इन 3 राज्यों में टीचर्स की सबसे ज्यादा कमी, जानें सभी स्टेट्स में बच्चों पर शिक्षकों की संख्या

 किसी भी देश का भविष्य इस बात पर ज्यादा निर्भर करता है कि वहां कि शिक्षा व्यवस्था कितनी बेहतर है. बेहतर शिक्षा व्यवस्था की सबसे जरूरी और अहम जरूरत छात्र और शिक्षक के बीच का अनुपात है. इस अनुपात से यह

तय किया जाता है कि एक शिक्षक पर कितने बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी है. इसी अनुपात को लेकर संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में सांसद भगवंत मान ने एक सवाल किया. उन्होंने सरकार से पूछा कि राज्यों में छात्रों और शिक्षकों का अनुपात (Student–teacher ratio) क्या है और अगर ये बदतर स्थिति में है तो इसे सुधारने के लिए कौन से प्रयास किए जा रहे हैं?

इस सवाल के जवाब में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सभी राज्यों में छात्र और शिक्षकों के बीच के अनुपात का ब्यौरा देते हुए बताया कि स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती की जिम्मेदारी या उनके चयन का अधिकार राज्यों के पास है. संविधान के मुताबिक शिक्षा समवर्ती सूची में है यानी इस क्षेत्र के विकास के लिए राज्य और केंद्र, दोनों सरकारें जिम्मेदार हैं. हालांकि, शिक्षकों की भर्ती का अधिकार राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के पास है.

मंत्री ने बताया कि शिक्षक भर्ती एक सतत प्रक्रिया है और शिक्षकों के त्यागपत्र देने व रिटायर होने के साथ-साथ छात्रों की संख्या के बढ़ने से शिक्षकों के खाली पदों की संख्या भी बढ़ती है. हालांकि, शिक्षा मंत्रालय समय-समय पर राज्यों को शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए अनुरोध करता है. साथ ही केंद्र सरकार राज्यों में शिक्षकों और छात्रों के अनुपात को अनुकूल बनाए रखने के लिए सहायता भी प्रदान करती है.

Student teacher ratio for schools in India: कितना होना चाहिए छात्र-शिक्षक अनुपात?
सरकार ने अपने जवाब में संसद में बताया कि आरटीई अधिनियम, 2009 के मुताबिक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक दोनों स्कूलों के लिए छात्र-शिक्षक अनुपात (Pupil-Teacher Ratio, पीटीआर) पहले से ही निर्धारित हैं, जिसके मुताबिक प्राथमिक स्तर पर, छात्र-शिक्षक अनुपात 30:1 और उच्च प्राथमिक स्तर पर यह 35:1 होना चाहिए.

एकीकृत शिक्षा जिला सूचना प्रणाली प्लस (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस, UDISE) के मुताबिक सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात 26:1, उच्च प्राथमिक स्तर पर 21:1, माध्यमिक स्तर पर 19:1 और उच्च माध्यमिक स्तर पर 24:1 होना चाहिए.

स्कूलों के लिए निर्धारित छात्र-शिक्षक अनुपात

क्या है स्कूलों की हालत?
केंद्र सरकार भले ही अपनी सफाई में ये कहे कि शिक्षकों की भर्ती राज्यों की जिम्मेदारी है और वो समय-समय पर शिक्षक भर्ती में राज्यों की मदद करती रही है लेकिन इसके बावजूद देश भर के सरकारी स्कूलों में तय छात्र-शिक्षक अनुपात नजर नहीं आता. प्राथमिक स्तर पर छात्र-शिक्षक अनुपात 27:1 होनी चाहिए लेकिन देश के 9 राज्य ऐसे हैं जहां छात्र-शिक्षक अनुपात तय मानक से ज्यादा हैं. यानी यहां प्राथमिक स्कूलों में एक शिक्षक पर 27 से ज्यादा बच्चों की जिम्मेदारी है.

इसमें पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, झारखंड, गुजरात, दिल्ली, दादरा और नगर हवेली, चंडीगढ़, बिहार का नाम शामिल है. वहीं, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक सरकारी स्कूलों के मामले में भी 11 राज्य ऐसे हैं जहां UDISE के मुताबिक छात्र और शिक्षकों का अनुपात निर्धारित मानक से ज्यादा है.

बिहार में सबसे ज्यादा शिक्षकों की कमी

सभी राज्यों के आंकड़ों की बात करें तो बिहार, ओडिशा और झारखंड में शिक्षकों की सबसे ज्यादा कमी पाई गई है. बिहार (Bihar's student teacher ratio lowest among Indian States) के सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर 60 बच्चों पर एक शिक्षक है, वहीं माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर यह अनुपात बढ़कर 70:1 का हो जाता है यानी 70 बच्चों पर एक शिक्षक. 


ऐसे में इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार की शिक्षा प्रणाली में टीचर्स की कितनी कमी है. माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों के मामले में पूरे देश में बिहार एक मात्र ऐसा राज्य है जहां औसतन 70 बच्चों को पढ़ाने के लिए सिर्फ 1 शिक्षक है.

सभी राज्यों के स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात का ब्यौरा

बिहार के बाद सबसे ज्यादा छात्र-शिक्षक अनुपात वाले राज्यों में दूसरे नंबर पर झारखंड है जहां सरकार के उच्च माध्यमिक स्कूलों में छात्रों और शिक्षकों का अनुपात 66:1 का है, यानी 66 बच्चों पर 1 टीचर. वहीं ओडिशा में यह अनुपात 65:1 का है.