चुनावी
भाषणों और चर्चाओं में शिक्षा को जगह क्यों नहीं मिलती है? जिस मुद्दे से
ज़्यादातर नौजवानों की ज़िंदगी प्रभावित होती है, वह किसी सरकार के मूल्यांकन
का आधार क्यों नहीं बनता है.
आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई चरमरा गई है. 2017 में एक ख़बर पढ़ी थी कि भारत में 800 इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो गए हैं. 8 अप्रैल को टाइम्स ऑफ इंडिया में मानस प्रतिम ने लिखा था कि AICTE से 200 इंजीनियरिंग कॉलेजों ने बंद होने की अनुमति मांगी है. यही नहीं हर साल 50 फीसदी से अधिक सीटें खाली रह जा रही हैं. गुजरात से ही हाल में खबर आई थी कि इंजीनियरिंग की आधी सीटें यानी 1 लाख से अधिक सीटें ख़ाली रह गई हैं. प्रोफेशनल कोर्स के रूप में इंजीनियरिंग की पढ़ाई अगर ख़त्म हो रही है तो फिर छात्र किस कोर्स की तरफ जा रहे हैं. इंजीनियरिंग कॉलेजों की हालत इतनी खस्ता ही क्यों है, इन सब को लेकर क्या पब्लिक में कोई डिबेट है.
तो क्या सरकार ने शिक्षा की चिन्ता की. उनकी अपनी सरकार के पांच साल पूरे होने जा रहे हैं मगर अभी तक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति नहीं बन पाई है. क्या मध्यप्रदेश की सरकार ने स्कूली और कॉलेज शिक्षा को बेहतर किया, 15 साल बहुत होते हैं शिक्षा को एक बेहतरीन स्थिति में पहुंचा देने के लिए. क्या ऐसा हुआ, हुआ होता तो इसे लेकर भी सरकार अपने चुनावी अभियानों में दावा करती. क्या जो अपने बच्चों को हिन्दुस्तान में कहीं भी पढ़ने के लिए भेज रहे हैं वो अमीर ही हैं, क्या जो विदेशों में जा रहे हैं वो सिर्फ अमीर परिवारों से हैं, क्यों भेज रहे हैं क्या इस सवाल पर बात हो सकती है. ऐसे सभी मां बाप को एक छड़ी से हांकना ठीक नहीं है और अमीर कह देना उचित नहीं होगा.
प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल में जयंत सिन्हा हैं. उन्हीं से पूछना चाहिए कि वे हार्वर्ड क्यों गए थे, कुछ मंत्रियों के बच्चे भी विदेशो में पढ़ रहे हैं, उनसे भी पूछ सकते हैं. शिक्षा के मसले को इतना सतही बताना ठीक नहीं है. मध्य प्रदेश जो कि मुख्य रूप से ग्रामीण राज्य है, कितने ऐसे अमीर हैं जो अपने बच्चों को विदेश भेज रहे हैं. बच्चों को बहस में लाना ठीक नहीं है, लेकिन उनके ही एक केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट किया था कि उनकी बेटी विदेश पढ़ने जा रही है. विदेश पढ़ने लोग अपनी काबिलियत पर भी जाते हैं, स्कॉलरशिप पर भी जाते हैं, सिर्फ अमीरी का शौक या अमीरी के ही कारण नहीं जाते हैं.
ये रीवा का लॉ कालेज है. आप इसकी इमारत देखकर अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ग़रीबों के बच्चों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था की गई है. यहां स्थायी प्रिंसिपल तक नहीं है. प्रभारी प्रिंसिपल हैं. 600 छात्र यहां पढ़ते हैं और 8 टीचर हैं. सभी के सभी अतिथि हैं. गेस्ट टीचर हैं. हमने उच्च शिक्षा विभाग की वेबसाइट से 2015-16 की रिपोर्ट निकाली. जिसके अनुसार 28 लॉ कॉलेज में से एक भी लॉ कालेज में प्रिंसिपल नहीं थे. उस साल की रिपोर्ट बताती है कि मध्य प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में 704 प्राध्यापक होने चाहिए थे, मगर 474 पद खाली थे. 7412 अस्सिटेंट प्रोफेसर होने चाहिए मगर 3025 अस्सिटेंट प्रोफेसर नहीं थे. आपके स्क्रीन पर मध्य प्रदेश के सरकारी कॉलेजों की तस्वीर आ रही है. ये तस्वीरें इमारत का बाहर से अंदाज़ा देती हैं मगर देख कर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के मेरे मध्य प्रदेश में गरीबों के बच्चों के लिए किस तरह की शिक्षा का इंतज़ाम है. जब शिक्षक नहीं हैं, प्रिंसिपल नहीं हैं, इमारतें साधारण और कहीं-कहीं जर्जर है, तो ग़रीब वहां मजबूरी में ही अपने बच्चों को डालेगा. उसे पता है कि बाहर नहीं भेज सकता, इसलिए कम से कम एक डिग्री तो मिल जाए.
लंबे समय तक स्थायी शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई, उनकी जगह अतिथि विद्वानों का कांसेप्ट लाया गया, जिन्होंने 10 साल 15 साल तो मात्र 10000 से कम की सैलरी पर पढ़ाया. अतिथि विद्वान संघ के नेता ने कहा कि साल में डेढ़ लाख की भी कमाई नहीं हुई. सरकारी कॉलेजों में 5000 से अधिक गेस्ट टीचर पढ़ा रहे हैं. वैसे शिक्षक संघ के नेता मध्य प्रदेश में इसकी संख्या 12 हज़ार बताते हैं. इस साल जुलाई में उनकी सैलरी न्यूनतम 30,000 की गई है वो भी ज़्यादातर अतिथि विद्वानों को चार महीने की सैलरी नहीं मिली है. इस बीच सरकार ने 3000 से अधिक अस्सिटेंट प्रोफेसर की वैकेंसी निकाली, रिज़ल्ट आ गया है मगर ज्वाइनिंग नहीं हुई है. लेकिन आखिरी चरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. जो लोग पास कर चुके हैं उन्हें पता नहीं कि चुनाव के बाद नियुक्ति पत्र मिलेगा भी या नहीं. इस साल कॉलेजों के लिए चुने गए एक प्रतियोगी ने बताया कि 1992 के बाद एमपीसीसी के असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती 2014 में निकली, कैंसिल हो गई. फिर 2016 में निकली, कैंसिल हो गई. 2017 में हुई मगर वो परीक्षा पूरी हो गई है. बस नियुक्ति पत्र नहीं मिला है. जो पहले से पढ़ा रहे हैं वो अतिथि विद्वान भी अपने भविष्य को लेकर चिन्तित हैं. 15 साल पढ़ाने के बाद उन्हें अयोग्य ठहाराया जाने लगा है जबकि उन्हें पढ़ाने का काम सरकार ने ही अपनी प्रक्रिया के तहत दिया था.
क्या प्रधानमंत्री चिन्ता करेंगे कि मध्य प्रदेश में अस्सिटेंट प्रोफसरों के सकरीब 7500 स्वीकृत पद हैं. उनमें से 4000 से अधिक पर नियमित शिक्षक क्यों नहीं हैं? इनके नहीं होने से मध्य प्रदेश के नौजवानों को क्या नुकसान हुआ, और क्या मध्य प्रदेश के नौजवानों को पता भी चला कि उनके साथ क्या नुकसान हुआ. 2014 में जब विज्ञापन निकला था तब 60,000 छात्रों ने फॉर्म भरा 180 रुपये एक फॉर्म के दिए. क्यों परीक्षाएं निरस्त हो जाती हैं. पूरी नहीं होती हैं. इस पर कौन चिन्ता करेगा और कब चिन्ता करेगा? क्या प्रधानमंत्री को किसी ने बताया कि जब 2016 में असिस्टेंट प्रोफेसर के विज्ञापन निकले तो फॉर्म भरने का 1200 रुपया क्यों लिया गया. प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री से पूछ सकते हैं कि फॉर्म के 1200 और 1000 रुपया वो अमीरों के बच्चों से ले रहे थे या ग़रीबों के बच्चे से ले रहे थे. हम आपको प्रधानमंत्री का रीवा में दिया गया बयान फिर से सुनाते हैं.
2017 में अनुराग द्वारी की एक रिपोर्ट देख रहा था. मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा में स्वीकार किया था कि राज्य के एक लाख से अधिक स्कूलों में बिजली की सुविधा नहीं है. 50,000 से अधिक शिक्षकों के पद ख़ाली थे. इनके भर्ती की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कभी पूरी नहीं होती. ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता है कि एक साल के भीतर मध्य प्रदेश में 50,000 शिक्षक बहाल कर लिए गए हैं.
ईमानदारी से देखें तो सिर्फ शिवराज सिंह चौहान के ही शासन में ही नहीं, देश के अनेक राज्यों में हर किसी के राज्य में उच्च शिक्षा को बर्बाद किया गया है. न्यूज़ वेबसाइट स्क्रोल ने पिछले साल एक रिपोर्ट लिखी थी कि मध्य प्रदेश में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. मध्य प्रदेश में साक्षरता दर है 70.6 प्रतिशत, जबकि भारत का औसत 74 प्रतिशत है. प्रथम संस्था की रिपोर्ट कहती है कि साइकिल बांटने, स्कॉलरशिप बांटने के बाद भी 2016 के साल में मध्य प्रदेश में 8.5 प्रतिशत 11 से 14 साल की लड़कियां स्कूल नहीं गईं. 2014 में यह 6.5 प्रतिशत था, मध्य प्रदेश इस मामले में देश में तीसरे नंबर पर है.
मध्य प्रदेश के स्कूलों में हज़ारों की संख्या में शिक्षकों के पद लंबे समय से खाली रहे हैं. अब आते कि इस बार वादे क्या क्या किए गए हैं. बीजेपी ने दृष्टि पत्र जारी किया है. उसमें शिक्षा को लेकर क्या है देखते हैं. अगले पांच साल में उच्चतर शिक्षा संस्थानों में सकल नामांकन दर को 30 प्रतिशत तक बढ़ाएंगे. 2 इंजीनियरिंग एवं 5 पोलिटेक्निक कॉलेजों को सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस की तरह उन्नत किया जाएगा. सभी सरकारी कॉलेजों में व्याख्यान कक्षों और सभागारों को स्मार्ट कक्षाओं में बदल देंगे. देश विदेश के विशेषज्ञों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पढ़ाया जाएगा.
स्कूलों में शिक्षकों की जवाबदेही सुनिश्चित करेंगे. आठवीं का बोर्ड फिर से स्थापित किया जाएगा, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता सुधरे.
इन घोषणापत्र में क्या नया है, ठोस है, क्या इनसे मध्य प्रदेश में शिक्षा का स्तर बेहतर हो सकेगा, यह वहां के मतदाताओं को सोचना है. यह समझ के बाहर है जिन परिवारों में शिक्षा के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते वहां भी शिक्षा चुनावी चिन्ताओं में शामिल नहीं होती है.
आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई चरमरा गई है. 2017 में एक ख़बर पढ़ी थी कि भारत में 800 इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो गए हैं. 8 अप्रैल को टाइम्स ऑफ इंडिया में मानस प्रतिम ने लिखा था कि AICTE से 200 इंजीनियरिंग कॉलेजों ने बंद होने की अनुमति मांगी है. यही नहीं हर साल 50 फीसदी से अधिक सीटें खाली रह जा रही हैं. गुजरात से ही हाल में खबर आई थी कि इंजीनियरिंग की आधी सीटें यानी 1 लाख से अधिक सीटें ख़ाली रह गई हैं. प्रोफेशनल कोर्स के रूप में इंजीनियरिंग की पढ़ाई अगर ख़त्म हो रही है तो फिर छात्र किस कोर्स की तरफ जा रहे हैं. इंजीनियरिंग कॉलेजों की हालत इतनी खस्ता ही क्यों है, इन सब को लेकर क्या पब्लिक में कोई डिबेट है.
तो क्या सरकार ने शिक्षा की चिन्ता की. उनकी अपनी सरकार के पांच साल पूरे होने जा रहे हैं मगर अभी तक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति नहीं बन पाई है. क्या मध्यप्रदेश की सरकार ने स्कूली और कॉलेज शिक्षा को बेहतर किया, 15 साल बहुत होते हैं शिक्षा को एक बेहतरीन स्थिति में पहुंचा देने के लिए. क्या ऐसा हुआ, हुआ होता तो इसे लेकर भी सरकार अपने चुनावी अभियानों में दावा करती. क्या जो अपने बच्चों को हिन्दुस्तान में कहीं भी पढ़ने के लिए भेज रहे हैं वो अमीर ही हैं, क्या जो विदेशों में जा रहे हैं वो सिर्फ अमीर परिवारों से हैं, क्यों भेज रहे हैं क्या इस सवाल पर बात हो सकती है. ऐसे सभी मां बाप को एक छड़ी से हांकना ठीक नहीं है और अमीर कह देना उचित नहीं होगा.
प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल में जयंत सिन्हा हैं. उन्हीं से पूछना चाहिए कि वे हार्वर्ड क्यों गए थे, कुछ मंत्रियों के बच्चे भी विदेशो में पढ़ रहे हैं, उनसे भी पूछ सकते हैं. शिक्षा के मसले को इतना सतही बताना ठीक नहीं है. मध्य प्रदेश जो कि मुख्य रूप से ग्रामीण राज्य है, कितने ऐसे अमीर हैं जो अपने बच्चों को विदेश भेज रहे हैं. बच्चों को बहस में लाना ठीक नहीं है, लेकिन उनके ही एक केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट किया था कि उनकी बेटी विदेश पढ़ने जा रही है. विदेश पढ़ने लोग अपनी काबिलियत पर भी जाते हैं, स्कॉलरशिप पर भी जाते हैं, सिर्फ अमीरी का शौक या अमीरी के ही कारण नहीं जाते हैं.
ये रीवा का लॉ कालेज है. आप इसकी इमारत देखकर अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ग़रीबों के बच्चों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था की गई है. यहां स्थायी प्रिंसिपल तक नहीं है. प्रभारी प्रिंसिपल हैं. 600 छात्र यहां पढ़ते हैं और 8 टीचर हैं. सभी के सभी अतिथि हैं. गेस्ट टीचर हैं. हमने उच्च शिक्षा विभाग की वेबसाइट से 2015-16 की रिपोर्ट निकाली. जिसके अनुसार 28 लॉ कॉलेज में से एक भी लॉ कालेज में प्रिंसिपल नहीं थे. उस साल की रिपोर्ट बताती है कि मध्य प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में 704 प्राध्यापक होने चाहिए थे, मगर 474 पद खाली थे. 7412 अस्सिटेंट प्रोफेसर होने चाहिए मगर 3025 अस्सिटेंट प्रोफेसर नहीं थे. आपके स्क्रीन पर मध्य प्रदेश के सरकारी कॉलेजों की तस्वीर आ रही है. ये तस्वीरें इमारत का बाहर से अंदाज़ा देती हैं मगर देख कर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के मेरे मध्य प्रदेश में गरीबों के बच्चों के लिए किस तरह की शिक्षा का इंतज़ाम है. जब शिक्षक नहीं हैं, प्रिंसिपल नहीं हैं, इमारतें साधारण और कहीं-कहीं जर्जर है, तो ग़रीब वहां मजबूरी में ही अपने बच्चों को डालेगा. उसे पता है कि बाहर नहीं भेज सकता, इसलिए कम से कम एक डिग्री तो मिल जाए.
लंबे समय तक स्थायी शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई, उनकी जगह अतिथि विद्वानों का कांसेप्ट लाया गया, जिन्होंने 10 साल 15 साल तो मात्र 10000 से कम की सैलरी पर पढ़ाया. अतिथि विद्वान संघ के नेता ने कहा कि साल में डेढ़ लाख की भी कमाई नहीं हुई. सरकारी कॉलेजों में 5000 से अधिक गेस्ट टीचर पढ़ा रहे हैं. वैसे शिक्षक संघ के नेता मध्य प्रदेश में इसकी संख्या 12 हज़ार बताते हैं. इस साल जुलाई में उनकी सैलरी न्यूनतम 30,000 की गई है वो भी ज़्यादातर अतिथि विद्वानों को चार महीने की सैलरी नहीं मिली है. इस बीच सरकार ने 3000 से अधिक अस्सिटेंट प्रोफेसर की वैकेंसी निकाली, रिज़ल्ट आ गया है मगर ज्वाइनिंग नहीं हुई है. लेकिन आखिरी चरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. जो लोग पास कर चुके हैं उन्हें पता नहीं कि चुनाव के बाद नियुक्ति पत्र मिलेगा भी या नहीं. इस साल कॉलेजों के लिए चुने गए एक प्रतियोगी ने बताया कि 1992 के बाद एमपीसीसी के असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती 2014 में निकली, कैंसिल हो गई. फिर 2016 में निकली, कैंसिल हो गई. 2017 में हुई मगर वो परीक्षा पूरी हो गई है. बस नियुक्ति पत्र नहीं मिला है. जो पहले से पढ़ा रहे हैं वो अतिथि विद्वान भी अपने भविष्य को लेकर चिन्तित हैं. 15 साल पढ़ाने के बाद उन्हें अयोग्य ठहाराया जाने लगा है जबकि उन्हें पढ़ाने का काम सरकार ने ही अपनी प्रक्रिया के तहत दिया था.
क्या प्रधानमंत्री चिन्ता करेंगे कि मध्य प्रदेश में अस्सिटेंट प्रोफसरों के सकरीब 7500 स्वीकृत पद हैं. उनमें से 4000 से अधिक पर नियमित शिक्षक क्यों नहीं हैं? इनके नहीं होने से मध्य प्रदेश के नौजवानों को क्या नुकसान हुआ, और क्या मध्य प्रदेश के नौजवानों को पता भी चला कि उनके साथ क्या नुकसान हुआ. 2014 में जब विज्ञापन निकला था तब 60,000 छात्रों ने फॉर्म भरा 180 रुपये एक फॉर्म के दिए. क्यों परीक्षाएं निरस्त हो जाती हैं. पूरी नहीं होती हैं. इस पर कौन चिन्ता करेगा और कब चिन्ता करेगा? क्या प्रधानमंत्री को किसी ने बताया कि जब 2016 में असिस्टेंट प्रोफेसर के विज्ञापन निकले तो फॉर्म भरने का 1200 रुपया क्यों लिया गया. प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री से पूछ सकते हैं कि फॉर्म के 1200 और 1000 रुपया वो अमीरों के बच्चों से ले रहे थे या ग़रीबों के बच्चे से ले रहे थे. हम आपको प्रधानमंत्री का रीवा में दिया गया बयान फिर से सुनाते हैं.
2017 में अनुराग द्वारी की एक रिपोर्ट देख रहा था. मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा में स्वीकार किया था कि राज्य के एक लाख से अधिक स्कूलों में बिजली की सुविधा नहीं है. 50,000 से अधिक शिक्षकों के पद ख़ाली थे. इनके भर्ती की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कभी पूरी नहीं होती. ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता है कि एक साल के भीतर मध्य प्रदेश में 50,000 शिक्षक बहाल कर लिए गए हैं.
ईमानदारी से देखें तो सिर्फ शिवराज सिंह चौहान के ही शासन में ही नहीं, देश के अनेक राज्यों में हर किसी के राज्य में उच्च शिक्षा को बर्बाद किया गया है. न्यूज़ वेबसाइट स्क्रोल ने पिछले साल एक रिपोर्ट लिखी थी कि मध्य प्रदेश में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. मध्य प्रदेश में साक्षरता दर है 70.6 प्रतिशत, जबकि भारत का औसत 74 प्रतिशत है. प्रथम संस्था की रिपोर्ट कहती है कि साइकिल बांटने, स्कॉलरशिप बांटने के बाद भी 2016 के साल में मध्य प्रदेश में 8.5 प्रतिशत 11 से 14 साल की लड़कियां स्कूल नहीं गईं. 2014 में यह 6.5 प्रतिशत था, मध्य प्रदेश इस मामले में देश में तीसरे नंबर पर है.
मध्य प्रदेश के स्कूलों में हज़ारों की संख्या में शिक्षकों के पद लंबे समय से खाली रहे हैं. अब आते कि इस बार वादे क्या क्या किए गए हैं. बीजेपी ने दृष्टि पत्र जारी किया है. उसमें शिक्षा को लेकर क्या है देखते हैं. अगले पांच साल में उच्चतर शिक्षा संस्थानों में सकल नामांकन दर को 30 प्रतिशत तक बढ़ाएंगे. 2 इंजीनियरिंग एवं 5 पोलिटेक्निक कॉलेजों को सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस की तरह उन्नत किया जाएगा. सभी सरकारी कॉलेजों में व्याख्यान कक्षों और सभागारों को स्मार्ट कक्षाओं में बदल देंगे. देश विदेश के विशेषज्ञों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पढ़ाया जाएगा.
टिप्पणियां
हमने सारे तो नहीं पढ़ें मगर क्या यह पर्याप्त है. उच्च शिक्षा को लेकर कुछ
ठोस नहीं दिखा. बीजेपी के दृष्टि पत्र में शिक्षकों की बहाली पर कुछ नहीं
लिखा हुआ है. कांग्रेस ने लिखा है कि अतिथि विद्वानों को रोस्टर के अनुसार
नियमित करने की नीति बनाएंगे. लोक सेवा आयोग से चयन न होने की स्थिति में
उन्हें नहीं निकाला जाएगा. विज्ञान महाविद्यालयों की प्रयोगशालाओं को
आधुनिक किया जाएगा. व्यापम को बंद कर दिया जाएगा और शासकीय सेवाओं में चयन
को पारदरशी किया जाएगा.स्कूलों में शिक्षकों की जवाबदेही सुनिश्चित करेंगे. आठवीं का बोर्ड फिर से स्थापित किया जाएगा, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता सुधरे.
इन घोषणापत्र में क्या नया है, ठोस है, क्या इनसे मध्य प्रदेश में शिक्षा का स्तर बेहतर हो सकेगा, यह वहां के मतदाताओं को सोचना है. यह समझ के बाहर है जिन परिवारों में शिक्षा के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते वहां भी शिक्षा चुनावी चिन्ताओं में शामिल नहीं होती है.
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