135000 समायोजित को भी खतरे में डाल : संघों और टीमों ने शिक्षामित्र समायोजन केस को बनाया और भी जटिल

कल का सुप्रीम कोर्ट का घटनाक्रम ये दर्शाने के लिए काफी है कि संघो और टीमों ने शिक्षामित्र समायोजन केस को जटिल से जटिलतम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। क्या शिक्षमित्रों का नेतृत्व विधिक रूप से इतना कमज़ोर है कि उसे कोर्ट की प्रोसिडिंग और दिए गए आदेशों की भी जानकारी नहीं है?

अगर थी तो अवशेष के साथ साथ समयोजितों को भी बर्बाद करने की योजना किस आधार पर बनाई गई,
क्या ये लोग नहीं जानते थे कि 26 अप्रैल को ही ये तै हो गया था कि कोई नई याचिका इंटरटेन नहीं की जायेगी।
फिर ये लोग क्यों गए जब कि अवशेष के लिए सक्रिय संघ और गाज़ी टीम के अलावा अवशेष की स्वयं की याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में पहले से दाखिल थी।

क्या आप किसी के घर की बार बार कुण्डी खतकाओगे तो वो नाराज़ नहीं होगा? जबकि वो पहले ही नो इंट्री का बोर्ड लगा चूका है।
हद तो ये कि लाखों के वकील कर के राजनीती चमकाई गई।
■135000 को भी खतरे में डाल दिया वो अलग।
लोग कहते हैं एमएचआरडी और एनसीटीई का काउंटर हमें बचाएगा
जबकि कोर्ट 7 दिसम्बर को ही पुराने काउंटर को राज्य सरकार से मांग चुका है। जिसकी समीक्षा करेगा।
लोग कहते हैं फैसला राज्य और संघ की याचिका पर ही आएगा। तो बाकी लोग क्या कोर्ट में चाट खाने गए हैं।
जबकि कोर्ट साफ आदेश दे चूका है केस मेरिट पे सुना जायेगा। सिर्फ वो बोलेगा जिसकी बात नकलचियों की बात से अलग और संविधानिक उपबन्धों पर होगी।
अब तक एक भी टीम ने 21क को आधार नहीं बनाया सिवाय हिमांशु राणा और मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के लोगों के।
और बहस इसी पे होगी।
अब इस पोस्ट के बाद फिर हंगामा होगा कि एक होकर लड़ो।
अब फिर एकता का राग अलाप शुरू होगा। फिर शिक्षामित्रों के दोहन का रास्ता तयार होगा। फिर करोड़ों का चन्दा होगा। फिर तीनो संघ एक होंगे।
वो संघ जो कल केस को जटिल से जटिलतम बनाने गए थे।
©रबी बहार*, केसी सोनकर और साथी* अरविन्द गंगवार, मुहम्मद फैसल, मिश्रेयार खान, अर्जुन सिंह लिहाज़।
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