्षक पद का समायोजन रद्द होने से नाखुश शिक्षामित्रों ने अपनी नौकरी बचाने के लिए अब तक लोकतंत्रात्मक ढंग से आंदोलन का रास्ता चुना है। संघ के आह्वान पर ज्यादातर शिक्षामित्रों ने अपने तैनाती स्कूलों पर जाना बंद कर दिया। शिक्षामित्रों के स्कूल न जाने से उन स्कूलों में कक्षाओं के संचालन में समस्या आई जहां बीटीसी, विशिष्ट बीटीसी तथा 72 हजार के कम शिक्षक रहे। शासन व विभाग भी उन्हें यह मानकर छूट प्रदान कर रहा था कि नौकरी को लेकर उनमें गुस्सा है जो समय के साथ धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। मगर जब महीने पर बाद भी शिक्षामित्र शिक्षण व्यवस्था संभालने को लेकर गंभीर नहीं हुए तो शासन ने प्रतिदिन उनकी रिपोर्ट लेनी शुरू कर दी।शासन द्वारा रिपोर्ट मांगे जाने पर विभाग को भी उसे उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास शुरू करना पड़ा। स्कूलों पर तैनात गुरु जी की समस्या इसलिए और बढ़ जा रही है कि कुछ शिक्षामित्र नियमित स्कूल आने के कारण अपना हस्ताक्षर उसी उपस्थिति पंजिका पर बना रहे हैं , जहां समायोजित शिक्षक के पद पर बना रहे थे। प्रधानाध्यापकों के मुताबिक शासन व विभाग द्वारा स्पष्ट निर्देश न दिए जाने से उनकी भी मुश्किलें बढ़ रही हैं। उनका कहना है कि स्कूलों में पहुंचने वाले शिक्षामित्रों को लेकर शासन व विभाग दोनो को अपना रूख स्पष्ट कर देना चाहिए।
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सरकार के फैसले पर टिकी शिक्षामित्रों की निगाह
शिक्षामित्रों ने प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था को उस दौर में संभाला था जब स्कूलों में शिक्षकों की काफी कमी हो गई थी। अपेक्षाकृत कम मानदेय में उन्होंने इस सोच के साथ व्यवस्था संभाली कि कभी तो उनके दिन बहुरेंगे। पूर्ववती सपा सरकार ने शिक्षामित्रों की सुधि ली तथा दो बैच में जिले के 1975 शिक्षामित्रों को शिक्षक के पद पर समायोजित कर दिया। तीसरे बैच में बचे 212 शिक्षामित्रों को समायोजन का इंतजार था। मगर समायोजन रद्द होने से उनकी आस टूट गई। नौकरी के लिए लोकतांत्रिक ढंग से विरोध करने के बीच शिक्षामित्रों को अभी भी सरकार से उम्मीद है कि वह कोई ऐसा कदम उठाए जिससे न्यायालय के आदेश की अवमानना न हो तथा उन्हें राहत मिल सके।
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ऐसी स्थिति में सबसे अधिक परेशानी परिषदीय स्कूलों में तैनात प्रधानाध्यापकों को झेलनी पड़ रही है। शासन स्तर से प्रतिदिन शिक्षामित्रों की उपस्थिति मांगे जाने से गुरु जी पसोपेश में पड़ गए हैं कि वे क्या करें।
समायोजित शिक्षक पद का समायोजन रद्द होने से नाखुश शिक्षामित्रों ने अपनी नौकरी बचाने के लिए अब तक लोकतंत्रात्मक ढंग से आंदोलन का रास्ता चुना है। संघ के आह्वान पर ज्यादातर शिक्षामित्रों ने अपने तैनाती स्कूलों पर जाना बंद कर दिया। शिक्षामित्रों के स्कूल न जाने से उन स्कूलों में कक्षाओं के संचालन में समस्या आई जहां बीटीसी, विशिष्ट बीटीसी तथा 72 हजार के कम शिक्षक रहे। शासन व विभाग भी उन्हें यह मानकर छूट प्रदान कर रहा था कि नौकरी को लेकर उनमें गुस्सा है जो समय के साथ धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। मगर जब महीने पर बाद भी शिक्षामित्र शिक्षण व्यवस्था संभालने को लेकर गंभीर नहीं हुए तो शासन ने प्रतिदिन उनकी रिपोर्ट लेनी शुरू कर दी।शासन द्वारा रिपोर्ट मांगे जाने पर विभाग को भी उसे उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास शुरू करना पड़ा। स्कूलों पर तैनात गुरु जी की समस्या इसलिए और बढ़ जा रही है कि कुछ शिक्षामित्र नियमित स्कूल आने के कारण अपना हस्ताक्षर उसी उपस्थिति पंजिका पर बना रहे हैं , जहां समायोजित शिक्षक के पद पर बना रहे थे। प्रधानाध्यापकों के मुताबिक शासन व विभाग द्वारा स्पष्ट निर्देश न दिए जाने से उनकी भी मुश्किलें बढ़ रही हैं। उनका कहना है कि स्कूलों में पहुंचने वाले शिक्षामित्रों को लेकर शासन व विभाग दोनो को अपना रूख स्पष्ट कर देना चाहिए।
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सरकार के फैसले पर टिकी शिक्षामित्रों की निगाह
शिक्षामित्रों ने प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था को उस दौर में संभाला था जब स्कूलों में शिक्षकों की काफी कमी हो गई थी। अपेक्षाकृत कम मानदेय में उन्होंने इस सोच के साथ व्यवस्था संभाली कि कभी तो उनके दिन बहुरेंगे। पूर्ववती सपा सरकार ने शिक्षामित्रों की सुधि ली तथा दो बैच में जिले के 1975 शिक्षामित्रों को शिक्षक के पद पर समायोजित कर दिया। तीसरे बैच में बचे 212 शिक्षामित्रों को समायोजन का इंतजार था। मगर समायोजन रद्द होने से उनकी आस टूट गई। नौकरी के लिए लोकतांत्रिक ढंग से विरोध करने के बीच शिक्षामित्रों को अभी भी सरकार से उम्मीद है कि वह कोई ऐसा कदम उठाए जिससे न्यायालय के आदेश की अवमानना न हो तथा उन्हें राहत मिल सके।
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