*निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा और नॉन गवर्नमेंट आर्गेनाईजेशन (NGOs) का आगमन।*
26 जनवरी 1950 ई० में जब भारतीय संविधान लागू हुआ उस समय उसमें नीति निर्देशक सिद्धान्त के
अनुच्छेद -45 में वर्णित था कि आगामी 10 वर्षों में देश (सरकार) 6 से 14 वय वर्ग के बच्चों हेतु निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करेगा।।।।परन्तु अंग्रेजों ने जिस स्थिति में देश को निचोड़ कर छोड़ा था उस स्थिति में निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था कर पाना सरकारों के लिए सम्भव नहीं हो सका। हालांकि सरकारे अनवरत इस हेतु प्रयास जारी रखीं।
--1993 में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय में कहा गया कि सरकार का उत्तरदायित्व है कि वह 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध करे।इस निर्णय को दृष्टिगत लगभग 9 वर्षों बाद सन 2002 में 86 वां संविधान संशोधन करके मूल अधिकारों में अनुच्छेद 21 A शामिल किया गया जिसके तहत ऐसी आशा की गई कि सरकार 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों हेतु निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास करेगी।
--अंततः 1 अप्रैल 2010 से RTE (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) लागू हो गया।।।।
*RTE के नियमानुसार--*
सरकारी एवं निजी विद्यालयों में पढ़ाने हेतु *शिक्षक प्रशिक्षण एवं शिक्षक पात्रता परीक्षा TET* अनिवार्य है।।
--प्रत्येक विद्यालय हेतु छात्र शिक्षक अनुपात के हिसाब से शिक्षक होंगे।
--प्राथमिक विद्यालय में 150 छात्र संख्या पर एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 100 छात्र संख्या होने पर अनिवार्य रूप से पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक होगा (अर्थात 150 एवं 100 छात्र संख्या पर अनिवार्यतः प्रधानाध्यापक होगा इससे कम संख्या पर सरकार चाहे तो रखे या न रखे।)
--NCTE के अनुसार मार्च 2019 के बाद से कोई भी शिक्षक, शिक्षामित्र,अनुदेशक या कोई अन्य प्रकार के पैराटीचर्स यदि अप्रशिक्षित हैं तो वे अध्यापन हेतु अर्ह नहीं हैं।
आज भी उक्त के हिसाब से सरकारें शिक्षकों की एवं अन्य आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था नहीं कर सकी हैं।।।
--बावजूद व्यवस्थागत समस्याओं को दूर किये RTE की मूल अवधारणा को पूर्ण नहीं किया जा सकता है।।
एक तरफ माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के कारण लाखों शिक्षकों को TET न पास होने के कारण नीरस मनोदशा के साथ शिक्षण कार्य करना पड़ रहा है।संविदा के बहाने उनसे बहुत कम मानदेय पर शिक्षकों के समान पूरा कार्य लिया जा रहा है,वहीं दूसरी ओर विभिन्न NGOs को विभाग में प्रविष्ट कराया जा रहा है।जिनमे पढ़ाने और कार्य करने वाले अधिकांश लोग महज इंटरमीडिएट अथवा स्नातक ही हैं।।।न ही वो प्रशिक्षित हैं और न ही TET पास हैं।अर्थात RTE का खुला उल्लंघन हो रहा है।।।।
साथियों यह समय परिषदीय शिक्षा व्यवस्था का संक्रमण काल कहा जा सकता है।हमे संगठित होकर रहना होगा।।।अन्यथा पुरानी पेंशन की भांति नई शिक्षक भर्ती बन हो जाएगी।अर्थात अघोषित रूप से शिक्षा का क्रमशः निजीकरण हो जाएगा।
*सभी शिक्षकों एवं शिक्षक संगठनों से आग्रह है कि शिक्षा के निजीकरण के इस षड्यंत्र को समझते हुए समय रहते उचित रणनीति बनाकर इस खेल को खत्म करने का प्रयास किया जाए अन्यथा परिणाम दुःखदायी होंगे।।*🤝
एक परिषदीय शिक्षक
बाराबंकी,उत्तर प्रदेश।।।
26 जनवरी 1950 ई० में जब भारतीय संविधान लागू हुआ उस समय उसमें नीति निर्देशक सिद्धान्त के
अनुच्छेद -45 में वर्णित था कि आगामी 10 वर्षों में देश (सरकार) 6 से 14 वय वर्ग के बच्चों हेतु निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करेगा।।।।परन्तु अंग्रेजों ने जिस स्थिति में देश को निचोड़ कर छोड़ा था उस स्थिति में निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था कर पाना सरकारों के लिए सम्भव नहीं हो सका। हालांकि सरकारे अनवरत इस हेतु प्रयास जारी रखीं।
--1993 में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय में कहा गया कि सरकार का उत्तरदायित्व है कि वह 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध करे।इस निर्णय को दृष्टिगत लगभग 9 वर्षों बाद सन 2002 में 86 वां संविधान संशोधन करके मूल अधिकारों में अनुच्छेद 21 A शामिल किया गया जिसके तहत ऐसी आशा की गई कि सरकार 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों हेतु निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास करेगी।
--अंततः 1 अप्रैल 2010 से RTE (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) लागू हो गया।।।।
*RTE के नियमानुसार--*
सरकारी एवं निजी विद्यालयों में पढ़ाने हेतु *शिक्षक प्रशिक्षण एवं शिक्षक पात्रता परीक्षा TET* अनिवार्य है।।
--प्रत्येक विद्यालय हेतु छात्र शिक्षक अनुपात के हिसाब से शिक्षक होंगे।
--प्राथमिक विद्यालय में 150 छात्र संख्या पर एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 100 छात्र संख्या होने पर अनिवार्य रूप से पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक होगा (अर्थात 150 एवं 100 छात्र संख्या पर अनिवार्यतः प्रधानाध्यापक होगा इससे कम संख्या पर सरकार चाहे तो रखे या न रखे।)
--NCTE के अनुसार मार्च 2019 के बाद से कोई भी शिक्षक, शिक्षामित्र,अनुदेशक या कोई अन्य प्रकार के पैराटीचर्स यदि अप्रशिक्षित हैं तो वे अध्यापन हेतु अर्ह नहीं हैं।
आज भी उक्त के हिसाब से सरकारें शिक्षकों की एवं अन्य आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था नहीं कर सकी हैं।।।
--बावजूद व्यवस्थागत समस्याओं को दूर किये RTE की मूल अवधारणा को पूर्ण नहीं किया जा सकता है।।
एक तरफ माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के कारण लाखों शिक्षकों को TET न पास होने के कारण नीरस मनोदशा के साथ शिक्षण कार्य करना पड़ रहा है।संविदा के बहाने उनसे बहुत कम मानदेय पर शिक्षकों के समान पूरा कार्य लिया जा रहा है,वहीं दूसरी ओर विभिन्न NGOs को विभाग में प्रविष्ट कराया जा रहा है।जिनमे पढ़ाने और कार्य करने वाले अधिकांश लोग महज इंटरमीडिएट अथवा स्नातक ही हैं।।।न ही वो प्रशिक्षित हैं और न ही TET पास हैं।अर्थात RTE का खुला उल्लंघन हो रहा है।।।।
साथियों यह समय परिषदीय शिक्षा व्यवस्था का संक्रमण काल कहा जा सकता है।हमे संगठित होकर रहना होगा।।।अन्यथा पुरानी पेंशन की भांति नई शिक्षक भर्ती बन हो जाएगी।अर्थात अघोषित रूप से शिक्षा का क्रमशः निजीकरण हो जाएगा।
*सभी शिक्षकों एवं शिक्षक संगठनों से आग्रह है कि शिक्षा के निजीकरण के इस षड्यंत्र को समझते हुए समय रहते उचित रणनीति बनाकर इस खेल को खत्म करने का प्रयास किया जाए अन्यथा परिणाम दुःखदायी होंगे।।*🤝
एक परिषदीय शिक्षक
बाराबंकी,उत्तर प्रदेश।।।