लखनऊ। डॉक्टर के खिलाफ इलाज में लापरवाही का झूठा मुकदमा लिखाना डिग्री कॉलेज के एक लेक्चरर पर भारी पड़ गया। राज्य उपभोक्ता आयोग ने शिक्षक पर चार लाख रुपये का हर्जाना लगाया है। इस रकम पर उन्हें 2016 से नौ फीसदी सालाना की दर से ब्याज भी देना होगा। ये कुल रकम लगभग 6.5 लाख होगी। ये आदेश राज्य आयोग के न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह और सदस्य विकास सक्सेना ने दिया।
बहराइच निवासी डॉ. सुरेन्द्र मोहन त्रिपाठी डिग्री कॉलेज में लेक्चरर हैं जबकि उनकी पत्नी उमा त्रिपाठी इंटर
कॉलेज में प्राध्यापिका थीं। 2016 में उनकी पत्नी बीमार हुईं। डॉक्टर को दिखाया तो जांच में प्लेटलेट्स की कमी पाई गई। 30 जुलाई 2016 को वह पत्नी को दिखाने एसजीपीजीआई लखनऊ ले आए। वहां इलाज से असंतुष्ट होने पर उसी दिन नई दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल ले गए। वहां डॉ. नितिन गुप्ता ने इलाज किया। इंजेक्शन व डेप्सोन
टेबलेट आदि देकर उन्हें ठीक किया। दो अगस्त 2016 को डिस्चार्ज करने के साथ पांच अगस्त को दोबारा आकर दिखाने के लिए कहा। डॉ. त्रिपाठी पत्नी को लेकर गोरखपुर चले गए। छह अगस्त को पत्नी की तबीयत खराब हुई तो फोन से जानकारी दी। डॉ. नितिन ने कुछ दवाएं बताने के साथ स्थानीय डॉक्टर से परामर्श करने को कहा। डॉ. सुरेन्द्र मोहन ने पत्नी को गोरखपुर में डॉ. अरविंद को दिखाया, लेकिन आराम नहीं मिला। 13 अगस्त 2016 को पत्नी उमा की मौत हो गई। लेक्चरर पति ने डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही के अलावा अधिक डेप्सोन
दवा खाने की वजह से मृत्यु का केस
उपभोक्ता आयोग में किया। मामले की सुनवाई के बाद आयोग ने फैसला सुनाया कि गंगाराम अस्पताल के डॉ. नितिन ने पांच अगस्त को दोबारा आकर दिखाने के लिए कहा था, लेकिन वह नहीं गए। डॉ. नितिन ने पांच अगस्त को फोन पर लेक्चरर पति से कहा था कि स्थानीय डॉक्टर को दिखाएं, लेकिन वह 12 अगस्त को दिखाने गए। जो दवा डॉ. नितिन ने तीन दिन खाने के लिए कहा, वह उसे 10 दिन तक खिलाते रहे। आयोग ने कहा कि इस मामले में डॉक्टरों ने कोई लापरवाही नहीं की है और परिवादी ने जानबूझकर कर झूठा मुकदमा किया है।