इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग करीब ढाई वर्षो तक किले में तब्दील रहा।
एकतरफा आदेश, अभ्यर्थियों की अनसुनी होने से आयोग व अभ्यर्थियों के बीच
दूरियां बढ़ी। पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव के हटने के बाद राज्यपाल के निर्णय
से आयोग में बदलाव शुरू हुए लेकिन, उनका असर महज पांच माह तक ही रहा है,
उसके बाद पुराने नियमों को ही बहाल किया जाता रहा।
यही वजह है कि अब फिर
आयोग और अभ्यर्थियों के बीच दूरियां बढ़ गई हैं, परीक्षाएं स्थगित हो रही
हैं और परिणाम में लेटलतीफी जारी है। 1हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2015 में आयोग
अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति अवैध घोषित कर दी। इसके बाद तत्कालीन सरकार
ने कार्यवाहक अध्यक्ष के लिए दो नाम राज्यपाल के यहां भेजे। राज्यपाल ने
डा. एसके जैन के नाम पर सहमति दी। 10 नवंबर 2015 को डा. जैन ने कार्यभार
संभालने के बाद अभ्यर्थियों के हित में एक के बाद एक कई निर्णय लेकर उन्हें
लागू कराया। इसमें अभ्यर्थियों से ऑनलाइन आवेदन और हार्डकॉपी साथ लेने का
निर्देश दिया, ताकि भर्ती की प्रक्रिया अभिलेख मांगने के नाम पर लंबी न
खिंचे। अभ्यर्थियों के अनुभव प्रमाणपत्र का विशेषज्ञ से अप्रूवल लेने का
निर्देश हुआ। सभी अनुभागों को निर्देश हुआ कि शासन से भर्ती का अधियाचन
मिलते ही उनकी समकक्ष अर्हता प्राथमिकता के आधार पर तय की जाए, ताकि बाद
में उसमें विवाद न हो। ऐसे ही ग्रेड प्वाइंट आदि भी भर्ती शुरू करने से
पहले ही तय किए जाएं। यही नहीं उस दौरान अभ्यर्थियों की शिकायत पर आयोग के
अफसर तुरंत स्थिति स्पष्ट करते रहे हैं। पीसीएस जैसी परीक्षा के परिणाम में
ओवरलैपिंग बंद हुई। 1आयोग में अब इन्हीं निर्देशों की फिर से अनदेखी हो
रही है। एलटी ग्रेड शिक्षक भर्ती में समकक्ष योग्यता की स्थिति स्पष्ट न
होने से अभ्यर्थी परेशान हैं। एई-जेई, लोअर सबॉर्डिनेट जैसे परीक्षा परिणाम
लंबे समय से अटके हैं। पिछले महीनों में कई परीक्षाओं को आगे के लिए टाल
दिया गया है। इससे फिर से आयोग और अभ्यर्थियों के बीच दूरियां बढ़ने लगी
हैं। हालांकि आयोग ने कुछ माह पहले ओएमआर शीट में गलत अंकन को सुधारने में
नई मिसाल जरूर बनाई लेकिन, वह रफ्तार कायम नहीं रह पाई। कई अहम रिजल्ट अब
भी रुके हैं।
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