यूपी की 4 जातियों को जनजाति शामिल करने का विधेयक पास

लोकसभा में उत्तर प्रदेश के चार जिलों में चार समुदायों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने वाला संशोधन विधेयक शुक्रवार को ध्वनिमत से पारित हो गया।

आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने ‘संविधान (अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक 2022’ पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि चर्चा में 24 वरिष्ठ सदस्यों ने हिस्सा लिया और सबने महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। उनके सुझावों को विधेयक में शामिल करने पर विचार किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि कई सदस्यों ने अपने राज्यों के संबंध में विचार व्यक्त किये हैं और समस्याएं रखी हैं। उन्होंने सदन को विश्वास दिलाया कि मोदी सरकार देश के हर क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों की समस्या के समाधान के लिए प्रतिबद्ध है।

उनका कहना था कि आदवासी समुदाय के लोग प्रकृतिप्रेमी होते हैं और उन्हें पेड़, पौधों और जंगल से प्रेम रहता हैं इसलिए हर स्थिति में उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाता है।

केंद्रयी मंत्री ने कहा कि अनुसूचित जनजाति समुदाय में किसे शामिल करना है इसको लेकर प्रस्ताव राज्य सरकारों की तरफ से आते हैं और उसी के आधार पर निर्णय लिया जाता है। किस जाति को सूची में शामिल किया जाना है यह फैसला सरकार अकेले नहीं करती।

इसको लेकर उच्चतम न्यायालय का आदेश है कि जिन समुदायों को अनुसूचित जाति में शामिल करना है इस बारे में सारे फैसले करने का अधिकार सरकार की बजाय संसद के माध्यम से पारित करने को कहा है।

उन्होंने कहा कि कुछ सदस्यों ने आरोप लगाया कि चुनाव के मद्देनजर सरकार यह विधेयक लेकर आई है लेकिन देश में बराबर चुनाव होते रहते हैं और इन चुनाओं का विधेयक से कोई मतलब नहीं होता है।

सदन ने हाल ही में कर्नाटक का, अरुणाचल और त्रिपुरा से संबंधित विधेयक पारित किया और अब जल्द ही झारखंड, छत्तीसगढ और ओडिशा से जुड़े विधेयक भी पारित किये जाएंगे।

मुंडा ने कहा कि जनजाति समुदाय का विकास होना चाहिए इस संकल्प को ध्यान में रखते हुए यह विधेयक लाया गया है। उनका कहना था कि 2013-14 से पहले का आंकडा देखें तो तब 119 आवासीय विद्यालय आदिवासी छात्रों के लिए चल रहे थे और अब इनकी संख्या 367 हो गई है।

उस समय प्रति छात्र खर्च 42 हजार रुपए था जो अब प्रति छात्र एक लाख 9 हजार रुपए हो गया है। एकलव्य स्कूलों के लिए कांग्रेस के समय 12 करोड़ रुपए मिलते थे जो आज 38 करोड़ रुपए हैं।

गौरतलब है कि एससी-एसटी (संशोधन) अधिनियम-2002 के तहत यूपी के गोंड और उसकी पर्याय जातियों धूरिया, नायक, ओझा, पठारी और राजगोंड को 13 जिलों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा प्राप्त है। ये जिले हैं- महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और सोनभद्र। शेष 62 जिलों में गोंड जाति को अनुसूचित जाति (एससी) में सूचीबद्ध किया गया है।

अलग-अलग समय पर इन 13 जिलों में से ही चार नए जिले चंदौली, संत रविदासनगर (भदोही), संतकबीरनगर और कुशीनगर बनाए गए। इन चार नवसृजित जिलों में भी गोंड और उनकी पर्याय जातियों को अनुसूचित जाति में रखा गया। इसका इन जिलों के लोग लंबे समय से विरोध कर रहे थे। उनका कहना है कि मूल जिले में उन्हें एसटी का दर्जा मिलता था, जिसे नए सृजित जिले में भी बरकरार रखना चाहिए।

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, उत्तर प्रदेश ने वर्ष 2013 में इस मांग को जायज ठहराते हुए अपनी रिपोर्ट शासन को भेजी। प्रदेश सरकार के माध्यम से यह रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी गई।

पिछले साल प्रदेश सरकार ने एक बार फिर रिमाइंडर भेजा। इसके बाद संसद में विधेयक पेश होने की प्रक्रिया शुरू हुई। किसी भी नए जिले में एसटी का दर्जा तभी मिल सकता है, जब संसद से संबंधित विधेयक पास हो।