परीक्षाओं में अब नाम पर परदा : 72825 Primary Teacher Latest News

आयोग की परीक्षाओं में अब नाम पर परदा
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : कई अनियमितताओं और भेदभाव के आरोपों से घिरे उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग अब अपनी पीसीएस व अन्य परीक्षाओं के रिजल्ट में चयनित अभ्यर्थियों का नाम सार्वजनिक नहीं करेगा।
हैरान कर देने वाला यह अजीबो-गरीब फैसला आयोग ने हाल ही में एक बैठक में लिया है और इसके अनुपालन के लिए आदेश भी जारी कर दिए गए हैं। यानी अब आयोग की परीक्षाओं में इस बात का पता करना मुश्किल हो जाएगा कि किस परीक्षा में किस वर्ग के अभ्यर्थी अधिक चयनित हो रहे हैं।

लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल कुमार यादव के कार्यकाल में कुछ खास जिलों और खास वर्ग के लोगों को वरीयता दिए जाने के आरोप पहले से ही लगते रहे हैं। अभ्यर्थी यह आरोप आयोग के रिजल्ट में चयनित लोगों के नामों के आधार पर ही लगाते रहे हैं। इससे आयोग को किरकिरी का सामना करना पड़ता था। इसे देखते हुए ही आयोग ने 22 अप्रैल को एक असाधारण बैठक करके यह फैसला किया कि साक्षात्कार और अंतिम चयन के परिणाम को सिर्फ अनुक्रमांक और रजिस्ट्रेशन के आधार पर ही घोषित किया जाएगा। इसके लिए साक्षात्कार समिति से प्रस्ताव मांगने के बाद यह बैठक बुलाई गई थी। बैठक में सदस्यों के रूप में डा. जयराम प्रसाद वैद्य, सैयद फरमान अली, डा. एसके जैन, डा. राजेंद्र कुमार और डा. एके यादव शामिल थे। आयोग के सचिव की ओर से इस आदेश को पालन के लिए सभी अनुभागों को भेजा गया है।
उल्लेखनीय है कि आयोग ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है जबकि राजस्व निरीक्षक और समीक्षा अधिकारी-सहायक समीक्षा अधिकारी परीक्षा का परिणाम जल्द ही आना है। प्रतियोगी छात्रों को आशंका है कि इस आदेश की आड़ में कहीं चयन परिणाम की अनियमितताओं को छिपाने की साजिश तो नहीं रची जा रही है। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अयोध्या सिंह और मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय के अनुसार आयोग के इस निर्णय ने कई संदेहों को जन्म दे दिया है। जब अन्य परीक्षा संस्थाएं पारदर्शिता की ओर बढ़ रही हैं तो आयोग में गोपनीयता की यह आड़ समझ से परे है।
इससे पहले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने चयन और परीक्षा परिणाम में अभ्यर्थियों की जाति एवं वर्ग का उल्लेख न किए जाने का फैसला लिया था। हालांकि इस आदेश का सख्ती से पालन नहीं किया जा सका। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति ने इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की थी। तब समिति के पदाधिकारियों के खिलाफ आयोग के गोपनीय दस्तावेज गायब करने की प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी।

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