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लिखने में हाथ कांपता है तो परीक्षा में ले सकते हैं सहायक

 सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगों को गरिमापूर्ण जीवन और समान अवसर के लिए सक्षम बनाने की दिशा में गुरुवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि लिखते वक्त हाथ कांपना कानून के तहत दिव्यांगता मानी जाएगी और वह व्यक्ति सिविल सेवा परीक्षा व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में लिखने के लिए सहायक पाने का अधिकारी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह तीन महीने के भीतर दिव्यांग व्यक्ति को परीक्षाओं में लिखने के लिए राइटर उपलब्ध कराने के बारे में दिशा-निर्देश तय करे।



यह अहम फैसला न्यायमूíत डीवाई चंद्रचूड़, इंदिरा बनर्जी और संजीव खन्ना की पीठ ने यूपीएससी परीक्षा में सहायक उपलब्ध कराने की विकास कुमार की याचिका स्वीकार करते हुए सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने 62 पृष्ठ के विस्तृत फैसले में दिव्यांगों को समर्थ बनाने और बराबरी का अवसर उपलब्ध कराने के कानूनों का व्यापक विश्लेषण किया है।

कोर्ट ने राइटर क्रैंप (लिखते वक्त हाथ कांपना) से पीड़ित विकास कुमार की याचिका स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि वह सिविल सेवा परीक्षा और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में राइटर (लिखने के लिए सहायक) पाने का अधिकारी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार के समाज कल्याण और अधिकारिता मंत्रलय को आदेश दिया है कि जहां दिव्यांगता की प्रकृति ऐसी है, जिससे लिखने में बाधा पैदा होती है, उसे राइट ऑफ पर्सन विद डिसएबिलिटी एक्ट 2016 के तहत राइटर देने के लिए उचित दिशा-निर्देश बनाए। कोर्ट ने कहा है कि प्रक्रिया तय करते समय समाज कल्याण मंत्रलय उचित नियम और शर्तें लगा सकता है। शर्त लगाई जा सकती है कि पीड़ित व्यक्ति सक्षम मेडिकल अथारिटी द्वारा प्रमाणित होना चाहिए।

लिखते वक्त हाथ कांपना कानून के तहत दिव्यांगता की श्रेणी में आएगा

यह था मामला

याचिकाकर्ता विकास कुमार ने सुप्रीम कोर्ट से राइटर क्रैंप पीड़त को दिव्यांग मानते हुए सिविल सेवा परीक्षा में लिखने के लिए सहायक उपलब्ध कराने की मांग की थी। याचिकाकर्ता एमबीबीएस था। वह सिविल सेवा परीक्षा में शामिल हुआ। उसने स्वयं को बेंचमार्क डिसएबिलिटी में बताते हुए परीक्षा में सहायक मांगा, लेकिन यूपीएससी ने मांग ठुकरा दी। यूपीएससी ने कहा कि राइटर सिर्फ नेत्रहीन या लोकोमोटर डिसएबिलिटी के मामले में ही उपलब्ध कराया जा सकता है। 2018 की परीक्षा में सहायक देने से इन्कार करने पर याचिकाकर्ता ने टिब्यूनल में याचिका दाखिल की। टिब्यूनल ने याचिका खारिज कर दी, क्योंकि राममनोहर लोहिया अस्पताल ने दिव्यांगता प्रमाणपत्र जारी नहीं किया। हाई कोर्ट ने भी टिब्यूनल के आदेश में दखल देने से इन्कार कर दिया, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने एम्स से रिपोर्ट मांगी।

’>>पीड़ित व्यक्ति सिविल सेवा व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में सहायक पाने का है अधिकारी

’>>सरकार को तीन महीने में सहायक देने के बारे में दिशा-निर्देश तय करने को कहा

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