सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा के उन अभ्यर्थियों के लिए अतिरिक्त मौके की मांग की गई थी जिन्होंने कोविड-19 महामारी की वजह से अक्टूबर 2020 में अपना आखिरी मौके गंवा दिया।
जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली वाली पीठ के समक्ष याचिका में इन अभ्यíथयों ने महामारी के कारण परीक्षा की तैयारियों में मुश्किलों का हवाला दिया था। केंद्र ने नौ फरवरी को शीर्ष अदालत से कहा था कि वह अपना आखिरी मौका गंवाने वाले छात्रों समेत अभ्यíथयों को एक बार उम्रसीमा में छूट के खिलाफ है। ऐसे छात्रों को इस साल एक और मौका देने से दूसरे उम्मीदवारों के साथ भेदभाव होगा। मालूम हो कि सामान्य श्रेणी के छात्र 32 साल की उम्र तक छह बार यूपीएससी सिविल सेवा की परीक्षा दे सकते हैं, ओबीसी श्रेणी के छात्र 35 साल की उम्र तक नौ बार और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के छात्र 37 साल की उम्र तक जितनी बार चाहें उतनी बार परीक्षा दे सकते हैं। केंद्र शुरुआत में अतिरिक्त मौका देने के पक्ष में नहीं था, लेकिन बाद में उसने पीठ के सुझाव पर ऐसा किया। उसने पांच फरवरी को कहा था कि 2020 में परीक्षा के अपने आखिरी अवसर का इस्तेमाल करने वाले छात्रों को इस साल एक और मौका मिलेगा बशर्ते वे आयुसीमा की शर्त को पूरा करते हों।
पीठ ने हालांकि बुधवार को रचना और अन्य की याचिका खारिज कर दी। सुनवाई के दौरान केंद्र ने देश में सिविल सेवा परीक्षा शुरू होने के बाद से यूपीएससी द्वारा दी गई छूट के संबंध में विस्तृत जानकारी न्यायालय को दी थी और बताया कि वर्ष 1979, 1992 और 2015 में परीक्षा पैटर्न में बदलाव के कारण अभ्यíथयों को छूट दी गई थी। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 30 सितंबर को देश के कई इलाकों में बाढ़ और कोविड-19 महामारी की वजह से यूपीएससी सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा टालने का अनुरोध स्वीकार करने से भी इन्कार कर दिया था।