प्रयागराज। शिक्षा अधिकरण के लखनऊ में गठन को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के
वकीलों का विरोध बेवजह नहीं है। अकेले शिक्षा विभाग की भर्तियों को लेकर
हाईकोर्ट में दाखिल होने वाली याचिकाओं की हिस्सेदारी करीब 25 प्रतिशत है।
पिछले एक दशक के दौरान शायद ही कोई ऐसी शिक्षक भर्ती रही हो, जिसका विवाद हाईकोर्ट न पहुंचा हो। कोर्ट ने इस पर दूरगामी और व्यापक निर्णय भी दिए हैं। अदालत के निर्णयों के बदौलत तमाम भर्तियों में न सिर्फ गड़बड़ियां दूर हुई हैं बल्कि, अभ्यर्थियों को न्याय भी मिला है।
यही वजह है चाहे वह शिक्षामित्रों की नियुक्ति का मसला हो या एलटी ग्रेड
परीक्षा में गड़बड़ी का, हर मामले का समाधान हाईकोर्ट से ही निकला। 72825
सहायक अध्यापक भर्ती का मामला हो या 25 हजार विज्ञान गणित शिक्षकों की
भर्ती का, या फिर 68500 और 65000 शिक्षक भर्ती का प्रकरण हो। इनको लेकर
याचिकाएं अब भी दाखिल हो रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक हाईकोर्ट मेें करीब
साढ़े तीन लाख याचिकाएं अकेले शिक्षा से संबंधित मामलों की हैं। जबकि कुल
लंबित याचिकाएं सवा नौ लाख के आसपास हैं।
जानकार मानते हैं शिक्षा अधिकरण बन जाने के बाद यह सभी विवाद पहले अधिकरण जाएंगे। अधिकरण के फैसले से असहमत होने पर हाईकोर्ट में पुनरीक्षण दाखिल किया जा सकेगा मगर, अपील का क्षेत्राधिकार सुप्रीमकोर्ट के पास होगा। इससे हाईकोर्ट पर मुकदमों का बोझ तो घटेगा मगर वादकारियों के लिए मुश्किलें भी बढ़ेंगी। उनके लिए अपील का रास्ता कठिन हो जाएगा। क्योंकि अधिकरण केे निर्णय के खिलाफ अपील सुप्रीमकोर्ट में दाखिल होगी, जिससे वादकारी का खर्च भी बढ़ेगा।
अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहते हैं कि हाईकोर्ट के स्तर के फैसलों की अपेक्षा अधिकरणों से नहीं की जा सकती है। यहां चतुर्थश्रेणी स्तर के कर्मचारी भी प्रोन्नति जैसे मसलों को लेकर याचिकाएं दाखिल करते हैं क्योंकि, खर्च कम होता है। ऐसे वादकारियों को यदि अपील के लिए सुप्रीमकोर्ट जाना पड़े तो खर्च बहुत आएगा इसलिए, ऐसे लोगों के लिए न्याय पाने की राह मुश्किल होगी। मामले का दूसरा पहलू यह भी है कि अधिकरण बनने से हाईकोर्ट के वकीलों से करीब 25 प्रतिशत काम छिन जाएगा, जो स्वाभाविक रूप से उनकी आमदनी पर असर डालेगा। विरोध की एक बड़ी वजह यह भी है।
पिछले एक दशक के दौरान शायद ही कोई ऐसी शिक्षक भर्ती रही हो, जिसका विवाद हाईकोर्ट न पहुंचा हो। कोर्ट ने इस पर दूरगामी और व्यापक निर्णय भी दिए हैं। अदालत के निर्णयों के बदौलत तमाम भर्तियों में न सिर्फ गड़बड़ियां दूर हुई हैं बल्कि, अभ्यर्थियों को न्याय भी मिला है।
जानकार मानते हैं शिक्षा अधिकरण बन जाने के बाद यह सभी विवाद पहले अधिकरण जाएंगे। अधिकरण के फैसले से असहमत होने पर हाईकोर्ट में पुनरीक्षण दाखिल किया जा सकेगा मगर, अपील का क्षेत्राधिकार सुप्रीमकोर्ट के पास होगा। इससे हाईकोर्ट पर मुकदमों का बोझ तो घटेगा मगर वादकारियों के लिए मुश्किलें भी बढ़ेंगी। उनके लिए अपील का रास्ता कठिन हो जाएगा। क्योंकि अधिकरण केे निर्णय के खिलाफ अपील सुप्रीमकोर्ट में दाखिल होगी, जिससे वादकारी का खर्च भी बढ़ेगा।
अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहते हैं कि हाईकोर्ट के स्तर के फैसलों की अपेक्षा अधिकरणों से नहीं की जा सकती है। यहां चतुर्थश्रेणी स्तर के कर्मचारी भी प्रोन्नति जैसे मसलों को लेकर याचिकाएं दाखिल करते हैं क्योंकि, खर्च कम होता है। ऐसे वादकारियों को यदि अपील के लिए सुप्रीमकोर्ट जाना पड़े तो खर्च बहुत आएगा इसलिए, ऐसे लोगों के लिए न्याय पाने की राह मुश्किल होगी। मामले का दूसरा पहलू यह भी है कि अधिकरण बनने से हाईकोर्ट के वकीलों से करीब 25 प्रतिशत काम छिन जाएगा, जो स्वाभाविक रूप से उनकी आमदनी पर असर डालेगा। विरोध की एक बड़ी वजह यह भी है।