झांसी। निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के पढ़ने की इच्छा सरकार ने आरटीई के तहत पूरी की है। इसके लिए सरकार विद्यालय को शुल्क आपूर्ति और बच्चों की कॉपी-किताबों का पैसा देती है। कई निजी विद्यालय सरकार के नियमों की अनदेखी करते हुए गरीब बच्चों का प्रवेश अपने विद्यालय में लेने से मना कर देते हैं। जिले के ही कुछ छोटे विद्यालय ही इन बच्चों का दाखिला कर लेते हैं। वहीं दूसरी ओर पिछले चार सालों से विद्यालय शुल्क तक सरकार नहीं दे पाई।
निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत सरकार ने गरीब बच्चों का निजी स्कूलों में पढ़ने का सपना साकार किया जिसके लिए प्रति वर्ष आवेदन दाखिल होते हैं। विभाग द्वारा हर दस्तावेज की सत्यापित किया जाता है। चयन प्रक्रिया जिलाधिकारी द्वारा निकाली लॉटरी के आधार पर होती है। बच्चों के कॉपी किताबों के लिए 5000 रुपये और विद्यालयों की शुल्क प्रतिपूर्ति की जिम्मेदारी सरकार की है।
बहुत से निजी विद्यालय सरकार की नीति को दरकिनार करते हुए किसी भी गरीब बच्चों का आवेदन स्वीकार न करते हुए उनको दाखिला देने से स्पष्ट तौर से मना कर देते हैं जो छोटे निजी विद्यालय प्रवेश देते भी हैं तो उनको भी सरकार ने पिछले चार सालों से विद्यालय शुल्क नहीं दिया है। वर्ष 2021-22 में कुल 1358 बच्चों की लॉटरी निकली, जिसमें से महज 657 बच्चों को ही उनके पसंदीदा विद्यालय में प्रवेश मिल पाया पिछले चार सालों में सरकार ने आरटीआई के तहत दाखिला लिए बच्चों का विद्यालय शुल्क नहीं दिया है। वर्ष 2018 19 में 294 बच्चों ने वर्ष 2019-20 में 428 बच्चों ने विद्यालयों में प्रवेश लिया, जबकि आवेदन इसके दोगुने बच्चों ने किया था लेकिन सभी विद्यालय इन बच्चों का दाखिला नहीं देते। कोरोना काल में वर्ष 2020-21 में 512 और वर्ष 2021-22 में 657 बच्चों ने निजी विद्यालयों में दाखिला लिया।
निजी विद्यालयों का कहना है कि कई अभिभावक गलत दस्तावेज लगाकर बच्चे को दाखिला दिलाने की कोशिश करते है, ऐसे में उन बच्चों को प्रवेश नहीं मिल पाएगा जो हकदार है जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी वेदराम ने कहा कि सरकार की तरफ से ही पिछले चार सालों से पैसा नहीं आया है। पैसा आत करने के लिए लगातार पत्र भेजा जा रहा है। वहीं दूसरी ओर कुछ विद्यालय भी बहुत कहने के बाद भी बच्चों को दाखिला नहीं देते हैं हम पूरी तरह से सभी दस्तावेजों की जांच करते हैं यहां से पूरी तरह सत्यापित करते हैं। इसलिए यह कहना तो गलत है कि दस्तावेजों में किसी प्रकार का झोल है।