प्रदेश के 4512 सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों के समायोजन का आदेश जारी होने के साथ ही इसके अनुपालन को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। शिक्षक नेता इसका विरोध भी कर रहे हैं। इस आदेश के
अनुपालन में सबसे ब़ड़ा बाधक बन सकता है इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम 1921। इस अधिनियम में समायोजन का प्रावधान ही नहीं है। इस वजह से इसे लेकर कानूनी अड़चन आना तय माना जा रहा है। माध्यमिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव दीपक कुमार ने समायोजन का आदेश जारी किया है। सरप्लस शिक्षकों के समायोजन के लिए प्रदेशस्तर पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक और मंडलस्तर पर मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशक की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई है।आदेश में 1976 के शासनादेश को आधार बनाया गया है, जबकि इन शिक्षकों की सेवाएं इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम 1921 से नियंत्रित होती है। एक और बड़ी अड़चन यह है कि एडेड कॉलेजों में संस्था ही चयन की इकाई होती है और चयन तिथि से ही वरिष्ठता निर्धारित की जाती है। ऐसे में समायोजन से वरिष्ठता को लेकर विवाद होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे समायोजित होने वाले शिक्षक के पूर्व के वर्षों का अनुभव शून्य हो जाएगा। समायोजित शिक्षक सबसे जूनियर हो जाएगा। सेवा वर्ष के शून्य होने से शिक्षक को आर्थिक क्षति होगी। जिससे मुकदमेबाजी बढ़ना तय माना जा रहा है। यदि समायोजित शिक्षक की वरिष्ठता बरकरार रखी जाती है तो भी दिक्कत आ सकती है क्योंकि तब उस स्कूल में पूर्व से कार्यरत शिक्षक अपनी वरिष्ठता बनाए रखने कोर्ट का सहारा ले सकते हैं। शिक्षक नेताओं का कहना है कि 27 सितंबर 2019 को टास्क फोर्स गठित करते हुए सभी एडेड कॉलेजों में छात्र संख्या के अनुसार अध्यापकों की जनशक्ति निर्धारित कराई गई थी। सरप्लस होने के कारण ही जुलाई 2019 में ऑनलाइन अधियाचन में माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को भेजे गए शिक्षकों के लगभग 39 हजार पदों में से केवल 15 हजार पदों का ही विज्ञापन और चयन किया गया। शेष 24 हजार पदों को सीज कर दिया गया, तो फिर तीन साल में ही समायोजन की आवश्यकता कैसे पड़ गई।
1986 में वित्तीय सर्वेक्षण के नाम पर, 2013 में जनशक्ति के नाम पर, 2019 में टास्क फोर्स के नाम पर और अब 2022 में समायोजन के नाम पर सरकार लगातार एडेड माध्यमिक विद्यालयों के सृजित पदों को समाप्त कर रही है। लेकिन जिन विद्यालयों में छात्र संख्या बहुत बढ़ गई है, वहां पद सृजन नहीं कर रही है। सरकार का यह दोहरा रवैया बताता है कि वह एडेड विद्यालयों के अस्तित्व को समाप्त करना चाहती है।
-लालमणि द्विवेदी, प्रदेश महामंत्री माध्यमिक शिक्षक संघ (ठकुराई गुट)
सरकार लगातार एडेड कॉलेजों को कमजोर करती जा रही है। किसी न किसी बहाने से शिक्षकों की संख्या कम कर रहे हैं और शिक्षा में निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है जो कि उचित नहीं है। प्रदेश की गरीब और जरूरतमंद आबादी के लिए सस्ती और सुलभ शिक्षा के दरवाजे बंद हो रहे हैं। -सुरेश त्रिपाठी, एमएलसी और शिक्षक विधायक दल के के नेता