डीएलएड (बीटीसी ) में तीन बार फेल अभ्यर्थियों को मिली राहत

 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएलएड (बीटीसी ) डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन कोर्स की परीक्षा के कुछ सेमेस्टर में तीन बार असफल अभ्यर्थियों को परीक्षा में बैठने का एक अतिरिक्त अवसर देने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने कहा कि सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी प्रयागराज के सर्कुलर का लाभ लगभग दो हजार अभ्यर्थियों को देना और सैकड़ों याचियों को लाभ से वंचित करना अनुच्छेद 14 के विपरीत एवं विभेदकारी है। कानून के समक्ष समानता हो और सभी को समान संरक्षण मिलना चाहिए।


यह आदेश न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र ने साक्षी व 77 अन्य सहित कुल 15 याचिकाओं पर अधिवक्ता कौंतेय सिंह, सिद्धार्थ खरे व भारत प्रताप सिंह और सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता को सुनकर दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी की अभ्यर्थिता निरस्त नहीं की गई है इसलिए क्लाज 20 में अपील में न जाना इनके आड़े नहीं आएगा। याची भी परीक्षा में बैठने का अतिरिक्त अवसर पाने के हकदार हैं इसलिए याचियों को अतिरिक्त मौका दिया जाए। कोर्ट ने कहा इस फैसले के बाद आने वाली याचिकाओं पर राज्य को यह छूट होगी कि उन्हें भी लाभ दिया जाए या नहीं। कोर्ट ने सभी याचिकाएं स्वीकार कर ली हैं।याचिकाओं के मुताबिक सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने 11 सितंबर 2021 व 19 अप्रैल 2022 को सर्कुलर जारी किया जिनमें तीन बार असफल अभ्यर्थियों को परीक्षा में बैठने का एक अंतिम अतिरिक्त मौका देने की छूट दी गई है। याची एक विषय में तीन बार फेल हुए हैं। उन्होंने भी सर्कुलर के आधार पर छूट की मांग की थी। उनका यह भी कहना था कि लगभग दो हजार अभ्यर्थियों को इसका लाभ दिया गया है और याचियों को वंचित किया जा रहा है। हालांकि अपर महाधिवक्ता ने इसका विरोध किया। कोर्ट ने कहा कि वह सर्कुलर को मान रहे हैं और उसे चुनौती भी नहीं दी गई है तो सर्कुलर का सभी को लाभ पाने से वंचित नहीं किया जा सकता।अपर महाधिवक्ता का कहना था कि सर्कुलर केवल प्रत्यावेदन देने वालों के लिए जारी हुआ था। कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना और कहा कि सचिव को सर्कुलर जारी करने का अधिकार है। उसमें कानूनी बल है तो याचियों को लाभ पाने से रोका नहीं जा सकता। सर्कुलर की संकीर्ण व्याख्या स्वीकार्य नहीं है। सरकार की ओर से कहा गया कि यह लाभ केवल याचियों तक सीमित किया जाए।


कोर्ट ने इसे भी नहीं माना और कहा कि आदेश के बाद याचिका होने पर राज्य को अपना तर्क रखने का अधिकार होगा।