इलाहाबाद : परिषदीय स्कूलों की 68500 की लिखित परीक्षा की कॉपी जांचने
में गड़बड़ियां तो मिली हैं लेकिन, जांच समिति को अभ्यर्थियों को जानबूझकर
फेल या फिर पास करने के प्रकरण नहीं मिले।
खास बात यह है कि कुछ अभ्यर्थी
स्कैन कॉपी मिलने से पहले जितने अंक मिलने का दावा कर रहे थे, उन्हें लगभग
उतने ही अंक कॉपी पर मिले हैं। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि कॉपी से एवार्ड
ब्लैंक पर अंक चढ़ाने में भले ही रिजल्ट में वे फेल हो गए थे लेकिन, कॉपी
का मूल्यांकन दुरुस्त मिला है।1शिक्षक भर्ती का परिणाम आने के बाद मेधावी
अभ्यर्थी परीक्षा की कार्बन कॉपी के साथ दावा कर रहे थे कि उन्हें इतने अंक
मिलने चाहिए लेकिन, रिजल्ट में उससे बहुत कम अंक मिले हैं। कोर्ट के आदेश
पर कई अभ्यर्थियों को स्कैन कॉपी हासिल हुई तो उसमें अपेक्षा के अनुरूप अंक
दर्ज मिले। हालांकि इसके बाद परीक्षा संस्था पर आरोप लगने का सिलसिला और
तेज हुआ। अभ्यर्थियों ने इसे घोटाला और महाघोटाला तक करार देकर परीक्षा
नियामक प्राधिकारी कार्यालय की दीवारें तक रंग दीं। शासन की ओर से गठित
उच्च स्तरीय समिति की जांच शुरू होने पर अंकों की हेराफेरी पुष्टि पहले ही
चरण में हुई। यहां तैनात रहे अफसर व कर्मचारियों ने जांच टीम से कहा कि अंक
चढ़ाने में कुछ गलतियां हुई हैं, ये भ्रष्टाचार नहीं है बल्कि मानवीय भूल
है। जांच समिति ने तीन बार यहां आकर अभिलेख खंगाले तो उनमें अंकों का ही
हेरफेर मिला है। इसमें दस अफसरों पर कार्रवाई हो चुकी है।1इसी तरह की
गड़बड़ियां प्रदेश की पहली टीईटी वर्ष 2011 में भी सामने आई थीं, उस समय
टीईटी में टेबुलेशन रिकॉर्ड में हेराफेरी किए जाने के आरोप लगे थे। शिकायत
पर पुलिस ने शिक्षा विभाग के बड़े अफसर को नकदी के साथ गिरफ्तार भी किया
था। अभी तक इस मामले में जांच टीम को इस तरह के सुबूत नहीं मिले हैं,
हालांकि अब भी अफसरों की संदिग्धों पर पूरी नजर है। परीक्षा नियामक
प्राधिकारी कार्यालय के अफसर व कर्मचारियों की कार्यशैली से जांच समिति भी
खफा है। उन पर आगे यहां से हटाया जाना लगभग तय है।
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