प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ के अहम फैसले से फर्जी बीएड डिग्री लगाकर शिक्षक बनने वालों को तगड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने वर्ष 2005 में बीआर आंबेडकर विवि आगरा की बीएड की फर्जी डिग्री के आधार पर प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त हजारों सहायक शिक्षकों की नियुक्ति रद कर बर्खास्तगी के आदेश पर हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है।
अंकपत्र में छेड़छाड़ के आरोपियों की जांच चार महीने में पूरी करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने एकल पीठ की ओर से विश्वविद्यालय को दिए जांच के आदेश को सही माना है। जांच होने तक चार माह तक ऐसे शिक्षकों की बर्खास्तगी स्थगित रहेगी। वे वेतन सहित कार्य करते रहेंगे। यह जांच परिणाम पर निर्भर करेगा। कोर्ट ने निगरानी कुलपति को सौंपते हुए कहा कि जांच में देरी हुई तो उन्हें वेतन पाने का हक नहीं होगा। जांच अवधि नहीं बढ़ेगी। जांच के बाद डिग्री सही होने पर बर्खास्तगी वापस ली जाए। जिन सात अभ्यíथयों ने कोर्ट में दस्तावेज पेश किए हैं, उनका एक माह में प्रवेश व परीक्षा में बैठने का सत्यापन करने का भी निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति एमएन भंडारी व न्यायमूíत सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने किरण लता सिंह सहित हजारों सहायक शिक्षकों की विशेष अपील निस्तारित करते हुए दिया। अपील पर अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय व स्थायी अधिवक्ता राजीव सिंह ने प्रतिवाद किया।
छल से मिली नियुक्ति होगी शून्य
न्यायमूíत सौरभ श्याम शमशेरी हंिदूी में फैसला दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षा एक पवित्र व्यवसाय है, यह जीविका का साधन मात्र नहीं है। राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कोई छल से शिक्षक बनता है तो ऐसी नियुक्ति शुरू से ही शून्य होगी। कोर्ट ने कहा कि छल-कपट से शिक्षक बनकर इन्होंने न केवल छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ किया है, बल्कि शिक्षक के सम्मान को ठेस पहुंचाई है।
’>>अंक पत्र में छेड़छाड़ की जांच चार माह में करने का निर्देश
’>>विश्वविद्यालय कुलपति की निगरानी में हो जांच