पिछले दिनों में मुफ्त उपहारों की योजनाओं को लेकर हर स्तर पर सवाल खड़े होते रहे हैं। राजनीतिक लाभ को ऐसी घोषणाओं को लेकर कोर्ट ने तीखे सवाल किए हैं। वहीं, यह बहस भी छिड़ गई है कि योजनाएं और कानून बनाने से पहले व्यापक जन बहस और उसके वित्तीय परिणाम पर चर्चा जरूरी है। अदालत ने पिछले दिनों ऐसी कई योजनाओं पर गंभीर आपत्ति जताई जो या तो जल्दबाजी में बनीं या फिर वित्तीय कारणों से जमीन पर नहीं उतर पा रही हैं।
शीर्ष अदालत ने हाल में शिक्षा के अधिकार मामले पर सुनवाई के दौरान कहा था कि अगर हर स्तर पर स्कूलों में शिक्षकों का नियुक्ति नहीं की जा रही है तो कानून ही क्यों लाया गया। पांच-पांच हजार वेतन के शिक्षक रखकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे दी जा सकती है। कोर्ट का यह भी कहना था कि कानून बनाने से पहले वित्तीय आकलन और व्यापक विमर्श जरूर किया जाना चाहिए।
इसी तरह बिहार के शराब बंदी कानून के मामले में शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के ज्यादातर न्यायाधीशों के इस कानून के तहत आरोपितों की जमानत याचिकाएं सुनने में व्यस्त होने पर कानून को लेकर सवाल उठाया था। जिसके बाद बिहार सरकार कानून में संशोधन लाई है। किसानों के देशव्यापी विरोध के मद्देनजर पिछले दिनों सरकार ने नए कृषि कानून वापस ले लिए थे। इसी तरह के विरोध के बाद भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून भी वापस ले लिया गया था।