प्रयागराज। 69000 सहायक अध्यापक भर्ती 2019 से जुड़े लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभ्यर्थियों के पक्ष में बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में सद्भावनापूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा जारी सेवा समाप्ति आदेश, चयन परिणाम और नियुक्ति पत्र से संबंधित सभी आदेशों को निरस्त कर दिया है।
चयन प्रक्रिया में हुई त्रुटि गैर-इरादतन: हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माना कि सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया के दौरान जांच और मानव संसाधन स्तर पर जो त्रुटियां हुईं, वे गैर-इरादतन (Non-Intentional Error) थीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कोई जानबूझकर की गई अनियमितता नहीं थी, बल्कि प्रशासनिक चूक का परिणाम थी।
अभ्यर्थियों पर नहीं डाला जा सकता प्रशासनिक गलती का बोझ
न्यायालय ने कहा कि चयन प्रक्रिया में हुई प्रशासनिक या तकनीकी गलती का खामियाजा चयनित अभ्यर्थियों को नहीं भुगतना चाहिए। कोर्ट के अनुसार, नौकरी से जुड़े मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, खासकर तब जब अभ्यर्थियों की कोई गलती सामने नहीं आती।
राज्य सरकार को भविष्य सुरक्षित करने का अधिकार
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि राज्य सरकार के पास यह संवैधानिक अधिकार है कि वह ऐसी सद्भावनापूर्ण त्रुटियों से प्रभावित व्यक्तियों के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करे। अदालत ने संकेत दिया कि सरकार चाहे तो नीतिगत निर्णय लेकर चयनित शिक्षकों के हितों की रक्षा कर सकती है।
न्यायमूर्ति मनीष चौहान की पीठ का अहम निर्णय
यह फैसला न्यायमूर्ति मनीष चौहान की एकल पीठ ने 69000 सहायक अध्यापक भर्ती 2019 से संबंधित याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर सुनाया। कोर्ट ने कहा कि सेवा समाप्ति जैसे कठोर निर्णय बिना अभ्यर्थियों की गलती के न्यायसंगत नहीं ठहराए जा सकते।
हजारों शिक्षकों को मिली बड़ी राहत
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को 69000 शिक्षक भर्ती से जुड़े हजारों अभ्यर्थियों के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है। इससे न केवल प्रभावित शिक्षकों को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है, बल्कि भविष्य में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और त्रुटिरहित बनाने की दिशा भी तय होगी।