बलरामपुर : सदर ब्लॉक के अंग्रेजी मॉडल स्कूल धुसाह प्रथम में बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के साथ उनके इलाज का खर्च भी शिक्षक अपनी जेब से उठाते हैं। इस से परिषदीय स्कूलों के बारे में अभिभावकों की सोच बदल रही है। स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
कक्षा दो के छात्र राम व चौथी के बालगो¨वद का हाथ दीपावली में पटाखा जलाते समय झुलस गया। तीन दिन बाद जब दोनों स्कूल पहुंचे तो शिक्षकों को जानकारी हुई। शिक्षकों ने बच्चों इलाज करवाया। जिससे अब दोनों ठीक होने लगे हैं। जुलाई में कक्षा चार के छात्र राम अवतार की पीठ में चोट के कारण घाव हो गया। दिक्कत बढ़ने पर छात्र ने स्कूल आना छोड़ दिया। सात दिन बाद शिक्षक उसके घर पहुंचे तो वह बिस्तर पर कराहता हुआ मिला। प्रधानाध्यापक प्रतिमा सिंह व जय शेखर छुट्टी के बाद उसे निजी चिकित्सक के पास ले गए। अपने पास से उसका उपचार कराया एक महीने तक चले इलाज के बाद वह ठीक हुआ। मई 07 में धुसाह निवासी हिमांशू (कक्षा पांच) का हाथ घर के दरवाजे में फंस कर चोटिल हो गया। आर्थिक तंगी के कारण समय पर उपचार न मिलने से उसका हाथ पक गया। दूसरे बच्चों को इसकी जानकारी मिलने पर शिक्षक हिमांशू को जिला अस्पताल ले गए। उसका इलाज कराया। प्रधानाध्यापक बताती हैं कि स्कूल आने वाले गरीब बच्चे अक्सर बीमार रहते थे। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उनको इलाज नहीं मिलता था। यह दशा देखकर प्रधानाध्यापक स्कूल में प्राथमिक उपचार किट (फस्र्ट एड बाक्स) रखने लगी। जय शेखर के साथ मिलकर अपने खर्च पर बीमार बच्चों का इलाज कराना भी शुरू कर दिया।
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कक्षा दो के छात्र राम व चौथी के बालगो¨वद का हाथ दीपावली में पटाखा जलाते समय झुलस गया। तीन दिन बाद जब दोनों स्कूल पहुंचे तो शिक्षकों को जानकारी हुई। शिक्षकों ने बच्चों इलाज करवाया। जिससे अब दोनों ठीक होने लगे हैं। जुलाई में कक्षा चार के छात्र राम अवतार की पीठ में चोट के कारण घाव हो गया। दिक्कत बढ़ने पर छात्र ने स्कूल आना छोड़ दिया। सात दिन बाद शिक्षक उसके घर पहुंचे तो वह बिस्तर पर कराहता हुआ मिला। प्रधानाध्यापक प्रतिमा सिंह व जय शेखर छुट्टी के बाद उसे निजी चिकित्सक के पास ले गए। अपने पास से उसका उपचार कराया एक महीने तक चले इलाज के बाद वह ठीक हुआ। मई 07 में धुसाह निवासी हिमांशू (कक्षा पांच) का हाथ घर के दरवाजे में फंस कर चोटिल हो गया। आर्थिक तंगी के कारण समय पर उपचार न मिलने से उसका हाथ पक गया। दूसरे बच्चों को इसकी जानकारी मिलने पर शिक्षक हिमांशू को जिला अस्पताल ले गए। उसका इलाज कराया। प्रधानाध्यापक बताती हैं कि स्कूल आने वाले गरीब बच्चे अक्सर बीमार रहते थे। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उनको इलाज नहीं मिलता था। यह दशा देखकर प्रधानाध्यापक स्कूल में प्राथमिक उपचार किट (फस्र्ट एड बाक्स) रखने लगी। जय शेखर के साथ मिलकर अपने खर्च पर बीमार बच्चों का इलाज कराना भी शुरू कर दिया।
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