नई दिल्ली, प्रेट्र: शहरी बेघरों के लिए आश्रय घर बनाने के मामले में
सुप्रीम कोर्ट ने उप्र सरकार से पूछा कि बेघरों के आधार कार्ड कैसे बन रहे
हैं। सरकार की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पहले
कहा कि बेघरों के पास आधार कार्ड नहीं हैं, तब अदालत ने
पूछा कि जिनके पास आधार नहीं हैं क्या वो केंद्र और राज्य सरकार के लिए
कोई महत्व नहीं रखते। उन्हें आश्रय घरों में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। मेहता
ने जवाब दिया कि बेघरों के पास दूसरे पहचान पत्र हैं। अदालत का कहना था कि
बगैर किसी स्थाई पते के उन लोगों के आधार कार्ड तो बन ही नहीं सकते,
क्योंकि ये लोग एक से दूसरी जगह पर घूमते रहते हैं। यह एक मानवीय पहलु से
जुड़ी समस्या है। हालांकि जस्टिस मदन बी लोकुर व दीपक गुप्ता की बेंच ने
बाद में यह भी कहा कि सरकार तो कह रही है कि 90 करोड़ से ज्यादा लोगों के
आधार बना लिए गए हैं।1इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को
कड़ी फटकार लगाई। अदालत का कहना था कि आप लोग काम ही नहीं करते हैं। अगर हम
कुछ कहे तो फिर कहा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार और देश को चलाता है।
आश्रय घर बनाने के मामले में उप्र का रिकार्ड सबसे खराब है। केंद्र ने खुद
माना है कि वहां कुल 92 आश्रय घर स्वीकृत किए गए थे, लेकिन अभी तक केवल
पांच ही काम कर रहे हैं। दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय पोषाहार मिशन के
तहत यह काम सिरे चढ़ाया जा रहा है। सर्दी के दिनों में आश्रय घरों की मांग
में तेजी से बढ़ोतरी होती है। बेंच ने कहा कि दीनदयाल अंत्योदय योजना 2014
से अस्तित्व में है, लेकिन उप्र ने इसमें कुछ भी नहीं किया। राज्य सरकार
की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शहरी बेघरों
के लिए विजन डाक्यूमेंट तैयार किया गया है। इसके तहत एक लाख 80 हजार लोगों
को आश्रय उपलब्ध कराने के लिए काम किया जा रहा है। मेहता ने अदालत से अपील
की कि हर राज्य में दो सदस्यीय कमेटी को आश्रय घर बनाने के मामले की
निगरानी का जिम्मा दिया जाए। अदालत ने केंद्र को कहा कि वह दो सप्ताह में
हर राज्य में जिम्मेदार अधिकारी को तैनात करे। अगली सुनवाई आठ फरवरी को
होगी। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक समिति का गठन किया
है।
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