अफसर, मंत्री अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं: कोर्ट
इलाहाबाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नौकरशाहों, नेताओं और सरकारी खजाने से वेतन या मानदेय पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के बच्चों को सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ना अनिवार्य किया जाए। साथ ही ऐसा न करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाए।
जिनके बच्चे कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ें, वहां की फीस के बराबर रकम उनके वेतन से काट ली जाए। साथ ही ऐसे लोगों का कुछ समय के लिए इन्क्रीमेंट व प्रमोशन रोकने की व्यवस्था की जाए। अगले शिक्षा सत्र से इसे लागू भी किया जाए।
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने जूनियर हाईस्कूलों में गणित व विज्ञान के सहायक अध्यापकों की चयन प्रक्रिया को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सरकारी स्कूलों की दुर्दशा सामने आने पर दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने जूनियर हाईस्कूलों में गणित व विज्ञान के सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए 1981 की नियमावली के नियम 14 के मुताबिक नए सिरे से चयन सूची तैयार करने का निर्देश भी दिया है।
साथ ही सूची में शामिल लोगों को नियुक्ति प्रदान करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने राजकुमार पाठक व अन्य कई की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए सहायक अध्यापक चयन प्रक्रिया में 50 प्रतिशत पद सीधी भर्ती से और शेष 50 फीसदी पदोन्नति से भरने के मामले में हस्तक्षेप नहीं किया।
फैसले की बुनियाद
गणित-विज्ञान के सहायक अध्यापकों की भर्ती को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान बताया गया कि प्रदेश के एक लाख 40 हजार जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों में अध्यापकों के दो लाख 70 हजार पद रिक्त हैं। सैकड़ों स्कूलों में पानी, शौचालय, बैठने की व्यवस्था जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है तो कइयों में छत भी नहीं है। सरकार, नेता व अफसर इस बदहाली के बावजूद बेसिक शिक्षा के प्रति संजीदा नहीं हैं क्योंकि उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं बल्कि कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ते हैं।
कोर्ट ने की टिप्पणी
प्रदेश में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है, अंग्रेजी माध्यम के कॉन्वेंट स्कूल, प्राइवेट स्कूल और बेसिक शिक्षा परिषद से संचालित स्कूल। आजादी के 68 साल बीत जाने के बावजूद सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। ऐसा अफसरों, नेताओं, न्यायिक अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ना अनिवार्य न होने के कारण है। इसी कारण वहां न योग्य अध्यापक हैं औ न मूलभूत सुविधाएं। सरकारी खजाने से वेतन व सुविधाएं हासिल करने वालों के बच्चे जब तक सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे, तब तक इन स्कूलों की हालत में सुधार नहीं होगा।
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इलाहाबाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नौकरशाहों, नेताओं और सरकारी खजाने से वेतन या मानदेय पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के बच्चों को सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ना अनिवार्य किया जाए। साथ ही ऐसा न करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाए।
जिनके बच्चे कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ें, वहां की फीस के बराबर रकम उनके वेतन से काट ली जाए। साथ ही ऐसे लोगों का कुछ समय के लिए इन्क्रीमेंट व प्रमोशन रोकने की व्यवस्था की जाए। अगले शिक्षा सत्र से इसे लागू भी किया जाए।
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साथ ही सूची में शामिल लोगों को नियुक्ति प्रदान करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने राजकुमार पाठक व अन्य कई की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए सहायक अध्यापक चयन प्रक्रिया में 50 प्रतिशत पद सीधी भर्ती से और शेष 50 फीसदी पदोन्नति से भरने के मामले में हस्तक्षेप नहीं किया।
फैसले की बुनियाद
गणित-विज्ञान के सहायक अध्यापकों की भर्ती को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान बताया गया कि प्रदेश के एक लाख 40 हजार जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों में अध्यापकों के दो लाख 70 हजार पद रिक्त हैं। सैकड़ों स्कूलों में पानी, शौचालय, बैठने की व्यवस्था जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है तो कइयों में छत भी नहीं है। सरकार, नेता व अफसर इस बदहाली के बावजूद बेसिक शिक्षा के प्रति संजीदा नहीं हैं क्योंकि उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं बल्कि कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ते हैं।
कोर्ट ने की टिप्पणी
प्रदेश में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है, अंग्रेजी माध्यम के कॉन्वेंट स्कूल, प्राइवेट स्कूल और बेसिक शिक्षा परिषद से संचालित स्कूल। आजादी के 68 साल बीत जाने के बावजूद सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। ऐसा अफसरों, नेताओं, न्यायिक अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ना अनिवार्य न होने के कारण है। इसी कारण वहां न योग्य अध्यापक हैं औ न मूलभूत सुविधाएं। सरकारी खजाने से वेतन व सुविधाएं हासिल करने वालों के बच्चे जब तक सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे, तब तक इन स्कूलों की हालत में सुधार नहीं होगा।
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