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कोर्ट का फैसला आने से अब तक 425 शिक्षामित्रों की अवसाद से हो चुकी मौत, आखिरकार शिक्षामित्रो की मौत का असली जिम्मेदार कौन

*शिक्षामित्रो की मौत का असली जिम्मेदार कौन*

12 सितम्बर 2015 के बाद अब तक 425 से ज्यादा शिक्षामित्र आत्महत्या, अवसाद और अन्य कारणो से मर चुके परंतु इनकी ओर ध्यान देने की आवश्यकता शायद किसी जिम्मेदार व्यक्ति ने अभी तक नही समझी!  सन 2000 मे जिस समय प्राथमिक शिक्षा अपना अस्तित्व खो रही थी प्रदेश के प्राथमिक विद्यालय अध्यापक विहिन होते जा रहे थे, इस समस्या के त्वरित हल के रूप मे इस योजना का क्रियान्वयन तत्कालीन प्रदेश सरकार ने ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से कम से कम इण्टर पास व्यक्तियो जिनमे 60% से ज्यादा ग्रैजुएट थे( *जो उस समय अन्य अध्यापको की भी योग्यता थी* ) को मैरिट के आधार पर चयनित कराया तथा जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा प्रशिक्षण दिलाकर विद्यालय मे शिक्षण कार्य हेतु भेजा गया  जो 14 बर्षो तक अल्प मानदेय पर कार्य करता रहा तथा समाज,शासन और प्रशासन सभी की नजर में योग्य शिक्षक माना जाता रहा! 
परंतु जैसे ही राज्य सरकार द्वारा इन्हें दो वर्षीय प्रशिक्षण (बी0टी0सी0) कराकर, सहायक अध्यापक पद पर समायोजन करने का निर्णय लिया गया तो कुछ तथाकथित योग्यता धारी लोग जो प्राथमिक विद्यालयो मे नौकरी करना तो दूर की बात पास से निकलना भी अच्छा नही समझते थे किन्तु शिक्षामित्रो से ईर्ष्या एवं सब परीक्षाओ से बहार होने तथा बहुचर्चित टैट 2011 जिसमे पास होने का कोई अभिलेख (अंक पत्र के अतिरिक्त)  उनके पास नहीं था वो कोर्ट गये और शिक्षामित्रो की योग्यता ही नहीं बल्कि उनके अस्तित्व पर ही प्रश्न कर डाला! येन केन प्रकारेण तथा सरकार की लचर पैरवी अथवा समायोजन के नियमो मे कुछ कमी के कारण पहले 12 सितम्बर 2015 को मा0हाईकोर्ट तथा फिर 25 जुलाई 2017 को मा0सुप्रीम कोर्ट से समायोजन निरस्त कर दिया गया और प्रदेश के लगभह 425 से ज्यादा शिक्षामित्र काल के गाल में समा गये! 
अब प्रश्न यह उठता है कि इन मौतो का सही मायने मे जिम्मेदार कौन है  ?
1- स्वयं शिक्षामित्र जो 17 सालो से लगातार प्रदेश के नौनिहलो को शिक्षा प्रदान करता रहा!
2-- समायोजन की निति बनाने वाले वो लोग जो उच्च संवैधानिक पदो पर बैठे हैं !
3-- शिक्षामित्र संगठनो के वो होनहार पदाधिकारी जो सरकारो से मिलकर एक एेसी नियमावली नही बनबा सके जो ये दिन न देखना पड़ता!
4-- एक प्रश्न यह भी हैं कि निति नियम गलत होने पर शिक्षामित्रो को कोर्ट द्वारा योग्य अभ्यार्थियो के साथ न्याय करते हुए बहार कर दिया गया परन्तु गलत नियम बनाने वालों को कोई सजा क्यों नहीं दी गई  ताकि कोई भी व्यक्ति किसी उच्च संवैधानिक पद पर बैठकर किसी के जीवन से खिलवाड़ न कर सके?

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